गंगा के शिवकुटी के तट पर बहती धारा में वह अधेड़ जलकुम्भी उखाड़-उखाड़ कर बहा रहा था। घुटनो के ऊपर तक पानी में था और नेकर भर पहने था। जलकुम्भी बहा कर कहता था – जा, दारागंज जा!
बीच बीच में नारा लगाता था – बोल धड़ाधड़ राधे राधे! बोल मथुरा बृन्दाबन बिहारी धाम की जै!
भांग शाम को चढ़ाई होगी, अभी सवेरे छ बजे भी तरंग पर्याप्त बची थी।
एक सज्जन ने चुहुल की तो वह बोला – जेके बहावा ह, ऊ दारागंज क पण्डा अहई, हमार दुसमन; और तू ओकर भाइ! (जिस जलकुम्भी को बहा रहा हूं, वह दारागंज का पण्डा है, मेरा दुश्मन। और तुम हो उसके भाई!)
वह होगा यहां शिवकुटी का बाभन-पुजारी-पण्डा। दारागंज वाले पण्डा से लागडांट होगी (दारागंज गंगा में आगे दो कोस पर पड़ता है)। उसकी सारी खुन्नस जलकुम्भी उन्मूलन के माध्यम से जाहिर कर रहा था वह। बहुत प्रिय लगा यह तरीका खुन्नस निकालने का। पर्यावरण के ध्यान रखने के साथ साथ!
उसने जल में एक डुबकी लगाई तो चुहुल करने वाले ने कहा – “अभी क्यों नहा रहे हो – अभी तो ग्रहण है”। पलट कर जवाब मिला – “हम जा कहां रहे हैं, यह तो डुबकी लगा शीतल कर रहे हैं शरीर। नहायेंगे ग्रहण के बाद”।
उसकी समय की किल्लत न होने की बात पर मुझे लगा कि जल्दी घर लौटूं। काम पर लगना है। यह पोस्ट मैं पोस्टपोन कर सकता था। पर लगा कि ग्रहण खत्म होने के पहले ठेल दूं – तभी ब्लॉगिंग की सार्थकता है। इंस्टेण्ट साइबरित्य!
आप भी बोलें –
बोल धड़ाधड़ राधे राधे! बोल मथुरा बृन्दाबन बिहारी धाम की जै!
मैं ग्रहण समाप्ति के पहले पोस्ट कर पाया – घटना और पोस्ट करने में समय अंतर एक घण्टा!
manna padega, khatarnaak insaan hain aap..hum to bahut aalsee hain..sikhaiye itni chusti furtee ki kuch tips..maan gaye aapke josh ko..itni fast to humare paas palmtop hota tab bhi hum nahin hote..salute sir jee 🙂
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चिट्ठाजगत में पोस्ट देखते सी समझ गया की तीर किस कमान से निकला है आये तो पुष्टि हो गई सुबह सुबह गंगा स्नान का पुन्य आपकी दिनचर्या में शामिल है ये तो हम पहले से जनते हैं वीनस केसरी
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खुन्नस निकालने का इलाहाबादी तरीका पसंद आया. जलकुम्भी तो अपने घर से उखाड़ दिया दुसरे के यहाँ ठेल दिया.
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भांग की तुरस में पंडा ने टेम्परेरी नहाया होगा फिर ग्रहण के बाद जलकुम्भी लगाकर तरंग में नहाया होगा….. वो पंडा महाराज तो गजब के है बहुत खूब रही . एक बार इलाहाबाद जरुर घूमना है और अवलोकन कर भगेडी पंडो की तरंग पर पोस्ट लिखना चाहता हूँ …
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राधे राधे! मथुरा बृन्दाबन बिहारी धाम की जै .
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आप को एक घंटे ही लगे मुझे तो कई घंटे लग गए instant रिपोर्टिंग में !
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सच कहा, खुन्नस निकालने का यह तरीका तो लाजवाब है……..गंगा मैया के दर्शन कराने के लिए आभार…
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जय हो ! हम तो सोते रह गए 🙂
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यह पोस्ट मैं पोस्टपोन कर सकता था। पर लगा कि ग्रहण खत्म होने के पहले ठेल दूं – तभी ब्लॉगिंग की सार्थकता है। इंस्टेण्ट साइबरित्य!इंस्टेन्ट साइबरित्य है और इंस्टेन्ट साइबर तृप्ति भी हो जाती है! 😀
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हम तो सोते रहे ग्रहण के समय!उठकर कुछ देर ग्रहण को टीवी पर देखकर अपने आप को संतुष्ट करना पडा।बादल छाये हुए थे। सूरज निकलते निकलते ग्रहण समाप्त भी हो गया।हमारे लिए तो यह एक non-event ही रह गया।पत्नी की आदेश थी कि जब तक नहा नहीं लूँ चाय – नाश्ता नहीं मिलेगी।सो बिना विलंब आज गंगा स्नान तो नही बल्कि "कावेरी" स्नान किया।(घर में नल का पानी कावेरी नदी का है)एक किस्सा याद कर रहा हूँ। किसी रिश्तेदार के यहाँ बाथरूम में एक शीशे की बोतल देखी थी।पूछा क्या है? बताया गया कि यह शुद्ध गेंगा जल है, हरिद्वार से।पूछा इसका आप क्या करते हैं? क्यों बाथरूम में रखा है?उसने बताया कि नहाने से पहले एक बूंद गंगा जल बालटी में डालकर नल के पाने से नहाता है।गंगा से प्रेम करने वाले यहाँ भी मिलते हैं।जी विश्वनाथ
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