आजके दिन कुछ ज्यादा चहल-पहल है गंगा तट पर। नागपंचमी है। स्नानार्थियों की संख्या बढ़ गयी है। एक को मैने कहते सुना – इहां रोजिन्ना आते थे। आजकल सिस्टिम गडअबड़ाइ गवा है (रोज आते थे गंगा तट पर, आजकल सिस्टम कुछ गड़बड़ा गया है)।
भला, नागपंचमी ने सिस्टम ठीक कर दिया। कल ये आयेंगे? कह नहीं सकते।
घाट का पण्डा अपनी टुटही तखत पर कुछ छोटे आइने, कंधियां, संकल्प करने की सामग्री आदि ले कर रोज बैठता था। आज ऊपर छतरी भी तान लिये है – शायद ज्यादा देर तक चले जजिमानी!
गंगा किनारे का कोटेश्वर महादेव का मंदिर भी दर्शनार्थियों से भरा है। पहले फूल-माला एक औरत ले कर बैठती थी बेचने। आज कई लोग दुकानें जमा लिये हैं जमीन पर।
एक घोड़ा भी गंगा के कछार में हिनहिनाता घूम रहा था। जब बकरे के रूप में दक्ष तर सकते हैं तो यह तो विकासवाद की हाइरार्की में आगे है – जरूर तरेगा!
दो-तीन मरगिल्ले सांप ले कर भी बैठे हैं – नागपंचमी नाम सार्थक करते। बहुत जोर से गुहार लगाई कि दान कर दूं – मैने दान करने की बजाय उसका फोटो भर लिया। ताकि सनद रहे कि देखा था!
http://picasaweb.google.com/s/c/bin/slideshow.swf
गंगातट का अच्छा वर्णन मिलता है आपके ब्लॉग पर !!
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भला, नागपंचमी ने सिस्टम ठीक कर दिया। कल ये आयेंगे? कह नहीं सकते।उन्होंने यह थोड़े ही कहा कि कल आएँगे। उन्होंने तो यह कहा कि पहले रोज़ाना आते थे लेकिन अब सिस्टम गड़बड़ा गया है, नागपंचमी है इसलिए आ गए नहीं तो आज भी न आते! :)बाकी तस्वीरें बढ़िया लिए हैं, कैमरे का भरपूर प्रयोग हो रिया है ब्लॉग के लिए! 🙂
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आलसी महराज तो अब यू-टर्निया रहे हैं। लंठई ने इनका बन्टाधार कर दिया तभी तो दंगल के फेर में पड़े हैं। आपकी पोस्ट है बहुत मजेदार।
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एक कविता अस्पष्ट सी याद आ रही है-सांप तुम मनुष्य तो हुए नहीं शहर में बसना भी तुम्हे नहीं आया फिर कहाँ सीखा डसनाविष कहाँ पाया ये बेचारा जीव शहर में आकर सारी हेकडी भूल बैठा है.उसकी प्रतिस्पर्धा यहाँ बड़े बड़े नागराजों से है.
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देखते ही देखते कितने परिवर्तन आ गये हैं त्योहारों में. कभी अल-सुबह से ही "नाग पूज लो" की आवाजें गली में गूजना शुरु हो जाती थीं. और आज सुबह से निपट सन्नाटा रहा. माताजी परेशान कि कैसे काम बने. आखिरकार पूजा घर में शंकर जी की तस्वीर में नाग देवता से काम चलाया गया. हां, पकवानों में वही पुराना रंग जरूर रहा.——————-यूनुस जी जिस कविता के लिये परेशान हैं, हमारा अंदाजा है कि ये वही है जिसका जिक्र अनिल पुसदकर जी ने किया है. हमने भी पढ़ी थी बचपन में बाल-भारती में (कोर्स में थी कक्षा चौथी या पांचवी में). खूब जोर-जोर से गाया करते थे. मगर अब याद नहीं है.चंदन चाचा के बाड़े में,लड़्ते थे मल्ल अखाड़े में,ये पहलवान अम्बाले कावो पहलवान पटियाले का,फ़िर कई दांव-पेचों का नाम सहित जिक्र था. नॉस्टेल्जिया ने घेर लिया.————————बचपन की कविताओं की याद आई तो "कदंब का पेड़" भी याद आई. क्क्षा तीन में थी. किस्मत से नेट पर मिल भी गई. एक बार फ़िर से आनंद लिया. ये रहा लिंक:http://www.anubhuti-hindi.org/sankalan/phool_kadamb/sk_chauhan.htm
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गिरिजेश राव दंगलम देहि देहि की रट लगाए हुए हैं -उनकी तमन्ना पूरी करने का कुछ यत्न करिए -नागपंचमी की शुभ कामनाएं !
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कल मेरे फार्म पर एक नागिन को डर कर नौकर ने मार दिया उसका नाग वहां चक्कर लगा रहा है . आज नाग पंचमी के दिन उसे जीवनदान दिया गया है कल की पता नहीं .
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नागों की जय हो। जमाये रहिये जी।
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आज hi आप की पोस्ट पर आई और आप ने नागराज के दर्शन करा दिए..मुझे तो साँपों से बहुत डर लगता है.नाग पंचमी की शुभकामनयें.
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बढ़िया जानकारी दी है आपने… …… वन्य जीव सरक्षण के चलते मदारियों की हालत बहुत खराब हो गई है . सरकारी डंडे से बचते हुए छिपते छिपाते पेट पालने के लिए बेचारे फिर भी लोगो को नागराज के दर्शन करा रहे है .आज मुझे भी दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ .
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