अमृतलाल वेगड़ उवाच


पिछली टंकियाटिक पोस्ट  पर समीर लाल टिपेरे: अब आप कह रहे हैं, तो ठीके कह रहे होंगे। ठीके तो कह रहे थे – हम नहीं, समीरलाल। इतनी ज्यादा पोस्टें निपटाते हैं तो सोशियो-पोलिटिकली करेक्ट टिपेरना उन्ही से सीखना चाहिये! (कोई व्यंग इण्टेण्डेड नहीं। कल उनका जन्मदिन था, बहुत बहुत बधाई!)

असल में हमारे जैसा कोई चिमिरखी दास लेखन के हत-उत्साह पर कहे तो यह टरकाऊ टिप्पणी ही बनती है। अन्यथा आप सौन्दर्य की नदी नर्मदा वाले अमृतलाल वेगड़ जी को पढ़ें (यह उन्होंने बिना दुर्घटना के शूलपाणेश्वर की झाड़ी पार कर लेने के बाद लिखा है):

Vegad … लेकिन अब तो खतरा निकल गया। किताब (नर्मदा की परिक्रमा पर) एक न एक दिन पूरी हो ही जायेगी। तब क्या होगा?

अव्वल तो मुझे प्रकाशक नहीं मिलेगा। प्रकाशक मिल गया तो ग्राहक नहीं मिलेगा। ग्राहक मिला तो पाठक नहीं मिलेगा। अगर मैं कहूं कि यह यात्रा स्वान्त: सुखाय कर रहा हूं, तो वह अर्धसत्य होगा। मैं चाहता हूं कि जो सुख मुझे मिल रहा है वह दूसरों को भी मिले। मैं "स्वान्त: सुखाय" भी चल रहा हूं तो "बहुजन सुखाय" भी चल रहा हूं। तो कहां है यह बहुजन?

टी.वी. के सामने। टी.वी. और वीडियो कैसेट के इस युग (वर्ष १९९२) में किताब पढ़ने की जहमत भला कौन उठायेगा! टी.वी. खोल दो और कुर्सी में पसर जाओ।

किताब को फैंक दो। अधिक से अधिक "दिवंगत पुस्तक” की स्मृति में एकाध मर्सिया पढ़ दो और फिर उसे भूल जाओ। यह है पुस्तक की नियति। अच्छी तरह जानता हूं, फिर भी इस किताब के लिये खून पसीना एक कर रहा हूं।

मूर्ख!

किताब सन १९९२ में फिर भी फन्नेखां चीज थी। ब्लॉग तो २००९ में बुलबुला है साबुन का! बस वन आफ्टर अदर फुलाये जाओ बुलबुले साबुन के!

कॉण्ट्रेरियन विचार: ब्लॉग तो फिर भी बैठे-ठाले की चीज है। दिये जायें पोस्टें। पर किताब छपाने को (पाठक की किल्लत के युग में भी) काहे बौराये रहते हैं लोग! इतना कागद की बरबादी – जो अन्तत: दीमक के हिस्से ही आनी है।

मैं जाता हूं ह्वीलर्स की दुकान पर और बिना खरीदे चला आता हूं। काउण्टर पर बैठा आदमी मुझे चिरकुट समझ रहा होगा और मैं समझता हूं कि मैने पैसे बचा लिये। दोनो ही सही हैं। इसी तरह ब्लॉगिंग को ले कर कुरबान, परेशान और बेजान – सब सही हैं! 


होशंगाबाद के पास नर्मदा माई के परकम्मावासी (नेट से लिया चित्र):
parkammaavaasiवेगड़ जी का जिक्र हुआ तो परकम्मावासी याद हो आये!

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

28 thoughts on “अमृतलाल वेगड़ उवाच

  1. ज्ञानदत्त जीहम जल्द ही एक वेबसाइट(www.itsindia.co.in) लॉन्च करने जा रहे हैं। देश के श्रेष्ठ ब्लागर्स उस पर लिखें, इसी संदर्भ में आपसे जुड़ाव चाहते हैं। हमारा निवेदन है कि आप हमारे लिए लिखें। आपकी स्वीकृति के इंतजार में।इट्स इंडिया टीमitsindia4u@gmail.com

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  2. चिंता न कीजिये .किताबे छपती रही है रहेगी…पढने वाले ढूंढ ढूंढ के अपनी पसंद की पढ़ते रहेगे..आदमी नाम के जीव में काफी वैरायटी पाई जाती है ..अब देखिये आपने भी अपनी पसंद ढूंढ के पढ़ ली ……

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  3. @ अमित जी – किंडल का देसी संस्करण कन्दील आना चाहिये ४००-५०० रुपल्ली में और हिन्दी की ई-बुक्स मिलनी चाहियें। फिर देखिये क्या पठन क्रांति होती है! यह गैजेट पसन्द तो आया पर १२-१५ हजार खर्च करने की श्रद्धा नहीं बन रही!

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  4. यह किताब अद्भुत है। मैंने भी पढ़ी है। इस तरह के यात्रा वृतांत हर नदी पर लिखे जा सकते, तो क्या बात है।

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  5. किताब सन १९९२ में फिर भी फन्नेखां चीज थी। ब्लॉग तो २००९ में बुलबुला है साबुन का! बस वन आफ्टर अदर फुलाये जाओ बुलबुले साबुन के!लेकिन साबुन के बुलबुले फुलाने में भी तो एक अलग मज़ा है! 🙂ब्लॉग तो फिर भी बैठे-ठाले की चीज है। दिये जायें पोस्टें। पर किताब छपाने को (पाठक की किल्लत के युग में भी) काहे बौराये रहते हैं लोग! इतना कागद की बरबादी – जो अन्तत: दीमक के हिस्से ही आनी है।अब तो ईबुक और ऑडियो बुक की मार्किट ज़ोर पकड़ रही है। अमेज़ॉन.कॉम ने तो बकायदा अपना ईबुक रीडर औज़ार – किन्डल निकाल रखा है; अमेज़ॉन.कॉम से ईबुक खरीदिए और किन्डल पर लोड कर पढ़िए, कहीं भी कभी भी! 🙂 ऐसे ही ईबुक कंप्यूटर पर और मोबाइल पर भी पढ़ी जा सकती हैं। ऑडियो बुक में पढ़ने की आवश्यकता नहीं, इनका तो अनपढ़ व्यक्ति भी लाभ उठा सकता है। किताब को पढ़ के रिकॉर्ड कर लिया जाता है और फिर उस रिकॉर्डिंग को आप वैसे ही खरीद सकते हैं जैसे फिल्मी गाने। एमपी3 को कंप्यूटर, मोबाइल, एमपी3 प्लेयर वगैरह में लोड करिए और किताब का आनंद लीजिए! :)लेकिन पर्सनली यही कहूँगा, इस सब के बाद भी मन परंपरागत किताबों से विमुख नहीं हुआ चाहता, जो मज़ा कागज़ पर छपी किताब को हाथ में लेकर पढ़ने में है वह और किसी में नहीं! 🙂

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  6. किताब मे एक आदमी की आत्मा होती है जो पढने वालो से बतियाती है। कम्प्यूटर तो भूत है जिसमे सैकडो आत्माऐ वासी करती है। किताब के बिना न कोई ब्लोग लिख सकता है ना कम्पुटर पढ सकता है। अब सर! मुझे बताए आप जो इतना कुछ लिखते है वो सोच आती कहॉ से है ? किताबो से! कम्प्यूटर ज्ञान मे मोलिकता कहॉ रही है। कम्प्यूटर ज्ञान मे तो "कोन बाप-किसका बेटा " वाली बाते चरितार्थ होती है।आभार/शुभकामनाएहे! प्रभु यह तेरापन्थमुम्बई-टाईगरSELECTION & COLLECTION

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