सवेरे छ बजे का समय। घाट पर एक नाव दिख रही थी। मैने पैर थोड़ी तेजी से बढ़ाये। वे छ मछेरे थे। अपने जाल सुलझा रहे थे। काम प्रारम्भ करने के उपक्रम में थे।
उनकी नाव किनारे पर एक खूंटे से बंधी थी। किनारे पर जल का बहाव मंथर होता है। अत: स्थिर लग रही थी। नाव पर जाल थे और एक लाल कपड़े से ढ़ंका बड़ा सा चौकोर संदूक सा था। शायद मछलियां रखने का पात्र होगा। आपस में वे अपनी डायलेक्ट में बात कर रहे थे कि दूसरे किनारे पर धार में आगे की ओर जाल डालेंगे।
मेरे कैमरे को देख उनमें से एक दो ने तो कौतूहल दिखाया, पर उनका नेता – जो पौराणिक निषादराज सा लग रहा था; जाल सुलझाने के अपने काम में ही लगा रहा। बिल्कुल शृंगवेरपुर [1] का निषादराज!
उसने शीध्र ही रवानगी को कहा। एक मछेरे ने रेत से खूंटा खींच लिया। तट पर खड़े दो मछेरे नाव पर चढ़ गये। पहले से बैठे एक ने पतवार संभाल ली। उसने पहले बायें हाथ की पतवार चला कर नाव को नब्बे अंश मोड़ा। फिर दोनो पतवार चलाते हुये नाव को बीच धारा में खेने लगा। नाव आगे दूसरे तट की ओर क्षिप्र गति से बढ़ चली।
यह पढ़ने में बड़ा सरल सा लगता है। पर इसे गंगा तट के वीडियो में देखा जाये तो बड़ी अलग सी अनुभूति होती है। कितनी सरलता से तट से विलग होती है नाव और कितनी सरलता से खेने वाला उसे आगे बढ़ाता है। मेरा प्रात: भ्रमण सार्थक हो गया।
आप यह वीडियो देखें। इसे जल्दी खुलने के लिये कम रिजॉल्यूशन का रखा गया है। केवल 68KB/Sec की डाउनलोड स्पीड पर चल सकता है। और मैने अपनी कमेण्ट्री देने का यत्न नहीं किया है – लिख जो दिया है पोस्ट में!
[1]. भगवान राम के केवट यहीं के राजा थे और यह स्थान बीस-बाइस कोस की दूरी पर है|
शिकारपुर के विवेक भैया विवेक की फ़रमाइश पूरी करने के बाद हमको आप ऊ वाला गाना सुनाइये जो उस दिन आप बता रहे थे।
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और सर्र …से नाव सरकने लगी …दुसरे लिंक भी देखूंगी , गंगा मैया की जय हो — दूर से ही दरसन कर लेते हैं …यहां की ओहायो नदी हो चाहे केन्टकी नदी , गंगा जी वाली बात नहीं ..- लावण्या
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आपने तो घर बैठे ही गंगाभ्रमण करवा दिया.धन्यवाद.
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वाह, सार्थक खांटी ब्लॉगिंग कर रहे हैं, प्रातः गंगा किनारे की सैर सेहत के लिए भी बढ़िया और आपके ऑब्ज़रवेशन्स ब्लॉग के लिए बढ़िया। :)जिनको अनुभव नहीं है उनको देखने में नाव खेना बहुत आसान लग सकता है, मुझे भी लगता था कि आसान काम है, लेकिन अनुभव कर जाना कि आसान काम नहीं है, स्टैमिना काफ़ी चाहिए, थोड़ी ही देर में कमर की ऐसी कि तैसी हो जाती है! और मैंने तो अभी एक ही पतवार से खे कर देखी है, एक साथ दो पतवारों से अकेले पूरी नाव खेना उससे अधिक कठिन कार्य जान पड़ता है, कभी मौका लगने पर आज़मा के देखा जाएगा। 🙂
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आदरणीय पांडेय जी,बड़ा अच्छा लगता है आपके ब्लॉग पर आकर गंगा मैया का दर्शन करना …और वहां की पुरांनी सुखद स्मृतियों को संजोना …और उसमें भी आपका इतने आकर्षक ढंग से किया गया वर्णन ….बहुत अच्छा ..हेमंत कुमार
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सावन मे गंगा दर्शन. धन्यवादhttp://hellomithilaa.blogspot.com
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शिकार पुर से बण्टी, सोनू, कालिया और उनके परिवार के सभी सदस्य लिखते हैं : आपका बिलाग हमें बहुत अच्छा लगता है .आपकी पोस्ट का हमें बेसब्री से इन्तज़ार रहता है . आपके जैसा ब्लॉगर हमने आज तक नहीं देखा जो ट्यूब खाली होने के उपरान्त भी ठेले ही जा रहा है !हमें वो वाला गाना सुनवायें जिसमें सलमान खान मीना कुमारी को बाँहों में उठा लेते हैं !
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आप की इन पोस्टो के कारण हम भी गंगा घूमने का मजा ले रहे हैं आभार।
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मल्लाहों का यह टीम वर्क देख के आनंद आ गया.अनुकरणीय है- व्यक्तिगत जीवन के लिए भी और देश की नाव चलाने वालों के लिए भी.
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गंगा तट देखकर मन आनंदित होगया जी. किसी आश्रम की स्थापना का विचार पक्का हो जाये तो हमारा भी खयाल रखा जाये.:)रामराम.
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