हरतालिका तीज के बाद गौरी-विसर्जन वैसी पर्यावरणीय समस्या नहीं उत्पन्न करता जैसी गणेश जी की प्लास्टर ऑफ पेरिस और कृत्रिम रंगों से युक्त बड़े आकार की प्रतिमाओं के विसर्जन से होता है। (संदर्भ – श्री चन्द्रमौलेश्वर प्रसाद जी की टिप्पणी।)
गौरी-गणेश की प्रतिमा छोटी और मिट्टी-रेत की होती है। कोई रंग भी उसपर नहीं लगाया होता। लिहाजा उसके गंगाजी में विसर्जित करने पर अनुचित कुछ नहीं है। अनुचित होता है उसके साथ प्लास्टिक की पन्नियों को फैंकने से।
स्त्रियां घर से एक प्लास्टिक की थैली में प्रतिमा, फूल और अन्य पूजा सामगी ले कर आती हैं और बहुधा वह जस का तस गंगाजी में फैंक चल देती हैं। यूपोरियन स्त्रियों की यह फूहड़ता समझ में नहीं आती। दक्षिण की महिलाओं की कलात्मकता यहां नहीं है। रोज अपना आंगन-दुआर बुहार कर अल्पना-रंगोली बनाना या गीत-संगीत में शिक्षित होना उनमें अधिकतर नहीं पाया जाता। मुख्य मनोरंजन कजिया करने का है। वही भदेसपन दीखता है गौरी विसर्जन में।
मैने देखा – मेरी पत्नीजी एक इस तरह की फैंकी एक प्लास्टिक की थैली खोल गौरी जी का विधिवत विसर्जन कर रही थीं। उस थैली के अन्दर चार थैलियां थीं। और साथ में थी गौरी-गणेश की प्रतिमा।
थोड़ा सा विसर्जन में अनुशासित व्यवहार हो, और काम हो गया। हनुमान जी के मंदिर पर विश्व हिन्दू परिषद वाले ढाई घण्टा लाउड स्पीकर पर भाषण ठेल रहे थे। उसमें जरा इस विसर्जनानुशासन की भी चर्चा का देते तो सुन्दर होता।
[शाम के समय गंगाजी की हाजिरी में देखा कि वे और वेग से बढ़ रही थीं। हहराने की आवाज आ रही थी। पानी तट को धक्का मारता जा रहा था। मेरे देखते देखते मुझे दूसरी ओर से भी घेरने लगीं वे। वापस आने के लिये छलांग मार कर बाहर आना पड़ा! दस मिनट में टापू बनते देखा।]
विसर्जनानुशासन की चर्चा भी की जानी चाहिए चाहे वह कोई भी पर्व हो . यह भी एक मुद्दा है . विसर्जन के पश्चात मूर्तियो आदि की क्या स्थिति होती है इस पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए . विसर्जन के पश्चात आस्था के कितने रूप देखने में आते है इस पर भी द्रष्टिपात किया जाना चाहिए. मुंबई में गणेश विसर्जन के बाद हजारो बड़ी छोटी गणेश मूर्तियाँ यहाँ वहां बिखरी पड़ी रहती है जिन पर कोई ध्यान भी नहीं देता है उन्हें देखकर प्रतीत होता है किस जैसे आस्था पर्वो के बाद खो जाती है . सराहनीय आलेख के लिए आभार.
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समीर जी ओर कुश के विचार उत्तम है .गुजरात में विसर्जन के दौरान प्रदुषण को खूब देखा है ….कोई ऐसा कानून महाराष्ट्र में भी बनना चाहिए ..भावनाये ही यदि कुदरत को हानि पहुचाये तो उन भावनाओं का क्या ?
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धरम-करम का मामला है, क्या कहा जाए इस पर।
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'इसे नारी के विरोध में न माना जाये। पुरुष कोई बहुत साभ्रांत व्यवहार नहीं करते!'ईश्वर न करे, यदि पुरुष बहुत सभ्रांत व्यवहार करने लगें तो शायद आपका यह कथन नारी-विरोधी हो जाएगा 🙂
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"ढाई घण्टा लाउड स्पीकर पर भाषण ठेल रहे थे। उसमें जरा इस विसर्जनानुशासन की भी चर्चा का देते तो सुन्दर होता।"बिलकुल सही कहा. इसके अलावा साधूओं की एक बहुत बड़ी फौज भी है. अच्छा हो वे भी इस तरह का प्रचार करे.
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मैं तो गणपति विसर्जन के समय होने वाली लापरवाही से इस कदर खौफ में हूँ की परसों रात मुझे सपना आया की गणपति बप्पा का विसर्जन हो रहा हैं और उन्हें बहुत बुरी तरह से पटक विसर्जित किया जा रहा हैं . वे चीख रहे हैं मुझे बचाओ . दचक कर मैं उठी .. मैंने तो गणपति का विसर्जन करना बंद कर दिया हैं ,हम गणपति के मूर्ति के समक्ष एक सुपारी का गणपति मान कर पूजन करते हैं ,माटी की मूर्ति संभाल कर रखते हैं और सुपारी का विसर्जन करते हैं .गौरी का विसर्जन भी अभी तक नहीं किया हैं की खुद जाकर कही व्यवस्थित तरीके से करना चाहती हूँ .
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"हनुमान जी के मंदिर पर विश्व हिन्दू परिषद वाले ढाई घण्टा लाउड स्पीकर पर भाषण ठेल रहे थे। उसमें जरा इस विसर्जनानुशासन की भी चर्चा का देते तो सुन्दर होता।"भइया,भाषण देना और लोगों को बरगलाना लगता है आज के युग में एक बात हो गई है.सही बात का प्रचार करने की जुर्रत करो, तो "सठिया गया है" जैसे जुमले सुनने को मिलते हैं,खुदा न खास्ता आचरण कर भी दिखाओ, तो "पगला" तक सुनाने को मिल जाता है, कुल मिला कर दुनिया उन्ही की हुई जा रही है, जो गलत है और भोगना उनकी आने वाली पीढियों को ही पड़ेगा…………."शाम के समय गंगाजी की हाजिरी में देखा कि वे और वेग से बढ़ रही थीं। हहराने की आवाज आ रही थी। पानी तट को धक्का मारता जा रहा था। मेरे देखते देखते मुझे दूसरी ओर से भी घेरने लगीं वे। वापस आने के लिये छलांग मार कर बाहर आना पड़ा! दस मिनट में टापू बनते देखा।"शुभ समाचार का आभार.
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जय हो गंगा मइया की!बहुत बढ़िया लिखा है।बधाई!
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यह चेतावनी समूह सुने तब?
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यूं थैली समेत ही विसर्जित भगवानों को देख कर लगता है कि अपने राम तो नास्तिक ही भले …कम से कम किसी का अनादर तो नहीं…प्रदूषण की चिंता का सवाल एसों के लिए हास्यापद मात्र ही हो सकता है
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