ब्लॉगिंग की सीमायें

कहां रुके एक ब्लॉगर? मैं सोचता हूं, सो मैं पोस्ट बनाता हूं। सोच हमेशा ही पवित्र होती तो मैं ऋषि बन गया होता। सोचने में बहुत कूछ फिल्थ होता है। उच्छिष्ट! उसे कहने का भी मन नहीं होता, पोस्ट करने की बात दूर रही। जिस सोच के सम्प्रेषण का मन करे, वह बात पोस्ट बनाने की – ब्लॉगिंग की एक सीमा बनती है। सही साट।

Web 2.0 पर क्या ब्लॉगिंग की सीमा मात्र इससे तय होती है? शायद नहीं। जो अप्रिय हो, तिक्त हो, गोपन हो और जिसके सम्प्रेषण पर निरर्थक विवाद हो, वह पोस्टनीय नहीं है। पीरियड।

फिर भी बहुत कुछ है मित्र; जिसकी सीमायें टटोलनी चाहियें। Web 2.0 की तकनीक एक दशक पहले न थी। तब सम्प्रेषण के मायने अलग थे। अब तो मैने बिजनेस वर्ल्ड में माला भार्गव का लेख पढ़ा है Web 3.0 के बारे में

आंकड़े, सूचनायें और ज्ञान के आदान-प्रदान में इण्टरनेट अब और सक्षम होगा। उदाहरण के लिये मेरे नाम का गूगल सर्च लाखों मद दिखाता है। आगे Web 3.0 शायद ज्ञानदत्त पाण्डेय के सर्च पर केवल २५-५० सॉलिड लिंक्स को दिखाये। आपका समय अन्यथा व्यर्थ न होगा। अगर आप किसी अन्य ज्ञानदत्त की तलाश में हैं तो वहां भी सरलता से जा सकेंगे इण्टरनेट पर।  शायद भैंसों के तबेले के पास के मेरे शिवकुटी, इलाहाबाद के मकान को भी तलाश लें वेब ३.० की तकनीकों की बदौलत।

पर अभी तो हाल यह है कि बड़े और दानवाकार संस्थान (रेलवे सहित) वेब २.० का ही प्रयोग करने में तरीके/वर्जनायें टटोल रहे हैं। वेब ३.० के प्रयोग की तो उनसे अपेक्षा ही नहीं की जा सकती। वे तो मात्र प्रेस रिलीज जारी करने और पत्रकार सम्मेलन करवा लेने के युग में जी रहे हैं। उनका पब्लिक फेस केवल एक फोटोजीनिक पब्लिक रिलेशन अफसर भर है, जो मेरे हिसाब से बदलते युग में अपर्याप्त है।

ऐसे में इण्डीवीजुअल ब्लॉगर क्या करे? मेरे विचार से उसे नये मानक तय करने में जैसा भी योगदान सम्भव हो, करना चाहिये। ब्लॉग शिशु से उसे एक वैचारिक निरंकुश दैत्य नहीं बनाना है। पर उसकी भ्रूण हत्या भी नहीं होनी चाहिये। लिहाजा प्रेस रिलीज लेखन से इतर ब्लॉगिंग की सीमाओं की तन्यता (elasticity) की तलाश करनी होगी।

उदाहरण के लिये शशि थरूर ट्विटर पर हैं, छ लाख फॉलोअर्स के साथ। वे Web 2.0 पर उपलब्धता की सीमायें तलाश रहे हैं।  और भले ही शुरू में कुछ घर्षण हो; आगे चल कर मन्त्री के वेब २.० पर उपलब्ध होने के लाभ नजर आयेंगे – सरकार को भी, मन्त्री को भी और लोगों को भी। अडवानी ब्लॉग पर जमने के पहले ही डिरेल हो गये; पर उत्तरोत्तर नेताओं को सोशल मीडिया पर इण्टरेक्टिव बनना ही पड़ेगा।

इसी तरह शायद रेलवे के उच्च अधिकारियों को भी अपनी उपस्थिति दर्ज करानी चाहिये। भारतीय रेलवे ट्रेफिक सर्विस की वेब साइट पर MT’s Desk अपडेट नहीं हुआ है। शायद आगे हो। अगर हमारे सभी जोनल रेलवे के महाप्रबन्धक सोशल मीडिया पर आयें तो नये मानक भी तय हों! तब तक यूं ही मुझ जैसे इण्डीवीजुअल ब्लॉगर कुछ लिखते-बनाते-पोस्ट करते रहेंगे। मैं यदा कदा विदित तिवारी या आर आर साहू जैसे लोगों से आपको मिलाता रहूंगा – अगर मुझे आपका रिस्पॉंस मिलता रहा तो।


वेब 1.0: सामग्री वेब पर। डोमेन, वेबसाइट, सर्च, हिट्स, मल्टीमीडिया, खरीद फरोख्त, विज्ञापन, ई-मेल, मैसेज आदि।

वेब 2.0: वेब के मालिक – आप और मैं। व्यक्ति, समूह, सोशल नेटवर्किँग, आदान-प्रदान, सामग्री शेयर करना, ब्लॉग, विकी। सूचना के खलिहान से आगे बढ़ कर लोगों का जीवंत समूह।

वेब 3.0: वेब स्मार्ट बन कर आपकी जरूरतें समझेगा। सर्च रिजल्ट रेण्डम और शुष्क नहीं वरन समझदार और रीयल टाइम कीमत वाले होंगे। बेहतर समझ के लिये ऊपर लिंक दिये गये बिजनेस वर्ल्ड के लेख को पढ़ें।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

36 thoughts on “ब्लॉगिंग की सीमायें

  1. देव !जानकारियाँ अच्छी लगीं ..एक तो ठेठ हिन्दी का विद्यार्थी हूँ और तकनीकी-भीरु भी , फलतः जानकारियों को व्यव्हार में उतार पाने में असफल रहता हूँ , कोफ़्त होती है खुद से , … काश एक 'क्लिक' दिमाग में ऐसा होता कि समझ-कपाट खुल जाता !

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  2. अच्छी जानकारी मिली। बाक़ी जहां तक तकनीकी दक्षता का सवाल है धीरे-धीरे कुछ तो आ ही जायेगी।

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  3. समझदार की हो तो मौत है। अज्ञान का अपना सुख है। सो, मैं परम सुखी जमात का सदस्‍य हूँ। जब वेब-1 का ही मतलब पता नहीं तो वेब-3 क्‍या समझूँ।हॉं, सीमा तो सबकी होती ही है, होनी ही चाहिए। सीमाहीन आचरण किसी को सुख नहीं देता।

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  4. हम्म, पर जो बात अपने को समझ नहीं आई वह यह कि ब्लॉगर को रूकने की आवश्यकता काहे है? और अप्रिय चीज़ काहे नहीं छापनी चाहिए? यदि सदैव ही सुगंध का आनंद लिया जाएगा तो उसकी कीमत कौड़ी की भी नहीं रहेगी क्योंकि उसको कोई एप्रीशिएट नहीं करेगा, उसकी कीमत तभी तक है जब तक लोगों को दुर्गन्ध का अनुभव है। 🙂

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