आँखों के दो तारे तुम ।
रात शयन से प्रात वचन तक, सपनों, तानों-बानों में,
सीख सीख कर क्या भर लाते विस्तृत बुद्धि वितानों में,
नहीं कहीं भी यह लगता है, मन सोता या खोता है,
निशायन्त तुम जो भी पाते, दिनभर चित्रित होता है,
कृत्य तुम्हारे, सूची लम्बी, जानो उपक्रम सारे तुम,
यह पोस्ट श्री प्रवीण पाण्डेय की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है। आजकल वे अपने बच्चों को पढ़ा रहे हैं। सो बच्चों के विषय में सोचना, कविता करना समझ में आता है। कितना स्नेह है इस कविता में बच्चों के प्रति!
कहने से यदि कम हो जाये उच्छृंखलता, कह दूँ मैं,
एक बार कर यदि भूलो तो, चित्त-चपलता सह लूँ मैं,
एक कान से सुनी, बिसारी, दूजे से कर रहे मन्त्रणा,
समझा दो जो समझा पाओ, हमको तो बस मन की करना,
अनुशासन के राक्षस सारे, अपने हाथों मारे तुम,
आँखों के दो तारे तुम ।२
पैनी दृष्टि, सतत उत्सुकता, प्रश्न तुम्हारे क्लिष्ट पहेली,
समय हाथ में, अन्वेषणयुत बुद्धि तुम्हारी घर-भर फैली,
कैंची, कलम सहज ही चलते, पुस्तक, दीवारें है प्रस्तुत,
यह शब्दों की चित्रकारिता या बल पायें भाषायें नित,
जटिल भाव मन सहज बिचारो, प्रस्तुति सहज उतारो तुम,
आँखों के दो तारे तुम ।३
अनुभव सब शब्दों में संचित, प्रश्नों के उत्तर सब जानो,
स्वत सुलभ पथ मिलते जाते, यदि विचार कोई मन में ठानो,
मुक्त असीमित ऊर्जा संचित, कैसे बाँध सके आकर्षण,
चंचल चपल चित्त से सज्जित, रूप बदलते हर पल हर क्षण,
उलझे चित्रण, चंचल गतियाँ, घंटों सतत निहारे तुम,
आँखों के दो तारे तुम ।४
बादल बन बहती, उड़ती है, कहीं बिचरती मनस कल्पना,
और परिधि में सभी विषय हैं, सजती जीवन-प्रखर अल्पना,
अनुभव के अम्बार लगेंगे, बुद्धिमता के हार सजेंगे,
अभी लगे उत्पातों जैसे, उत्थानों के द्वार बनेंगे,
सीमाओं से परे निरन्तर, बढ़ते जाओ प्यारे तुम,
आँखों के दो तारे तुम ।५
"अगर अभी इतनी उम्दा कविता कर सकते हो तो तुम्हारा बैल होना सफल हो गया।" ये कन्फ़्यूशियस ने कहा था, ऐसा झूठ मैं नहीं कह सकता। ये मेरे विचार हैं, जो जनता की आवाज़ भी हैं।
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Beautiful poem !Glad to know the ocean of love in a father for little angels.Congrats !
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बहुत ही सुन्दर रचना…प्यार से सराबोर….बहुत कम ऐसा होता है कि पिता भी यूँ अपना प्यार दर्शाए…वे अक्सर पोटली में छुपा कर ही रखते हैं…ऊपर से गाँठ लगा…बहुत अच्छा लगा इसे पढना
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सुन्दर रचाव — ''… उलझे चित्रण, चंचल गतियाँ, घंटों सतत निहारे तुम ''.ब्लॉग के इन्द्रधनुषी स्वरुप की तारीफ में हिमांशु भाई की बात में अपनी बात भी शामिल करता हूँ .. .प्रवीण जी को आभार ,,,
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ये तो कुछ भी नहीं है..आगे आगे देखिये आप क्या-क्या बनते हैं….बच्चों के लिए…बहुत सुन्दर कविता …!!
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