बालम मोर गदेलवा बड़ी जबरदस्त फागुनी पोस्ट है। आपे नहीं पढ़ी/सुनी तो वहां हो आइये! हिन्दी ब्लॉगिंग वहां अपनी समग्रता पर है।
बाकी, सवाल यह है कि जवान पत्नी का गदेला बालम (बच्चा पति) क्यों होता है? होता जरूर रहा होगा। शायद बेमेल विवाह का यह रिवर्स संस्करण भी समाज की कोई जरूरत रही हो। आजकल गदेला बालम नहीं दीखते। पर मेरी मां ने एक कजरी बताई जिसमें बालम गदेला है।
बड़ी हास्य-युक्त कजरी है। जरा पढ़ें –
अंगुरी पकड़ि क दुलहा लै चलीं बजार होइ
जहंवैं देखैं लाई गट्टा, उहीं परैं छैलाई होई
उंहां क बानिन पूछईं, के हयें तोहार होइ
की तोहरा भईया-भतीजा, की हयें सग्ग भाई होइ
नाहीं बहिनी भईया-भतीजा, नाहीं सग्ग भाई होइ
पुरबुज क कमईया बहिनी, दुलहा हयें हमार होइ
उपरां से चील झपटी, दुलहा लई गई उठाइ होइ
भल किहू चील्ह बहिनी,
दिन दिन क झबरिया बहिनी, आज लई गऊ उठाई होइ
नायिका अपने छोटे बालक पति से आजिज आ गयी है। उसकी उंगली पकड़ कर बाजार जाती है। बालक पति जहां भी लाई-गट्टा (खाने की चीजें) देखता है, वहीं लेने की जिद करने लगता है। बनिया की औरत पूछती है – कौन है यह? तुम्हारा रिश्ते में भाई-भतीजा या सगा भाई? वह बताती है कि नहीं बहन, यह तो पूर्वजन्म की कमाई है कि यह पति मिला है। अचानक ऊपर से चील झपट्टा मार कर उसके पति को उठा के जाती है। उसके मुंह से चील के प्रति धन्यवाद के स्वर निकलते हैं। अच्छा किया चील बहिन जो रोज रोज की उलझन से मुझे मुक्ति देदी।
वाह। मेरी मां शायद कजरी पूरा याद नहीं कर पा रही हों, पर काम भर की पोस्ट तो उन्होने निकलवा ही दी!
(कजरी सावन-भादौं की चीज है। लड़की नैहर आई होती है। पति उतना प्रिय नहीं लगता। बालम की जगह बाबुल का रंग ज्यादा चढ़ा होता है। लिहाजा चील पति को उड़ा ले जाये जैसी कल्पना हिलोर मारती है। इसके विपरीत फगुआ फागुन की चीज है। लड़की को सासुर पसन्द आता है। पति का कोरां – गोद – अच्छी लगती है। उस समय गदेलवा बालम भी प्रिय होता है! मौसम का फेर है जी!)
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छात्रों की फगुनाहट |
कल अभय तिवारी से मिलने जा रहा था तो रास्ते में विश्वविद्यालय के गदेलों को फागुनी हुडदंग करते देखा। डीजे के साथ आधी सड़क पर टॉप-लेस लुंगाडे नाच रहे थे। पुलीस वाला कण्ट्रोल कर रहा था तो उससे मजाक कर रहे थे।
कपारे पर चढ़ गई है होली आगमन की बयार!
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(राजीव जी की टिप्पणी पर मैं चित्र कार्टूनाइज कर रहा हूं! वे सही कह रहे हैं। लोग सडक पर अधनंगे घूम सकते हैं, पर नेट पर उनकी प्राइवेसी भंग हो सकती है! या भद्रजनों को असहज लग सकता है! 🙂 )
आपकी नयी पोस्ट भी लगता है आप की तरह भंग के नशे में गायब हो गयी भाई जी !
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आप और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ…
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फगुनाहट से सनी, शानदार प्रविष्टि ! ’बालम मोर गदेलवा’ की रस-भंगिमा और भी गाढ़ी हो गयी है इस पोस्ट को पढ़कर ! आभार ।
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गदेला इंस्टिट्यूट ऑफ फण्डामेंटल रिसर्च सेंटर के छात्र अर्धनग्न हो यहां क्या कर रहे हैं। वैसे, गदेला इज अ रिफाइंड वर्जन ऑफ बचवा 🙂 बढिया पोस्ट।
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बहुत ही सुंदर पोस्ट, लेकिन असल जिन्दगी मै तो ऎसा नही होता होगा, मुझे लगता है यह सिर्फ़ मजाक के लिये गीतो मै ही होगा,धन्यवाद
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इन अर्धनग्न युवाओं को चील उठा ले जाये और गदेला बालम को बख्श दे ।
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आपकी पोस्ट आज तो मूड में है,सब मौसम का असर है….
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दिन दिन क झबरिया बहिनी, आज लई गऊ उठाई होइ…हा..हा..हा..मजेदार पोस्ट है.
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सब मौसम का असर है, दो दिन पहले किसी से बात हो रही थी… फागुन में मन क्यों बौराता है ! मैंने कहा 'मन ठण्ड में सिकुड़ा होता है फागुन में तेजी से फैलता है तो खाली जगह होने पर बौराना स्वाभाविक है' 🙂
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मस्ती तो बहुत है जी….बीबी कैसी भी हो, आदमी कुछ नहीं कहता…और चील भी उसे नहीं उठाती….क्यों……बहनापा है क्या….ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही
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