मैने प्रवीण पाण्डेय से विण्डोज मोबाइल में हिन्दी की-पैड Eyron(mobile keyboard) का प्रयोग कर हिन्दी फर्राटे से लिखने का जुगाड़ पूछा। जो उपाय बताया, उसे सरल हिन्दी में कहा जायेगा – अभ्यासयोग। जितना प्रयोग होगा, उतना तेज बनेगा औजार।
मेने सोचा, यह इति होगी ई-मेल वार्तालाप की। पर हिन्दी के प्रयोग पर प्रवीण ने एक अत्यन्त स्तरीय पोस्ट लिख डाली है। आप यह पोस्ट देखें। |
बचपन में हिन्दी वर्णमाला सीखने के बाद जब आंग्लभाषा सीखनी प्रारम्भ की तो वैशाखियाँ हिन्दी की ही थीं। ’Apple’ अभी तक दिमाग में ’एप्पल’ के रूप में धँसा हुआ है। एक भाषा से दूसरी भाषा ’लिप्यंतरण’ (Transliteration) के माध्यम सीखना स्वाभाविक है। अंग्रेजी सीखना अन्य भाषायें सीखने से और भी कठिन था क्योंकि यहाँ जो लिखा जाता है वही बोला नहीं जाता है। दुगुना परिश्रम। सोचा कि अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है, परिश्रम तो करना ही पड़ेगा। भौकाल था। कोई कहीं अंग्रेजी में सरपटियाता था तो लगता था कि ज्ञान, फैशन और आकर्षण तीनों एक साथ अवतरित हो गये हैं। एक बार सवारी करने के बाद तो बिना हिन्दी की सहायता के अंग्रेजी के घोड़े सरपट दौड़ाने लगे यद्यपि बोलना सीखने में दो दशक और लग गये।
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इस कुंजीपटल को अब भारत सरकार ने भी आधिकारिक घोषित कर दिया है । Eyron(mobile keyboard), Microsoft, शब्दकोष.कॉम व अन्य ने भी इसी ले-आउट को मान लिया है । |
अभी तक हिन्दी और अंग्रेजी दोनो ही मन में स्वतन्त्र रूप से जी रही थीं। कोई व्यवधान नहीं। जहाँ एक ओर शिक्षा, परीक्षायें और प्रशिक्षण आदि अंग्रेजी में बीत रहा था वहीं दूसरी ओर अभिरुचियाँ, लेखन और पाठन मातृभाषा हिन्दी में मगन थीं। सौहार्दपूर्ण सहअस्तित्व। पुस्तकें पढ़ते थे और डायरी में लिखते थे । कागज ने भी कभी हिन्दी-अंग्रेजी का भेद नहीं किया, दोनों को समान रूप से स्वीकार किया और प्रस्तुत किया।
समस्या तब प्रारम्भ हुयी जब कम्प्यूटर और इण्टरनेट का प्रादुर्भाव हुआ। अंग्रेजी ज्ञान के कारण इस क्षेत्र में हम भारतीय बहुत आगे बढ़ गये। तार्किक क्षमता से युक्त भारतीय सारे विश्व में छाने लगे। अंग्रेजी द्वारा शासित इस क्षेत्र में हिन्दी की दशा फिर भी दयनीय रही। उस समय सिलिकान वैली में हिन्दुस्तानी अपनी प्रतिभा के पटाखे छोड़ने में व्यस्त थे।
सबसे पहले फोण्ट की समस्या आयी। प्रयास जो भी थे, सराहनीय थे पर बिखरे थे। हर फोण्ट के लिये अलग अलग कुंजीपटल। पहला टाइप करने में समस्या, उसे दूसरे कम्प्यूटर में पढ़ने के लिये फोण्ट के साथ लोड करने की समस्या और उन सबसे यदि उबर लिये तो इण्टरनेट पर अपलोड करने की समस्या।

सीडैक नामक संस्था ने इस दिशा में सम्यक प्रयास किये और ऑन-स्क्रीन हिन्दी कुंजीपटल तैयार किया। गूगल महाराज ने अपनी विस्तारवादी नीति के अन्तर्गत हिन्दी के लिये एक ट्रांसलिटरेशन (Transliteration) का माध्यम तैयार किया जो कि बड़ा डाटाबेस होने के कारण सर्वर बेस्ड था और इण्टरनेट के माध्यम से ही चलता था। उसी को और विकसित कर कुछ दिनों पहले एक और सॉफ्टवेयर आया है जो कि ऑफ लाइन भी कार्य करने में सक्षम है और Word based है। बराह/बारह का भी सॉफ्टवेयर आया जो कि वही क्षमता रखता है पर वह Characters based है। यह अच्छी बात हुयी कि जो फोण्ट आया वह यूनीकोड था और वह हर जगह चल सकता थ।
बचपन का बदला आज निकाला जा रहा है। जो कल तक वैशाखी थी आज उसी को वैशाखी की आवश्यकता पड़ रही है। आज यदि हमें ‘सेव’ लिखना है तो ‘sev’ टाइप करना पड़ेगा और वही मन में धँसा हुआ है। यदि आप ’क्षमा’ या ’ज्ञान’ जैसे शब्द सहज रूप से लिख सकते हैं तो आपको हिन्दी में डॉक्टेरेट पाने का पूर्ण अधिकार है। एक अक्षर लिखने के लिये तीन चार बार कुंजीपटल दबाना पड़ता है।
कम्प्यूटर में तो फिर भी थोड़ा स्थायित्व आ गया है, मोबाइल जगत में अभी भी हिन्दी का नामलेवा कोई नहीं है। यदा कदा कोई एसएमएस हिन्दी में आता है तो वह भी डब्बाकार बनकर रह जाता है । मोबाइल में हिन्दी कुंजीपटल है ही नहीं। टचस्क्रीन सेटों में ऑनस्क्रीन कुंजीपटल विण्डो मोबाइल छोड़कर किन्ही और सेटों में नहीं है। वह एक इज़रायली कम्पनी (जी, हां! भारतीय नहीं) ने विकसित किया है। आईफोन ने तो हिन्दी या किसी अन्य भारतीय भाषा को इस योग्य नहीं समझा कि जिनका सपोर्ट उनके द्वारा विकसित किया जाये। हिन्दी के भविष्य का सारा दारोमदार अब किस पर है, किसी को पता नहीं । हम कदाचित उस समाज का अंग हो चुके हैं जिसे जो मिल जाये उसी में प्रसन्न रहना आता है।
कुछ दिनों पहले Indic inscript keyboard पर टाइप करने का प्रयास किया। समय अधिक लगा पर संतुष्टि मिली। अपनी भाषा टाइप करने के लिये अंग्रेजी की सहायता न लेने का हठ बचकाना हो सकता है पर धीरे धीरे टाइपिंग की गति भी सुधर जायेगी और मन की गत भी।
यह तीन साल पहले था, जब मैने कम्प्यूटर पर पहले पहल हिन्दी में लिख कर ब्लॉग पर पोस्ट किया था – फरवरी २२’२००७ को। क्या सनसनी थी।
और कल रात मोबाइल फोन पर उक्त Eyron ऑन स्क्रीन की-बोर्ड से लिख कर रजाई ओढ़े ओढ़े पोस्ट किया तो वैसा ही सनसनाहट का मामला था। कई बड़े, महान और सीनियर ब्लॉगर होंगे। पर कौन ऐसी सनसनाहट अनुभव करता है एक फोटो और तीन लाइने पोस्ट कर! हां जी, अनूप शुक्ल की डेढ़ गजी पोस्टें जहां जाना चाहें जायें। अपन तो इसी में प्रसन्न हैं!
अपडेट (११ बजे) – “बधाई” की बलि चढ़ती एक और पोस्ट! 🙂
अच्छी जानकारी है….हम तो अपने गूगल से ही खुश हैं….वैसे सीखना है बहुत कुछ
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@ विवेक जी, – हमें याद है एक बार आपने ब्लॉग को भार-मुक्त किया था । कितना खुश हुआ था । अब फिर धीरे धीरे करके बहुत विजेट लादते जा रहे हैं और एक नजर बगल में दिख रहे आज वाले सुविचार विंडो पर भी डाला जाय…. सुविधायें मेहमान की तरह आती हैं। पसर जाती हैं लम्बे समय तक; और मेजबान बन जाती हैं। अन्तत: वे आपको दास बना लेती हैं 🙂
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बहुत उपयोगी पोस्ट—काफ़ी अच्छी जानकारियां दी गयी हैं ।
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हमें याद है एक बार आपने ब्लॉग को भार-मुक्त किया था । कितना खुश हुआ था । अब फिर धीरे धीरे करके बहुत विजेट लादते जा रहे हैं । बेचारा ब्लॉग !
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आगे का कठिन रास्ता भी हम तय कर लेंगे, यहाँ तक तो पहुँच ही गये हम ।
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तीन वर्ष पूर्ण होने की पहले बधाई स्वीकारें बाकि बाद में पढ़ने और करने के बाद…आभार.
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अपने पिछड़ेपन का आभास होता है इन नई तकनीकों के बारे में पढ़कर. कुछ करना पड़ेगा.
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आईफोन पर एक ऐप है तो हिंदी कीबोर्ड का. फ्री नहीं है इसलिए डाउनलोड नहीं किया. ट्राई किया तो बताता हूँ कैसा है.पहले बधाई तो स्वीकारें 🙂
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पहले तो बधाई स्वीकारें.अब बताएं यह "भौकाल" क्या होता है?देसी शब्द ठेलने जारी रहे, भाषा के भारतीयपन के लिए जरूरी है. बस हम जैसे अहिन्दीभाषी क्षेत्र वालों को अर्थ बताते रहें.
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तीन साल पूरे होने की बधाई।हम भी आजकल तक़नीक के बारे मे पूछताछ करना शुरू कर दिये हैं।अब लगने लगा है कि काम चलाऊ स्टाईल ठीक नही है।
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