छ सौ रुपल्ली में साल भर लड़ने वाला भर्ती कर रखा है मैने। कम्प्यूटर खुलता है और यह चालू कर देता है युद्ध। इसके पॉप अप मैसेजेज देख लगता है पूरी दुनियां जान की दुश्मन है मेरे कम्प्यूटर की। हर पांच सात मिनट में एक सन्देश दायें-नीचे कोने में प्लुक्क से उभरता है:
गांधीवादी एक साइट देख रहा हूं, और यह मैसेज उभरता है। मैं हतप्रभ रह जाता हूं – गांधीवादी साइट भी हिंसक होती है? अटैक करती है! एक निहायत पॉपुलर ब्लॉगर (नहीं, नहीं, समीर लाल की बात नहीं कर रहा) का ब्लॉग देखते हुये यह मैसेज आता है। मैं अगेन हतप्रभ रह जाता हूं – बताओ, कितनी बड़ी बड़ी बातें बूंकते हैं ये सज्जन, पर मेरे कम्प्यूटर पर हमला करते, वह भी छिप कर, शर्म नहीं आती! अरे, हमला करना ही है तो बाकायदे लिंक दे कर पोस्ट लिख कर देखें, तब हम बतायेंगे कि कौन योद्धा है और कौन कायर! यह बगल में छुरी; माने बैक स्टैबिंग; हाईली अन-एथिकल है भाई साहब!
कई बार घबरा कर ऐसे मैसेज आने पर मैं View Details का लिंक खोलता हूं। वहां नॉर्टन एण्टीवाइरस वाला जो प्रपंच लिखता है, वह अपने पल्ले नहीं पड़ता। मैं चाहता हूं कि यह अटैक को ऐसे ही रिपल्स करता रहे पर पॉप अप मैसेज दे कर डराये मत। पर शायद छ सौ रुप्पल्ली में योद्धा नौकरी पर रखा है, उसके मुंह बन्द रखने के पैसे नहीं दिये। कुछ देर वह मुंह बन्द रख सकता है; हमेशा के लिये नहीं!
आप जानते हैं इस योद्धा और इसकी जमात को? वैसे इस सतत युद्ध की दशा में कुछ ब्राह्मणवादी लोग यदाकदा री-फॉर्मेट यज्ञ करा कर अपने कुछ महत्वपूर्ण डाटा की बलि देते हैं। पर यज्ञ की ऋग्वैदिक संस्कृति क्या एनवायरमेण्टानुकूल है?
कल मेरे वाहन का ठेकेदार आया कि इस महीने उसका पेमेण्ट नहीं हो रहा है। अकाउण्ट्स का कहना है कि कैश की समस्या के कारण सभी टाले जाने वाले बिलों का भुगतान मार्च के बाद होगा। यह अकाउण्टिंग की सामान्य प्रेक्टिस है। कर्मचारियों को वेतन तो मिल जाता है – पर भत्ते (जैसे यात्रा भत्ता) आदि अगले फिनांशियल सत्र के लिये टाल दिये जाते हैं।
कैश क्रंच? पता नहीं, यह तो मुझे अकाउण्टिंग बाजीगरी लगती है।
मैं एक दूसरी समस्या की बात करूं। कई कम्पनियां, जब मन्दी के दौर में थीं, और उनका मुनाफा घट गया था तो खर्च कम करने के उद्देश्य से कर्मचारियों की छंटनी कर रही थीं। उनमें से बहुत सी ऐसी भी रही होंगी जिनके पास वेतन देने के लिये पर्याप्त रोकड़ा रहा होगा। ऐसी कम्पनियां मेरे विचार से छंटनी कर सही काम नहीं कर रही थीं। अपने कर्मचारियों का पोषण उतना ही जरूरी कर्तव्य है, जितना मुनाफा कमाना। हां, आपके पास पैसा ही नहीं है तो छंटनी के अलावा चारा नहीं!
कम्पनियां जो अपने कर्मचारियों, ठेकेदारों और अपनी एंसिलरी इकाइयों का ध्यान मात्र मुनाफे के चक्कर में दर किनार करती हैं, न अच्छी कम्पनियां हैं और न ही मन्दी से निपटने को सक्षम।
एक और बात गेर दूं। अपने टाइम मैनेजमेण्ट पर पर्याप्त गोबर लीप दिया है मैने। कल ६८८ बिन पढ़ी पोस्टें फीडरीडर से खंगाली। पर देखता हूं – पीडी, प्राइमरी का मास्टर और अभिषेक ओझा दर्जनों पोस्टो के रिकमेण्डेशन पटक लेते हैं, ट्विटर और गूगल बज़ पर। कौन सी चक्की का खाते हैं ये!
खैर अपना टाइम मैनेजमेण्ट शायद एक आध हफ्ते में सुधरे। शायद न भी सुधरे।
मुझे लगता है कि बाजार में कम्प्यूटर वायरस का जिस स्तर पर हौआ खड़ा किया गया है वास्तव में आम उपयोगकर्ता को खतरा उतना बड़ा है नहीं. सौ प्रतिशत पायरेटेड सॉफ़्टवेयर पर चलने वाले भारतीयों में भी एन्टीवायरस बनाने वाली कम्पनियां अपना उत्पाद बेचने के लिये इस प्रकार का हायतौबा सीन क्रियेट किये हुए हैं. हार्डवेयर वेन्डर्स तक अपनी दुकानों में थोक के भाव एन्टी-वायरस के डब्बों को सजाए बैठे हैं. उनका अपना प्रोफ़िट जुड़ा है इससे.पिछले दस से ज्यादा वर्षों से मैं मुफ़्त में उपलब्ध अवास्ट, एवीजी और अब अवीरा का उपयोग करता आ रहा हूं. आज तक कोई परेशानी नहीं हुई.
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अजी नींबू ओर मिर्ची धागे मै पिरो कर रख दो सामने ओर जब तक पीसी चालू ना हो जाये तब तक " जल तु जलाल तु….. वाला मत्र पढते रहे, बाकी हनुमान जी खुद ही देख लेगे आप की भगति मै शक्ति होनी चाहिये ओर ६०० रुप्पली भी बचा ले
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और हाँ पी डी रिकमेन्डेशन वाकई कमाल होते है..
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केस्परस्काई ज्यादा बेहतर है और सस्ता भी.. हमने वही डाल रखा है.. फ्री वालो के चक्कर में मत पढियेगा.. यदि देता इम्पोर्टेन्ट हो..लगे हाथ पोपुलर ब्लोगर का नाम भी बता देते तो..
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मनुष्य को बुरे वक्त में सही निर्णय लेना ही उनकी अन्दर की कार्य क्षमता,कुशलता को दर्शाता है | जो लोग ऐसे वक्त में अपने ही लोगों की छंटनी कर देता ,उनके योग्यता पर प्रशनचिंह जरूर माना जाएगा | चुकी यह तो एक मात्र अंतिम विकल्प हो सकता है |ये 600 रुपैये के हवालदार हमारी चमचागिरी करता है ,इसीलिए वो सिर्फ अपनी मौजूदगी दिखाता रहता है | अगर वो कुछ भी ना दर्शाय तो आप ही कहेंगे ,भाई ये तो सो रहे है शायद किसी काम के नहीं है|उतम लेख है आपकी |धन्यबाद |
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gyan ji bharat men to recession ka sirf jhootha rona roya gaya. mandi ke bahane jahan chantani hui unka munafa thoda kam hua ghata kisi ko nahin hua lekin sarkari riyayat aur chantani se unka munafa zarror bacha rah gaya. and this pure business strategy.
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आप उक्त ब्लॉगर को मेल कर आगाह करें कि उसके ब्लॉग से कोई स्क्रीप्ट जुड़ी हुई है. उसे ठीक कर ले. बहुत बार ऐसा जानबुझ नहीं किया जाता. शेष छह सौ में खरीदा है तो चिल्ला चिल्ला कर बताएगा ही कि वह काम कर रहा है. 🙂
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सब से ज्यादा आपके योद्धा का प्ल्लुक से उभरना जमा।हमारा भी योद्धा प्ल्लुक ही करता है।क्या सभी योद्धा प्ल्लुक ही करते हैं?इस प्ल्लुक-प्ल्लुक को नेशनल अलार्मिंग सिस्टम मे कन्वर्टियाने का दिल कर रहा है।
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पता नहीं पिल्सबरी किस चक्की में आटा पिसते हैं.. हम तो उसी का आटा खाते हैं.. :)वैसे अभी भी मेरे रीडर में लगभग ५५० बिना पढ़े हुए पोस्ट रखे हुए हैं.. पता नहीं वे कब खतम होंगे.. टाइम मैनेजमेंट के मारे हुए हम भी हैं.. 😦
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प्राइमरी का मास्टर यह इसलिए आजकल कर पा रहा है सर क्योंकि१- दो महीने से ब्लॉग्गिंग बंद२- ६ महीने से लगभग टिपण्णी करना बंद३- गूगल रीडर पर ही सबको निपटाता हूँ४-और रीडर पर शेयर का एक बटन दबाया ….तो वह सीधे बज्बजाने लगता है !चाहे तो हमारे भी ऊपर आजमाए टोटके आप आजमा के देख सकते हैं … और हाँ आटा तो हम अपनी फतेहपुरिया चक्की का ही खाते हैं ….कहें तो आपकी माल-गाडी में भिजवा दें ? 🙂
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