पिलानी में जब मैं पढ़ता था को कनॉट (शिवगंगा शॉपिंग सेण्टर को हम कनॉट कहते थे) में एक सैलून था। वहां बाल काटने वाला एक अधेड़ व्यक्ति था – रुकमानन्द। उसकी दुकान की दीवार पर शीशे में मढ़ा एक कागज था –
रुकमानन्द एक कुशल नाऊ है। मैं जब भी पिलानी आता हूं, यही मेरे बाल बनाता है।
– राजेन्द्र प्रसाद
जी हां, वह सर्टीफिकेट बाबू राजेन्द्र प्रसाद का था। रुकमानन्द के लिये प्राउड पजेशन! मैं अपने को गौरवान्वित महसूस करता था कि उस नाई से बाल कटवाता हूं जो बाबू राजेन्द्र प्रसाद के बाल काट चुका है।
बाबू राजेन्द्र प्रसाद को, बकौल स्तुति, ईंटालियन सैलून युग का जीव माना जा सकता है। सरल गंवई। उन्होने जरूर ईंटा पर बैठ कर बाल कटवाये होंगे। रुकमानन्द आज के समय में हो तो उसका बाबू राजेन्द्र प्रसाद वाला सर्टीफिकेट मॉड इन्जीनियरिंग स्टूडेण्ट्स के लिये एक नेगेटिव प्वॉइण्ट हो जाये! पता नही आप में से कितने रुकमानन्द की ब्राण्ड-वैल्यू को सम्मान दें!
पर पिछले श्राद्ध के समय में यहीं गंगा किनारे ईंटालियन सैलून विद्यमान था (पद्म सिंह भी शायद उसी ईंटालियन सैलून की बात करते हैं बज़ की चर्चा में)। मैने उसका फोटो भी ठेला था पोस्ट पर। पता नहीं आपमें से कितनों ने देखा था वह स्लाइड-शो। वह चित्र पुन: लगा दे रहा हूं।
पढ़ें – श्राद्ध पक्ष का अन्तिम दिन
नाऊ का पेशा अभी भी गांव में एक व्यक्ति को गुजारे लायक रोजगार दे सकता है। मेरे सहकर्मी श्रीयुत श्रीमोहन पाण्डेय ने एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बताया भी है। उस व्यक्ति की चर्चा मैं आगे पोस्ट “नाऊ – II” में करूंगा।
अभी तो मुझे दो लोग याद आ रहे हैं। भूतपूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और अलबर्ट आइंस्टीन। कलाम साहब का नाई तो सेलेब्रिटी हो गया है। रुकमानद क्या बराबरी करेगा उसकी। अलबर्ट आइंस्टीन तो इतने व्यस्त रहते थे अपने आप में कि उनकी पत्नी उनके बाल काट दिया करती थीं। मैं भी सोचता हूं, कि मेरे बाल (जितने भी बचे हैं) अगर मेरी पत्नीजी काट दिया करें तो क्या बढ़िया हो! पर उनका नारीवादी अहंकार अभी इस काम के लिये राजी नहीं हुआ है – हां कभी कभी मेरे कानों पर उग आये बालों को कैंची से कतर देने की कृपा कर देती हैं!
इति नाऊ पुराण; पार्ट वनम्!
बचपन की एक घटना याद दिला दी आपने. हलीम नाइ आया करते थे बाल काटने. पिताजी और चाचा लोगो को निपटाने के बाद हम बच्चो का नमबर आता था. आन्गन मे सैलून चल निकल्ता था. एक बार मौका हाथ लग गया और मैने उनकी मशीन उठा कर कनपटी पर चला ली. हलीम मियान ने देखा तो बवाल उठा दिया. खूब छोटे छोटे बाल कट्वाने पडे बराबर लाने के लिये. पिताजी बोले बेटा एक्स्पेरिमेंट कभी अप्ने आप पर मत किया करो. मशीन चला कर देखने का इतना ही शौक था तो छोटे भाइ पर चला लेते. बाल कटाते कटाते जीवन भर की सीख मिल गयी कि प्रयोग दुसरे पर कर्ंना ज्यादा अच्छा होता है. शायद इस टौपिक पर आप एक पोस्ट ठेल दे.
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टेस्टीमोनियल कल्चर भारत में अभी विकसित नहीं हुआ है.. पर रुक्मानंद जैसे लोग दूरदर्शी है.. सोचता हु पिलानी जाके एक बार हम भी बाल कटवा ले..वैसे अभी हमारी ना धर्मपत्नी आयी है और ना ही कान पे बाल है.. 🙂
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:)रुक्मानन्द नाऊ बडा इन्टेलेक्चुअल टाईप बन्दा था.. बालीवुड के हीरो हीरोईन के जमाने मे राजेन्द्र प्रसाद जी का रिफ़रेन्स लगाता था…कटिग का नाम क्या था? ’प्रसाद कट’ या ’ ’प्रेसीडेन्ट कट’वैसे हमारे पिता जी को एक ही कटिग पता है – छोटे कर दो!
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बुघ्दिमत्ता, चतुराई, कार्यसिघ्दि होने तक प्रयत्न, वाक्पटुता, प्रत्युत्पन्नमति आदि के लिए नाई पहचाना जाता है। मालवा की यह कहावत इसे साबित करती है – जानवरों में कउआ आदमियों में नउआ
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बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट—हम लोगों ने भी बच्चों के लिये "हमारे सहयोगी" शृंखला के अन्तर्गत "नाऊ" जी के ऊपर फ़िल्म बनाई थी।
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कभी नाऊ केवल बाल काटने का काम ही नहीं करते थे बल्कि वाक्पटु होने के नाते घर परिवार के सांस्कृतिक दूत भी हुआ करते थे-शादी व्याह में आज भी इनकी उपस्थिति अनिवार्य होती है -इन्हें बुद्धि चातुर्य ,हाजिर जवाबी की भी पुश्तैनी ट्रेनिंग मिली होती है -कहते हैं इन्हें "छत्तीस बुद्धि " होती है -हाजिर जवाबी ऐसी कि बाल बनवाते समय एक सज्जन ने नाई से पूछा की ,'नाऊ ठाकुर सर में कई बार ? " जवाब आया ,"हुजूर सामने ही गिरेगें गिन लीजियेगा "बहरहाल मैं बाबा जी के ज़माने के अपने गाँव के सुप्रसिद्ध नाऊ बुद्धू नाऊ के बारे में बताऊँ -वे अतिशय बुद्धिमान थे इसलिए उनका नाम महात्मा बुद्ध के नाम पर बुद्धू पड गया था,जब बाबा जी के बल बनाते और अक्सर बनाते ही थे तो अक्सर एक प्रसंग छेड़ दिया करते -बिनु पग चलै सुने बिनु काना ,कर बिनु करम करै विधि नैना ….वे बाबा जी से पूछ बैठते थे ….'तो डाक्टर साहब आखिर वो बिना पैर के कैसे चलता है और बिना कान के कैसे सुन लेता है ?' यह दर्शन का आख्यान मैंने बचपन में ही सुनना शुरू कर दिया था और सूत्रधार बुद्धू नाऊ ही थे …पिता जी बाल ढाढी बनते बनते इसका उत्तर रोज रोज ही नई उद्भावनाओं के साथ देते ….मेरा बाल बुद्धू नाऊ जब बनाते थे तो बीच बीच में कैंची बिना बाल लिए ऐसे ही हवा में कच पचा देते थे जो सुनकर बहुत अच्छा अच्छा लगता था ….उनके बड़े संस्मरण हैं …..एक जगह शादी में मार पीट हो गयी जो पुराने समय की शादे व्याह में अक्सर हो जाती थी -बुद्धू नाऊ हाथ जोड़ कर खड़े हो गए ..,महराज हम तो अबध्य नाऊ हैं ……मार पडी जब समसेरन क महाराज मैं नाऊ …….आज भी गावों में नाऊ को सम्मान से नाऊ ठाकुर बोलते हैं …..
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मजा आया. नाऊ धिस टाइम "नाऊ" ने दुकान खोल ली है. बदल गया है जमाने के साथ.
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"अलबर्ट आइंस्टीन तो इतने व्यस्त रहते थे अपने आप में कि उनकी पत्नी उनके बाल काट दिया करती थीं। मैं भी सोचता हूं, कि मेरे बाल (जितने भी बचे हैं) अगर मेरी पत्नीजी काट दिया करें तो क्या बढ़िया हो!"मेरे दूसरे नम्बर के ताऊजी जो कि फिजूल खर्च को सबसे बड़ा पाप मानते हैं अपने बाल स्वयं ही काट लेते हैं । वह भी बिना किसी की मदद के । नाऊ को लेकर मेरे साथ भी तमाम किस्से हैं । मेरा घर का ना विक्की है । मेरे ननिहाल में, बगल में ही एक नाऊ जी अपना कारोबार चलाया करते थे बिल्कुल ईंटालियन सैलून वाली स्टाईल में । तब में 4-5 साल का रहा होऊंगा । वो हमसे हमारा नाम पूछते । मैं अपना नाम विक्की बताता । तब नाऊ महाराज कहते कि विक्की नाम तो लड़कियों का होता है । मैं प्रतिवाद करता तो वह कहता अच्छा पेंट उतार कर दिखाओ । मैं सहम कर उसे घूरने लगता । फिर बहुत सालों तक मैं उसकी दुकान के सामने से डर कर नहीं गुजरा कि कहीं ये वहीं प्रश्न दुबार न पूछने लगे । अबभी उनकी याद आती है तो चेहरे पर मुस्कान आ जाती है । 5-6 साल पहले वो बिचारे स्वर्ग सिधार गये ।
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That barber is useless for me..He cannot cut my hair properly in steps (shoulder length).Anyways, 'll get his autograph.< Smiles >
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इटालियन सैलून में जाने का काम नहीं पड़ा है | हां एक नाई था जिसे मै बहुत याद करता हूँ | सूरत के पांडेसरा इलाके में रहता था | उसकी तीन चार दुकानें थी | दिन भर ताश पत्ती खेलता था | जब कोइ जान पहचान का ग्राहक आता था तो वह खुद उसका काम करता था | अन्य ग्राहक को के लिए वहा आदमी रखता था | नाम तो याद नहीं आ रहा है हरी नगर ३ से चीकू वाडी में जो रास्ता आता है उसी में उसकी दूकान थी | मुझे जब भी उसके यहाँ जाना होता था तो पहले अपोईन्टमेंट लेना होता था | क्यों की कंपनी में छूट्टी लेना और उस दिन उसका ना मिलना बहुत भारी पड़ता था | क्यों की १० साल सूरत में रहा तो उसी के पास सर्विसिंग के लिए जाता था | वो एक दिन जो सेवा देता था उसी सेवा के बल पर १ महीना आराम से गुज़रता था | मात्र ५० रू .में चार घंटे की सेवा हमारे लिए बहुत फायदे का सौदा था | २००१ में ५० रुपये में नाई की सभी सेवाएं( कटिंग,सेविंग,चम्पी, हेयर कलरिंग ) वो भी सूरत जैसे शहर में? मै तो क्या कोई भी उसे याद करेगा |
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