वैशाखी बीत गई। नवान्न का इन्तजार है। नया गेहूं। बताते हैं अरहर अच्छी नहीं हुई। एक बेरियां की छीमी पुष्ट नहीं हुई कि फिर फूल आ गये। यूपोरियन अरहर तो चौपट, पता नहीं विदर्भ का क्या हाल है?
ज्वान लोग गूगल बज़ पर ध्रुव कमाण्डो कॉमिक्स आदान-प्रदान कर रहे हैं और मेरे घर में इसी पर चर्चा होती है कि कित्ते भाव तक जायेगी रहर। कहां से खरीदें, कब खरीदें, कितना खरीदें?! रहर की भाव चर्चा में तो सारा सामाजिक विकास ठप्प हो रहा है।
खैर गेहूं तो आ रहा है। कटका स्टेशन पर लद गया है पसीजड़ में। कित्ते बजे आती है? शाम पांच बजे रामबाग। अभी हंड़िया डांक रही है। लेट है। रामबाग से घर कैसे आयेगा? चार बोरा है। तीन कुन्तल। साल भर चल जायेगा।
मेरे पत्नीजी इधर उधर फोन कर रही हैं। उनके अनुसार मुझसे तो यह लॉजिस्टिक मैनेजमेण्ट हो नहीं सकता। कटका पर चार बोरे लदाना (सुरजवा अभी तो कर दे रहा है काम, पर अगली बार बिधायकी का चुनाव लड़ेगा तब थोड़े ही हाथ आयेगा!), इलाहाबाद सिटी स्टेशन पर उतरवाना (स्टेशन मास्टर साहब का फोनै नहीं लग रहा), फिर रोड वैहीकल का इन्तजाम रामबाग से शिवकुटी लने का (सिंह साहब संझा साढ़े चार बजे भी तान कर सो रहे हैं – जरूर दोपहर में कस के कढ़ी-भात चांप कर खाये हैं!)।
और हम अलग-थलगवादी नौकरशाह यह पोस्ट बना ले रहे हैं और एकान्त में सोच रहे हैं कि कौनो तरीके से चार बोरी गोहूं घर आये तो एक ठो फोटो खींच इस पर सटा कर कल के लिये पोस्ट पब्लिश करने छोड़ दें। बाकी, गेंहूं के गांव से शहर के माइग्रेशन पर कौन थीसिस लिखनी है! कौन सामन्त-समाज-साम्य-दलित-पूंजीवाद के कीड़े बीनने हैं गेंहू में से। अभी तो टटका नवान्न है। अभी तो उसमें पड़े भी न होंगे।
गेंहूं के चारों बोरे आये। घर भर में प्रसन्नता। मेरी पत्नीजी के खेत का गेंहूं है।
हम इतने प्रसन्न हो रहे हैं तो किसान जो मेहनत कर घर में नवान्न लाता होगा, उसकी खुशी का तो अंदाज लगाना कठिन है। तभी तो नये पिसान का गुलगुला-रोट-लपसी चढ़ता है देवी मैय्या को!
मुझे वर्डप्रेस पर इण्टरेक्टिव टिप्पणी ज्यादा बढ़िया लग रही है। आप इस पोस्ट पर वर्डप्रेस में टिप्पणी कर देखें!
@ गिरिजेश – ज्वान जानबूझ कर लिखा है। बचपन में सुनते थे जाड़ा का गाना – बचवन के हम छूइति नाहीं, ज्वान हैं मेरे भाई! दहेज पर अलग पोस्ट लिख दी है। 😦
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ज्वान को जवान कीजिए। अच्छा लगा कि अन्न संग्रहण की परम्परा अभी आप के यहाँ जीवित है। दहेज के आरोपों से जनित क़ानूनी पहलुओं के लिए वकील साहब से परामर्श ले लें।
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दहेज लेकर देवी पूजा वाह
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"मेरी पत्नीजी के खेत का गेंहूं है।"क्या ! आप अभी तक दहेज लिए जा रहे है ?
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बधाई कि आपके यहां ४ बोरी गेहूं आ गया। तो गुलगुला-रोट-लपसी देवी मैय्या को चढ़ा दिया ना।वैसे अभी पिछले हफ्ते टी.वी. मे दिखा रहे थे कि कुछ राज्यों मे किस तरह गेहूं के बोरे बाहर खुले मे रक्खे है और गेहूं सड़ रहा है।
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देव ,ऐसी पोस्टों को 'सुमिरनी' की तरह मन पर फेरता रहता हूँ .. ठेठ को गजब समो देते हैं आप !गुलगुला .. गूगल .. गाँव .. क्या बचा अब !
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बेहद सुन्दर . आभार .
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रहर की आवक कम है जानकार निराशा हुई.
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मानवीय संवेदना की आंच में सिंधी हुई ये गेंहूं की रोटी और अरहर की दाल हमें मानवीय रिश्ते की गर्माहट प्रदान करती है।
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अन्न उगाने का सुख किसान ही जानता है । गेहूँ की बालियों के नये निकले रोओं पर हाथ फिराते हुये जो प्यार उड़ेलता है, उससे सारे खेत का सीना फैल कर दुगना हो जाता है ।
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