विषय यदि एब्स्ट्रैक्ट हो तो चिन्तन प्रक्रिया में दिमाग का फिचकुर निकल आता है। महानता भी उसी श्रेणी में आता है। सदियों से लोग इसमें जूझ रहे हैं। थोड़ी इन्ट्रॉपी हम भी बढ़ा दिये। बिना निष्कर्ष के ओपेन सर्किट छोड़ रहे हैं। सम्हालिये।
सादर, प्रवीण|
महानता एक ऐसा विषय है जिस पर जब भी कोई पुस्तक मिली, पढ़ डाली। अभी तक पर कोई सुनिश्चित अवधारणा नहीं बन पायी है। इण्टरनेट पर सर्च ठोंकिये तो सूचना का पहाड़ आप पर भरभरा कर गिर पड़ेगा और झाड़ते-फूँकते बाहर आने में दो-तीन दिन लग जायेंगे। निष्कर्ष कुछ नहीं।
तीन प्रश्न हैं। कौन महान हैं, क्यों महान हैं और कैसे महान बने? पूर्ण उत्तर तो मुझे भी नहीं मिले हैं पर विचारों की गुत्थियाँ आप के सम्मुख सरका रहा हूँ।
कैसे महान बने – लगन, परिश्रम, दृढ़शक्ति, …….. और अवसर । एक लंबी कतार है व्यक्तित्वों की जो महानता के मुहाने पर खड़े हैं इस प्रतीक्षा में कब वह अवसर प्रस्तुत होगा।
क्यों महान हैं – कुछ ऐसा कार्य किया जो अन्य नहीं कर सके और वह महत्वपूर्ण था। किसकी दृष्टि में महत्वपूर्ण और कितना? “लिम्का बुक” और “गिनीज़ बुक” में तो ऐसे कई व्यक्तित्वों की भरमार है।
कौन महान है – इस विषय पर सदैव ही लोकतन्त्र हावी रहा। सबके अपने महान पुरुषों की सूची है। सुविधानुसार उन्हें बाँट दिया गया है या भुला दिया गया है। यह पहले राजाओं का विशेषाधिकार था जो प्रजा ने हथिया लिया है।
पता करना चाहा कि इस समय महानता की पायदान में कौन कौन ऊपर चल रहा है बिनाका गीत माला की तरह। कुछ के नाम पाठ्यक्रमों में हैं, कुछ के आत्मकथाओं में, कुछ के नाम अवकाश घोषित हैं, कुछ की मूर्तियाँ सजी है बीथियों पर, अन्य के नाम आप को पार्कों, पुलों और रास्तों के नामों से पता लग जायेंगे। लीजिये एक सूची तैयार हो गयी महान लोगों की।
क्या यही महानता के मानक हैं?
पराशर मुनि के अनुसार 6 गुण ऐसे हैं जो औरों को अपनी ओर खीँचते हैं। यह हैं:
सम्पत्ति, शक्ति, यश, सौन्दर्य, ज्ञान और त्याग
इन गुणों में एक आकर्षण क्षमता होती है। जब खिंचते हैं तो प्रभावित होते हैं। जब प्रभाव भावनात्मक हो जाता है तो महान बना कर पूजने लगते हैं। सबके अन्दर इन गुणों को अधिकाधिक समेटने की चाह रहती है अर्थात हम सबमें महान बनने के बीज विद्यमान हैं। इसी होड़ में संसार चक्र चल रहा है।
पराशर मुनि भगवान को परिभाषित भी इन 6 आकर्षणों की पूर्णता से करते हैं। कृष्ण नाम (कृष् धातु) में यही पूर्णता विद्यमान है। तो हम सब महान बनने की होड़ में किसकी ओर भाग रहे हैं?
महानता के विषय में मेरा करंट सदैव शार्ट सर्किट होकर कृष्ण पर अर्थिंग ले लेता है।
और आपका?
Mahanta ya Greatness dar asal Tyaag ( Eesaar Ya kisi buland maqsad ke liye qurbaan ho Jana) mein hi hia.
Baqi hum jis mahanta ki bat aajkal karte hian wo haqeeqat main perfection hoti hai ya kisi area main unprecedented heights ko chhoo lene ko kahte hain…….jo mere khayal se ghalat hai
Mahaanta Ya Azmat bina Tyaag aur Qurbani ke ho hi nahi sakti !
Khalid
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त्याग अनिवार्य गुण है। त्याग को अपरिग्रह के अर्थ में लिया जा सकता है।
त्याग का गुण बढ़ाने का यत्न करें तो अन्य गुण अपने आप जुड़ते चले जायेंगे। नहीं?
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greatness is mental concept based on beliefs so greatness is subjective
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aham bramhasmi !
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“महानता के विषय में मेरा करंट सदैव शार्ट सर्किट होकर कृष्ण पर अर्थिंग ले लेता है। और आपका?”
हमारा कभी कभी डाइवर्ज हो जाता है… पर हाँ कृष्ण पर अक्सर कन्वर्ज होता है. वैसे महाभारत के कई पात्रों पर.
… महाभारत के कुछ पात्रों का बड़ा सही कम्बीनेशन बन सकता है. कभी इस पर सोचियेगा… कुछ यहाँ से कुछ वहां से.
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महाभारत के पात्र बड़े निराले हैं । पढ़िये तो किसी पात्र में आपका आत्म समत्व अनुभव करने लगता है । बहुधा स्वयं को अर्जुन की तरह पाता हूँ । मौका मिला तो आपको कविता पढ़वाऊँगा ।
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बहुत अच्छे…लगे रहो!
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महान लोगों मतलब ऐसे लोग जिनको महत्वपूर्ण समझा जाये। इसके बारे में कोई अंग्रेजी के कवि (शायद टी.एस.इलियट)कहिन हैं: Half of the harm in the world is done by the persons who think that they are important (मतलब दुनिया में आधी गड़बड़ी तो महत्वपूर्ण/महान लोगों के चलते हुयी है)
बाकी आपको अगर हा हा ,ही ही वाले रूट से महान बनने का जुगाड़ सस्ता जुगाड़ चाहिये तो देखिये हम बहुत पहले बता चुके हैं महान बनने का सस्ता/सुलभ उपाय- काम छोड़ो-महान बनो
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हमारा तो पहले ही अन्दाज था कि गड़बड़ आपके कारण है! 🙂
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मगर बात खुली स्वीकारोक्ति से, अब जाकर!
और चालाकि ये है कि ज़िम्मेदारी भी सिर्फ़ आधी ही ले रहे हैं, बाक़ी आधी हम लोगों पर डाल रहे हैं गड़बड़ी की, और संदर्भ “इलियट” का।
अच्छा है आमिर ख़ान नहीं पढ़ रहे वर्ना वो बता देते कि सारी गड़बड़ी से इसी “इडियट” का कुछ लेना-देना नहीं है।
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🙂 🙂 🙂 🙂
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कौन महान हैं, क्यों महान हैं और कैसे महान बने?’
महानता नितांत दैवी शक्ति युक्त है. महान में महानता के गुण हो जरूरी तो नहीं है. वह तो इसलिये महान है क्योंकि उसे महान बना दिया गया है. ‘कैसे’ शब्द बहुत व्यापक है. हर तरह की महानता अर्जित करने की प्रक्रिया अलग-अलग है.
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दैवीय भूमिका तो समझ में आती है और वह भी अवसर के रूप में । अधिक योग्य लोग मुहाने पर बैठे बैठे जीवन बिता देते हैं ।
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महानता जितनी ही बड़ी होती जाती है उसे मापने का गज उतना ही छोटा होता जाता है !
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ऊँचाई पर भीड़ भी कम है ।
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महानता महान हो जाने में भी है और उसे पहचानने, मान्यता देने में भी। बहुधा महानता को मान्यता मिलने के पीछे सार्वभौम ‘आकर्षण’ के साथ-साथ ईर्ष्या का न होना भी ज़रूरी होता है। यह स्थिति तभी आती है जब यह स्वीकार किया जा सके कि जिस गुण से कोई महान है, वह गुण – उस मात्रा में – हम में न तो है, और न विकसित हो पाएगा।
महानता की अपनी कीमत होती है, जो अदा कर सके वो महान बना रहता है। बहुधा महानता की स्वीकृति इसी कीमत को अदा न कर पाने की विवशता की परोक्ष अभिव्यक्ति भी होती है।
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बहरहाल – ये ब्लॉग जँच रहा है, सज्जा और सुविधा – दोनों की दृष्टि से। 🙂
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किसी के गुण को स्वीकार कर लेना कठिन है । पर स्वीकार न करने में जो उथल पुथल मन में मचती है, उससे अच्छा है स्वीकार कर लेना । पता नहीं हम नापने लगते हैं और नप जाते हैं । कभी तो लगता है कि चैतन्य महाप्रभु के तृणादपि सुनीचेन को अपना कर सब स्वीकार कर लूँ पर मन है कि मानता नहीं । आपसे शतशः सहमति है ।
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काला रंग अपने में सब रंगों को समाहित किये हुये है । ब्लैक होल तो न केवल सबको अपनी ओर खींचता है वरन अपने में समाहित कर लेता है । कृष्ण को जितना समझने का प्रयास करता हूँ उतनी जिज्ञासा बढ़ जाती है । हर बार गीता मे नये अर्थ निकल आते हैं । यह आकर्षण नहीं तो और क्या है ? इन 6 ऐश्वर्यों के बारे में सोचता हूँ तो लगता है कि कृष्ण ने न केवल इनका पूर्णता से प्रदर्शन किया वरन एक आदर्श स्थापित कर गये लघु-देवों के लिये ।
त्याग को पहले मैं आकर्षण का विषय नहीं समझता था । तेन त्यक्तेन भुन्जीथाः को समझने में वर्षों लग गये । बाद में समझ आया कि मर्म तो यही है, अन्तिम आकर्षण ।
कृष्ण के जीवन से यह जाना ।
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प्रवीण जी टिप्पणियों में ही इतना व्याख्यायित किये दे रहे हैं कि अगली पोस्टें पढने का अनुभव हो रहा है 🙂
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आदरणीय ज्ञानदत्त जी के प्रयोग को पूर्णता से निभा रहे हैं । पूर्ण परिचर्चा । टिप्पणियों पर भी । टिप्पणियाँ पोस्ट का अंग बनती जा रहीं हैं ।
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वाह ! कृष्ण वर्ण को क्या खूब व्याख्यायित किया है प्रवीण जी ने.
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महानता आजकल भी फ़ैशन मे है.. थरूर टवीट करके महान बनने की कोशिश करते है तो मोदी जुगाडू आईपीएल का अरेन्जमेन्ट करके..
मेरे हिसाब से ’चरित्र’ महानता का निर्माण करता है.. (शायद ’त्याग’ से आपने वही कहने की कोशिश की हो…)
जो लोग चरित्र बचा ले गये वो आज भी महान है नही तो अभी हाल मे ही कई लोगो की महानता छिनते हुये देखा है..
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अगली पोस्ट आपके हाथ तो नहीं लग गयी, आईफोन एचडी की तरह । त्याग के प्रति आकर्षण अन्य आकर्षणों से अधिक पवित्र होता है । अन्य में ईर्ष्या घुल सकती है, त्याग में आदर है ।
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चरित्र बचे न बचे… छिपा ले जाने में सफल हैं जो अपना चरित्र, व्यक्त नहीं करते-अगर व्यक्तित्व को न पहचान पाएँ लोग तो महानता क़ायम रहती है। महानता का ‘व्यक्त’ होने से, ख़ासकर सेलेक्टिवली व्यक्त होने से बड़ा सीधा सम्बन्ध है।
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हर व्यक्तित्व में कुछ न कुछ कमी रहती है । उसे उजागर तो दुष्ट लोग करेंगे ही । उसमें उलझ गये तो सब ले डूबेंगे ।
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