तख्ती पर बैठे पण्डा। जजमानों के इन्तजार में। गंगा तट पर नहाते पुरुष और स्त्रियां। पण्डा के बाईं ओर जमीन पर बैठा मुखारी करता जवाहिर लाल। गंगा बढ़ी हुई हैं। सावन में ही भदईं गंगा का अहसास!
मात्र ९० डिग्री के कोण घूम कर उसी स्थान से लिया यह कोटेश्वर महादेव के मंदिर का चित्र! श्रावण मास की गहमागहमी। शंकर जी पर इतना पानी और दूध चढ़ाया जाता है कि वे जरूर भाग खड़े होते होंगे!
और कुछ दूर यह आम के ठेले पर बैठा बच्चा। मुझसे पूछता है – का लेब्यअ! मानो आम के अलावा और कुछ भी बेचने को हो ठेले पर!
रविवार की संझा
सांझ अलसाई सी। छुट्टी का दिन, सो बहुत से लोग और अनेक लुगाईयां। गंगा के किनारे खेलते अनेक बच्चे भी।
कोटेश्वर महादेव मन्दिर के पास घाट की सीढ़ियों पर बहुत सी औरतें बैठीं थीं। कुछ यूं ही और कुछ किसी अनुष्ठान की प्रतीक्षा में। कोने की कोठरी में रहने वाले चुटपुटी महाशय एक मोटर साइकल वाले से उलझ रहे थे।
चुटपुटी एक क्लासिक चरित्र हैं। और भी बहुत से हैं। जिन्दगी जीने बखानने को बस डेढ़ किलोमीटर का दायरा चाहिये। बस! कोई ढ़ंग का लिखने वाला हो तो कोटेश्वर महादेव पर उपन्यास ठेल दे!
सुन्दर चित्र। शीघ्र स्वास्थ्य लाभ लें और नियमित हलचल बनाए रखें। हम जैसा निष्क्रियपना आप पर सुहाता नहीं है।
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@8265915632804513509.0>कृष्ण मोहन मिश्रमुझे नदी/तालाब के समीप जाने को डाक्टरी मनाही है! सो गंगा में नहाने का प्रश्न नहीं! 😦
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सावन में शिव जी के अभी तक दर्शन नहीं किये थे । आपने मंदिर के ही दर्शन करा दिये । कृतार्थ हुये । जय हो शिव शंभू की । गंगा जी के भी दर्शन हो गये । घर बैठे तीर्थ यात्रा भी हो गयी और पुण्य भी अर्जित कर लिया । इसे कहते हैं बजुर्गों की कृपा । काका स्वास्थ्य का ध्यान रखियेगा । आजकल गंगा में पानी साफ नहीं होता है । नहाने का जोखिम मत उठाईयेगा । प्रणाम ।
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यह भी खूब है.
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बहुत सुन्दर सचित्र प्रस्तुति….. पावन माँ गंगा के दर्शन करने के लिए …..आभार
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