जगदेव पुरी जी शिवकुटी के हनुमान मन्दिर में पूजा कार्य देखते हैं। उम्र लगभग ८५। पर लगते पैंसठ-सत्तर के हैं। यह पता चलते ही कि वे पचासी के हैं, मेरी पत्नीजी ने तुरत एक लकड़ी तोड़ी – आपको नजर न लगे। आप तो सत्तर से ऊपर के नहीं लगते! आप सौ से ऊपर जियें!
हम दोनो ने उनके पैर छुये। हमें अच्छा लगा। उन्हे भी लगा ही होगा।
वे इस क्षेत्र में सबसे अधिक आयु के पुरुष हैं। उनसे ज्यादा उम्र की एक वृद्धा हैं। उनकी उम्र ज्यादा है काहे कि जब जगदेव जी आठ नौ साल के लड़के थे, तब वे व्याह कर यहां शिवकुटी आई थीं।
जगदेव जी के रूप में मुझे शिवकुटी के इतिहास में झांकने की खिड़की मिल गई। मैने उन्हे कह दिया है कि इस क्षेत्र के बारे में जानने को उनके पास आता रहूंगा।
आर्मी की ट्रान्सपोर्ट कम्पनी से रिटायर्ड जगदेव जी की कुछ समय पहले जांघ की हड्डी टूट गई थी। जोड़ने के लिये रॉड डाली गई। “उसके पहले मेरा स्वास्थ्य अब से दुगना था।” वे बहुत हसरत से बताते हैं।
“यह पौराणिक क्षेत्र है। राम के वनवास से लौटते समय उन्हे बताया गया कि ब्राह्मण (रावण) हत्या के दोष से बचने के लिये पांच कोस की दूरी में पांच जगह शिवपूजा करनी होगी। अत: उन्होने भारद्वाज आश्रम, मनकामेश्वर, जमुनापार सोमेश्वर, दशश्वमेध घाट (दारागंज) और शिवकुटी में शिवलिंग स्थापित कर पूजा की। उस समय तो शिवलिंग रेत से बनाये थे भगवान ने। बाद में लोगों ने मन्दिर बनाये!” – पुरी जी ने बताया।
कितने साल हुये? भगवान राम ने सोमेश्वर महादेव की आराधना के बाद अपने लावलश्कर के साथ यमुना पार की होगी। फिर मनकामना पूरी होने विषयक शिव पूजे होंगे मनकामेश्वर में। भारद्वाज आश्रम में ॠषि से मिलने के बाद पुन: पूजे होंगे शिव। वहां से चल कर दारागंज में और गंगा पार करने के पहले शिवकुटी में फिर आराधा होगा शिव को। पूरे प्रयाग यात्रा में शिवमय रहे होंगे राम!
जाते समय केवट ने गंगा पार कराई थी। वापसी तक तो राम सेलिब्रिटी बन चुके थे। कितनी नावें लगी होंगी उनके दल को यमुना और गंगा पार कराने मे। कौन रहे होंगे मल्लाह? और कहां छोडा होगा उन्होने पुष्पक विमान को! मेरे इन बचकाने सवालों के जवाब जगदेव पुरी जी देने से रहे!
पत्नीजी कहती हैं कि बहुत सवाल करते हो जी! बहुत नीछते हो!
@340482737032645190.0>> दिनेशराय द्विवेदी यह गद्य काव्य क्या बला है पण्डिज्जी! 🙂
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@2401518683082842090.0>> अजित गुप्ता – जिस व्यक्ति के प्रोफाइल में "लेखक" और "साहित्य" हो उसकी टिप्पणी अच्छी लगती है। आप अपने प्रोफाइल में वही ब्लॉग रखें, जो नियमित अपडेट होते हों तो सहूलियत होगी।
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बहुत अच्छी पोस्ट।
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बहुत अच्छी जानकारी। हमारे यहाँ पग पग पर इतिहास बिखरा है बस समेटने वाला चाहिए। आभार।
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इस तरह इतिहास तो नहीं, एक नए गद्य-काव्य का शुभारंभ तो हो ही गया है।
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जगदेवजी से मिली जानकारी हम तक भी पहुंचेगी ही…
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जगदेवजी के माध्यम से कई अध्याय और खुलेंगे शिवकुटी के। गंगा और घर के बीच अब यही बचा है बस।राम में रमना अब किसी प्रतीक की प्रतीक्षा में नहीं रहता हैं हम भारतीयों के लिये। रामचरितमानस में उतरते ही आँसुओं के स्रोत सक्रिय हो जाते हैं। इतना वृहद चरित्र हृदय में उतारने में डर केवल इस बात का लगता है कि कहीं मेरी क्षुद्रता अपना अहम न खो दे।
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@7355385003221741957.0>>अशोक, कुछ गलती रही होगी ब्लॉगस्पॉट की, टिप्पणी मिली नहीं!
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अच्छा लगा सुबह-सुबह इसे बांचकर!
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खैरियत तो है ? पहली बार देख रहा हूं कि ज्ञान दा ने दो दिन बाद भी टिप्पणियां प्रकाशित नहीं की हैं!
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