मन्दिर को जाने वाली सड़क पर एक (अन)अधिकृत चुंगी बना ली है लुंगाड़ो नें। मन्दिर जाने वालों को नहीं रोकते। आने वाले वाहनों से रोक कर वसूली करते हैं। श्रावण के महीने में चला है यह। आज श्रावण महीने का आखिरी सोमवार है। अब बन्द होने वाली है यह भलेण्टियरी।
आज सवेरे-सवेरे एक स्कूटर सवार को रोका। तीन की टीम है। एक आठ-दस साल का लड़का जो सडक के आर पार की बल्ली उठाता गिराता है; एक रिंगलीडर; और एक उसका असिस्टेण्ट।
स्कूटर के पीछे बैठी महिला वसूली पर बहुत चौंचियायी।
घूमने के बाद वापसी में आते देखा। रिंगलीडर स्टूल पर बैठे थे। पिच्च से थूक कोने में फैंकी। प्रवचे – आज आखरी सुम्मार है बे! आज भो**के पीट पीट कर वसूलना है।
पास में ही बेरोजगारी के खिलाफ ईमानदार अभियान का पोस्टर पुता था दीवार पर!
ओह ! ये तो अच्छा है ना बेरोजगारी का सरल हल… चंदा वसूली…!
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गुन्डागर्दी और लठैती हमारे राष्ट्रीय खेल हैं, लोग खामखाँ ही बाकी खेलों में पदक न मिलने का रोना रोते रहते हैं।
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जय हो बाबा की. अब सबका ख्याल रखना होता है, सब उनकी कृपा है 🙂
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इस गुंडई का ईलाज बस ठुल्लई है, अपने आप सुधर जाएंगे ये शोहदे जब दारोगा जी अपना हिस्सा कलेक्शन से ज़्यादा फिक्स कर देंगे.?दिल्ली की लाल बत्तियों पर एक दूसरी तरह का गैंग कभी कभी मिलता है. से मुश्टंडे, ग्रुप में होते हैं, हाथ में सांप लिए हुए. कारों में ज़बरदस्ती सांप ढेल कर डरे हुए लोगों से पैसे ऐंठते हैं. एक बार मैंने गाड़ी में बैठे-बैठे उसका सांप पकड़ कर जैसे ही रेस दी तो उसके होश फ़ाख़्ता हो गए घिघियाते हुए सांप के मर जाने का वास्ता देकर उसने पीछा छुड़ाया था मुझसे…
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@6270649468804795513.0>>> Atul Sharma – निश्चय ही मामला बेरोजगारी और बीमारू प्रदेशों की छुद्र मानसिकता का है। गुजरात में हालात बेहतर हैं। मेरे घर के एक चाचाजी कई दशकों से कांडला में रहते हैं। उनके परिवार की मानसिकता कहीं बेहतर है रोजगार और मेहनत की कमाई को ले कर।
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सर,आपकी इस ’स्टिंग पोस्ट’ को शिव कुमार जी और रंजना जी के कमेंट ने चार चांद लगा दिये हैं।सावन के बाद और महीने भी आयेंगे, ये आखिरी सुम्मार नहीं है और होनहार बिरवान के पात चीक्कन हैं, बनेगा तरूवर जरूर।
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ऐसे ही 'समाजसेवी' आजकल मंत्री विधायक बनते हैं।
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