बुढ़िया चपरासी – द्रौपदी और मेरी आजी


बुढिया चपरासी
गलियारे में धूप सेंकती बुढ़िया चपरासी

पिछली पोस्ट में मैने अपने दफ्तर की एक बुढ़िया चपरासी के बारे में लिखा था। आप लोगों ने कहा था कि मैं उससे बात कर देखूं।

मैने अपनी झिझक दूर कर ही ली। कॉरीडोर में उसको रोक उसका नाम पूछा। उसे अपेक्षा नहीं थी कि मैं उससे बात करूंगा। मैं सहज हुआ, वह असहज हो गयी। पर नाम बताया – द्रौपदी।

वह इस दफ्तर में दो साल से है। इससे पहले वह सन 1986 से हाथरस किला स्टेशन पर पानीवाली थी। पानीवाली/पानीवाले का मुख्य काम स्टेशन पर प्याऊ में यात्रियों को पानी पिलाना होता है। इसके अतिरिक्त स्टेशन पर वह अन्य फुटकर कार्य करते हैं।

वहां कैसे लगी तुम पानीवाली में? मेरे इस प्रश्न पर उसका उत्तर असहजता का था। वह अकारण ही अपनी साड़ी का आंचल ठीक करने लगी। पर जो जवांब दिया वह था कि अपने पति की मृत्यु के बाद उसे अनुकम्पा के आधार पर नौकरी मिली थी। उस समय उसका लड़का छोटा था। अत: उसे नौकरी नहीं मिल सकती थी। अब लड़का बड़ा हो गया है – शादी शुदा है।

इलाहाबाद के पास मनोहरगंज के समीप गांव है उसका। उसके पति पांच भाई थे। करीब दो बीघा जमीन मिली है उसे। लड़का उसी में किसानी करता है।जिस तरह से उसने बताया – संतुष्ट नहीं है किसानी से।

बाइस साल तक द्रौपदी अपने गांव से चार सौ किलोमीटर दूर हाथरस किला में नौकरी करती रही। अब भी लगभग पच्चीस तीस किलोमीटर टैम्पो से चल कर दफ्तर आती है। शाम को इतना ही वापसी की यात्रा! उसके अलावा मनोहरगंज से दो मील दूर है उसका गांव – सो रोज चार मील गांव और मनोहरगंज के बीच पैदल भी चलती है।

सरकारी नौकरी ने आर्थिक सुरक्षा जरूर दी है द्रौपदी को; पर नौकरी आराम की नहीं रही है। फिर भी वह व्यवहार में बहुत मृदु है। सवेरे आने में देर हो जाती है तो अपने साथ वाले दूसरे चपरासी को एक बिस्कुट का पैकेट उसके द्वारा किये गये काम के बदले देना नहीं भूलती।

ठेठ अवधी में बोलती है वह। खड़ी बोली नहीं आती। मैने भी उससे बात अवधी में की।

अपनी आजी याद आईं मुझे उससे बतियाते हुये। ऐसा ही कद, ऐसा ही पहनावा और बोलने का यही अन्दाज। “पाकिस्तान” को वे “पापितखान” बोलती थीं। मैं पूछ न पाया कि द्रौपदी क्या कहती है पाकिस्तान को!

आजी तो अंत तक समझती रहीं कि बिजली के तार में कोई तेल डालता है कहीं दूर से – जिससे बल्ब और पंखा चलते हैं। पर द्रौपदी बिजली का मायने कुछ और जरूर समझती होगी।

मनोहरगंज
मनोहरगंज

 


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

51 thoughts on “बुढ़िया चपरासी – द्रौपदी और मेरी आजी

  1. हमारे मोहकमाये मछलियान में भी ज्यादातर महिला कर्मी अनुकम्पा नौकरी वाली हैं -उनकी अलग सी दुनिया है और चूंकि उनका मूल ध्येय और जिम्मेदारी सरकारी सेवा का नहीं है अतः मुझसे उनका साबका भी नहीं रहता …मेरी ओर से उनको पूरी आजादी रहती है -जवाबदेही तो उनके पति से होती ,अब उनसे क्या बोलना बतियाना और कैसी जवाबदेही ? एक जने हैं सीता जी की तरह बैठी रहती हैं ,अब कौन जाए अशोक बाटिका तक …

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  2. आजी शब्द ने मुझे मेरा बचपन याद दिला दिया, जो अभी ज्यादा दूर नही गया है….

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  3. काफी दिनों से गायब था इधर से.. और मेरे ब्लॉग पर आपके पुराने ठिकाने का ही लिंक पड़ा था.. सो काफी माल जमा हो गया है देखने को…. तसल्ली से देखते हैं… बुढिया माताजी के बारे में पढके अच्छा लगा… अधिकाँश सरकारी कार्यालयों में एकाध अनुकम्पा वाली महिलाएं दिख जाती हैं. यह बहुत अच्छा नियम है पीड़ित को आर्थिक सहारा देने के लिए…
    पर हमारे बिहार में तो अनुकम्पा के आधार पर शिक्षक भी बन जाते हैं (और जगहों का पता नहीं) .. मैट्रिक है तो प्राइमरी.. इंटर हैं तो मिडल….. जबकि वो खुद ककहरा तक भूल चुकी होती हैं…. यह ठीक नहीं लगता…

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  4. काफी दिनों से गायब था इधर से.. और मेरे ब्लॉग पर आपके पुराने ठिकाने का ही लिंक पड़ा था.. सो काफी माल जमा हो गया है देखने को…. तसल्ली से देखते हैं… बुढिया माताजी के बारे में पढके अच्छा लगा… अधिकाँश सरकारी कार्यालयों में एकाध अनुकम्पा वाली महिलाएं दिख जाती हैं. हमारे बिहार में तो अनुकम्पा के आधार पर शिक्षक भी बन जाते हैं (और जगहों का पता नहीं) .. मैट्रिक है तो प्राइमरी.. इंटर है तो मिडल…. ये शिक्षिकाएं ज्यादा सिलाई-बुनाई में काफी कुशल होती हैं.. 🙂

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