रामपुर (छद्म नाम) के सैंतालीस प्रतिशत लोग काम के हिसाब से अनपढ़ हैं। प्रौढ़ शिक्षा एवम बेसिक कर्मठता योजना अधिकारी की एक रिपोर्ट में रामपुर के बारे में चौंकाने वाली रिपोर्ट बनाई है। इसके अनुसार लगभग आधे नागरिक अखबार नहीं पढ़ सकते, नौकरी आदि के फार्म नहीं भर सकते अथवा दवा की बोतलों पर लिखे निर्देश नहीं समझ सकते।
इस अध्ययन में अधिकारी महोदय ने बताया है कि लगभग 20,000 काम के हिसाब से अनपढ़ प्रौढ़ लोगों में किये सर्वेक्षण के अनुसार आधे से ज्यादा के पास हाई स्कूल पास होने का प्रमाण पत्र है …
उक्त प्रेस आइटम में चौंकाने वाली क्या बात है? भारत में हाई स्कूल पास करने का प्रमाणपत्र उतनी ही कीमत रखता है जितना चने-मुरमुरे का ठोंगा! अगर यह रिपोर्ट अखबार में उधृत हो तो कोई आश्चर्य करने लायक चीज तो है ही नहीं।
पर ठहरिये, यहां अगर रामपुर की बजाय डेट्रॉइट शहर हो – अमेरिका के मिशिगन का सबसे बड़ा शहर; बहुत बड़ा वाहन बनाने के कारखानों और 7.17 लाख की आबादी वाला शहर; तब कैसा लगेगा आपको जान कर कि वहां आधे लोग काम के हिसाब से निरक्षर हैं!
और वास्तव में, यह खबर रामपुर की नहीं, डेट्रॉइट की है।
GOOD नामक वेब साइट वास्तव में यह बताती है –
Almost Half of Detroit Residents Are Functionally Illiterate
A new report, Addressing Detroit’s Basic Skills Crisis, (PDF) from the Detroit Regional Workforce Fund has some pretty shocking statistics about literacy in the Motor City. Forty-seven percent of adults in Detroit are functionally illiterate. ——–
शायद सुविधाओं का अभाव निरक्षरता का पोषक है। पर सुविधाओं की प्रचुरता भी व्यक्ति को लापरवाह, आरामपसन्द और निरक्षर बनाती है। अन्यथा यह क्या है?
री-विजिट – आप अगर लिंक किये गये लेख को पढ़ें तो कई बातें सामने आती हैं। डेट्रॉइट में बेरोजगारों की संख्या बहुत ज्यादा है और निकट के वर्षों में यह पचास फीसदी के आसपास रही है। लोगों की फंक्शनल निरक्षरता के चलते उनकी एम्प्लॉयेबिलिटी कम है, अत: उनके नौकरी पाने की सम्भावनायें भी कम हैं। कुछ प्रयास चल रहे हैं लोगों की फंक्शनल साक्षरता बढ़ाने के; पर इस स्तर की निरक्षरता होने में कहीं न कहीं व्यवस्था में दाल में काला जरूर है।
और हम भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें। क्या शिक्षा व्यवस्था के साथ हाई-फाई छेड़ छाड़ कर, नकल माफिया को अनदेखा न कर और शिक्षण संथानो में पानी मिला कर हम भी उसी तरह की अवस्था में तो नहीं पंहुचेंगे जहां शिक्षा मंहगी और बेकार होगी।
http://online.wsj.com/article/SB10001424052748704111504576059713528698754.html
ये आर्टिकल पढ़िए. अभी तक ये पुस्तक पढ़ नहीं पाया हूँ. जल्दी ही पढने का मन है.
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आजकल की धारणा के विपरीत कहा है| मैं इस पर यकीन करता हूँ – पर मेरी पत्नीजी नहीं! 🙂
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पहली बात: आपकी खबर का मूल स्रोत मुझे आधिकारिक नहीं लगता, इसलिये आंकडों की बात को चुटकी भर नमक के साथ पचाना ठीक रहेगा ।
दूसरी बात: डेट्राएट में २००८ की मन्दी के बाद से स्किल्ड लेबर का भयंकर पलायन हुआ है, इसके कारण भी हो सकता है कि आंकडे एक तरफ़ झुके हुये मिलें।
शिक्षा/अध्यापक: मेरे रनिंग क्लब के मित्रों में अनेकों अध्यापक हैं (आठवीं से नीची कक्षाओं में)। देखता हूँ कि वो कितनी मेहनत प्रयास करते हैं लेकिन वर्तमान अमेरिकी समाज अध्यापकों को उतना सम्मान नहीं देता जिनके वो हकदार लगते हैं। स्कूल/शिक्षा के मामले में जब ५०-६० वर्ष के अमेरिकी लोगों से बात करता हूँ तो लगता है मेरे और उनके स्कूल के अनुभव एक जैसे से हैं, शायद इसीलिये कहते थे कि हम अमेरिका से २५-३० वर्ष पीछे हैं।
भारत में इससे अलग स्थिति है और शिक्षकों का सम्मान भी है (हमारे समय तक कम से कम) लेकिन मेंटल कंडिशनिंग भी कुछ इस प्रकार की है कि दुष्ट प्रवत्ति के अध्यापकों को भी सम्मान मिल जाता है। ९वीं पास करने के वर्षों बाद जब ऐसे ही दुष्ट अध्यापक सामने पडे (स्कूल में न पढाना और खूब ट्यूशन करना) तो अनायास ही मैने क्यों उनके पैर छू लिये? मुझे तो मामला कंडीशनिंग का ही लगा।
खैर, अमेरिका के सरकारी स्कूलों में सुविधाओं को देखते हुये लगता है कि काश हम यहाँ पढे होते लेकिन उसके बाद वहाँ पढने वाले लोग उन सुविधाओं की ऐसी अपेक्षा करते हैं तो लगता है “घर की मुर्गी दाल बराबर” । अमेरिका में आर्थिक पक्ष भी बहुत महत्वपूर्ण है। अधिकतर उन स्कूलों की हालत खराब है जहाँ गरीब (अक्सर ये अश्वेत होते हैं) वर्गों के लोग रहते हैं। मां बाप बच्चों पर घर में जरा भी ध्यान नहीं देते, स्कूल में अध्यापक सख्ती नहीं कर सकते और एक प्रकार की चेन रिएक्शन से स्थिति बद से बदतर होती चली जाती है। हाईस्कूल तक आते आते इन स्कूलों के आसपास हिंसा और अपराध का वातावरण तैयार हो जाता है । कहीं कहीं अध्यापकों, प्रधानाध्यापकों ने अपने सतत प्रयासों से स्थिति को बदला भी है लेकिन स्थिति गम्भीर ही है।
इस विषय पर लम्बा फ़िर कभी, हमारे एक मित्र हमें धमकाकर एक महीने में ३० पोस्ट वाले चैलेंज की दिशा में भेज रहे हैं, अगर हम डर गये तो खुलकर लिखेंगे 🙂
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आप तो जरा कस कर डरिये!
और लिखने में इस तरह का भी लिखिये दौड़ने की बातचीत के अलावा!
विस्तृत टिप्पणी के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद!
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नीरज की टिप्पणी वार्ता को विश्लेषणात्मक विस्तार देती है। उनके एक मास में 30 पोस्ट के चैलेंज ने हमें अपने आलस को चैलेंज करके इस पोस्ट की पूरक पोस्ट लिखने से बचा लिया इसके लिये भी हम उनके आभरी हैं।
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यह लोग उस इलाके से होंगे जहां काले ९०% होंगे, ओर वहां की सरकार को इन से कोई सरोकार नही होगा, इस लिये भी हो सकता हे,
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लगता है। चित्र में लोग अश्वेत ही दीख रहे हैं।
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डेट्राइट में संभवतः कारखाने अधिक होने के कारण पढ़ने का माहौल ही नहीं रहा होगा, यहाँ तो कुछ भी नहीं है तब भी नहीं पढ़ते हैं।
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यहां कुछ भी न होने के कारण माहौल नहीं हैं।
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मुझे यह पढकर कोई आश्चर्य नहीं हुआ।
अमरीका में आम आदमी भारत का पढा लिखा आदमी से कम कुशल लगता था।
गणित में अमरीकी बच्चे, हम भारतीय बच्चों से कम कुशल हैं
पिछले दस साल से मेरा अमरीकी लोगों से घनिष्ट सम्बन्ध रहा है।
मेरी राय में उनके अच्छे नागरिक, दुनिया के सबसे अच्छे और काबिल नागरिकों में गिने जा सकते हैं पर वहाँ सडक का आम आदमी, केवल तन्दुरुस्ती में, कद में, हम भारतीय लोगों से बेहतर है, दिमाग की कुशलता में नहीं।
क्रीडा जगत में हम उनसे कोसों दूर हैं लेकन पढाई लिखाई में हमारे श्रेष्ठ छात्र उनसे बेहतर हैं
इसका प्रमाण है, NASA , Microsoft, Sun, और ऐसे कई सारी कंपनियाँ।
वहाँ हजारों भारतीय और चीनी कर्मचारी काम करते हैं केवल इसलिए कि उन्हें योग्य अमरीकी कर्मचारी मिलते नहीं है।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
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बहुत महत्वपूर्ण टिप्पणी विश्वनाथ जी! धन्यवाद।
दिमागी तेजी के बावजूद हम हम हैं और अमेरिका अमेरिका। इस पर गहन विश्लेषण होना चाहिये।
यह कहा जा सकता है कि भौतिक उन्नति मात्र से सभ्यता की उन्नति नहीं मापी जा सकती। पर काफी समय से हम पिछड़े जरूर हैं। और अब तो दिशाहीन भी लग रहे हैं हम।
मैं भारत को कई अर्थों में अमेरिका बनता नहीं देखना चाहूंगा। पर हमारी वर्तमान दशा है – उसमें तो कतई संतुष्टि नहीं है। 😦
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साक्षरता को पेट की आग से जोड़ना, भारतीय सँदर्भों में निरक्षरता का कारक तत्व है ।
एक पढ़ा लिखा भी नौकरी पाने लायक योग्यता मिलते ही शिक्षा को अलविदा कह देता है ।
दूसरे यह भी डेट्रॉयट में अपराधों का स्तर अन्य शहरों के कहीं अधिक है.. इसका कोई ग्राह्य तारतम्य ?
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यह निकम्मेपन वाली निरक्षरता के बारे में जितना सोचें उतने घटक मिलते हैं। गरीबी, खाने भर को मिलते जाना, अपराधवृत्ति, शिक्षा में एम्प्लॉयेबिलिटी का अभाव, … अनेक। एक सही समाजशास्त्रीय सोच चाहिये। हम तो हाशिये पर बैठे मात्र विषय पोक कर रहे हैं!
पर अमरीका जैसे में साक्षरता का व्यापक अभाव कुछ विचित्र लगता है – इसी लिये पोस्ट लिखी।
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