मेरी छप्पन वर्ष की अवस्था में मुझे बताया गया है कि मैं टाइप-II डायबिटीज/मधुमेह [1] की योग्यता प्राप्त कर चुका हूं। मुझे कम से कम कुछ समय तक डायबिटीज की दवाओं पर रहना होगा। धूम्रपान (जो मैं नहीं करता) से परहेज रखना होगा। मदिरापान (जो मैं नहीं करता) मॉडरेशन में रखना होगा और सप्ताह में कम से कम 200 मिनट ब्रिस्क-वॉक का रूटीन बनाना होगा।
मैने चाय बिना चीनी की कर दी है। मिठाई और चीनी/खांड/गुड़ का प्रयोग कम कर दिया है, यद्यपि उस अनुशासन में कुछ परेशानी हो रही है। एक आध बार तो शर्करा का स्तर कम होने के कारण चक्कर आ गया और मिठाई सेवन का एक बहाना मिल गया। पर यह स्पष्ट हो गया है कि जिह्वा पर नियंत्रण के बिना जीवन के पैरामीटर नहीं बन सकते अब! 😦
ब्रिस्क-वॉक के लिये भी उद्यम करना पड़ रहा है। सड़क पर चलने की बजाय गंगाजी की रेती में चलना मुझे ज्यादा उपयुक्त विकल्प जान पड़ रहा है।
जैसा मैने पिछली पोस्ट में लिखा था – सवर्णघाट पर सभ्य सवर्णों ने गन्द मचा रखा है। वहां जाने पर भी मन में खीझ होती है। अत: मैने तय किया कि विस्तृत निषाद क्षेत्र में भ्रमण किया जाये।
पिछले कुछ दिनों से मैं सवेरे पौने पांच बजे उठ कर साढ़े पांच तक घर से निकल ले रहा हूं। शिवकुटी मन्दिर के घाट पर उतरने वाली सीढ़ियों के तुरंत बाद पगडण्डी बन गई है सवर्णघाट पर गंगानदी की जलधारा तक। यहां आस्तिक लोग स्नान करते हैं। अपना घर का पूजापाठ का कचरा फैंकते हैं और उसी पगड़ण्डी में ही खुदाई कर रेत अपने घर ले जाते हैं – गंगाजी की पवित्र रज!
सवर्ण क्षेत्र से निषाद क्षेत्र में जाने के लिये मेरे जैसे प्रात-भ्रमण करने वालों ने एक पगडण्डी बना ली है। इस पगडण्डी के दायें बायें अभी रेत युक्त कछारी मिट्टी सूख रही है और उसमें चलने पर रपट जाने का खतरा रहता है। करीब 200 कदम इस पगडण्डी पर चलने के बाद निषाद क्षेत्र का विस्तार मिलता है। वहां मिट्टी कम है, रेत ज्यादा है। लिहाजा सूख चुकी है; और मजे में घूमा जा सकता है वहां!
गंगाजी के किनारे दीखती हैं नावें। कुछ नावें अभी रेती में उल्टी पड़ी हैं। उनका उपयोग शायद कुछ दिनों में प्रारम्भ हो, जब उसपार खेती करने के लिये मल्लाह लोग नित्य आने जाने लगें। अभी तो कुछ नावें मछली मारने के लिये और कुछ देसी शराब को लाने ले जाने के लिये प्रयोग में लाई जा रही हैं!
बहुत विस्तृत है निषाद क्षेत्र। घूमने में तीन चार किलोमीटर आसानी से चलते चले जा सकते हैं निर्बाध। बीच बीच में इक्का-दुक्का लोग दीखते हैं – अपने काम पर जाने वाले। एक दो लोग निपटान के लिये बैठे दीखते हैं। टिटिहरी और बगुले इधर उधर उड़ान भरते पाये जाते हैं। अभी बहुत गहरे से पगडण्डियां नहीं बनी हैं, लिहाजा भ्रमण भेड़ियाधसान सा होता है और रास्ता बदलता रहता है। चिन्ह बनाने को कुछ ही स्थान हैं।
गंगा किनारे पंहुचते समय वहां कच्ची शराब बनाने और स्टोर करने के उपक्रम दीखने लगते हैं – पीपे, जमीन में बनाये गये गढ्ढ़े, भट्टियां, जलाऊ लकड़ी, कथरी और बोरे (जिनसे जमीन में गाड़े गये शराब के पीपे ढंके जाते हैं) इत्यादि। वहां इतनी सुबह मुझे कोई शराब-कर्मी नहीं मिलता। अत: चित्र लेने में कोई असहज नहीं होता।
निषादक्षेत्र में शराब बनती है और यहां से कई जगह ले जाई जाती है – यह तो मुझे ओपन सीक्रेट सा लगता है। इस जगह का टूरिस्ट डेवलेपमेण्ट मुझे करना हो तो मैं लोगों को कच्ची शराब बनाने के स्थान को दिखाने को अवश्य प्राथमिकता दूं।
यह सब घूमने-देखने में चालीस मिनट का समय लगता है। इस बीच सूर्योदय हो जाता है। आजकल आसमान साफ होने से चटक-लाल गोले से दीखते हैं सूर्य – गंगाजल में झिलमिलाते!
रेत में चलने में पर्याप्त उद्यम लगता है। पसीना आ जाता है और घर वापस लौटने पर पांच सात मिनट आराम करना पड़ता है पंखे के नीचे। बेचारे डायबिटीज परसाद को थोड़ कष्ट जरूर होता होगा। उन्हे कष्ट होगा तो अपना स्वास्थ्य ठीक रहेगा।
बस यही तो चाहिये। कि नहीं?!
[1] टाइप II मधुमेह (डाइबिटीज) – शरीर या तो अपर्याप्त मात्रा में इंसुलिन बनाता है या उत्पादित इंसुलिन का समुचित उपयोग नहीं कर पाता (इंसुलिन प्रतिरोध रहता) है। दस में से नौ मधुमेह के पीड़ित इसी वर्ग में आते हैं। हालांकि यह छोटी उम्र में भी हो सकता है, पर इसके सबसे ज्यादा मामले 40 की उम्र में शुरू होते हैं।
यह ब्लॉग नित्य की पोस्टिंग से सरक कर साप्ताहिक पोस्टिंग की आवृति पर आ गया है। दो दिन पहले इसके लिये डोमेन नेम लिया – Halchal.org – इस ब्लॉग के नाम से मेल खाता डोमेन। अब इस डोमेन का खर्चा जस्टीफाई करने को कुछ नियमित तरीके से पोस्ट करना ही होगा! 😆
प्रभु आप तो पूरे रिपोर्टर हो गए हो अब, ये कच्ची शराब बनाने की इतनी जीवंत तस्वीर तो रिपोर्टर और फोटोग्राफर, भी नहीं लाते आजकल….
बाकि स्वास्थ्य का ध्यान रखिये सर, जान है तो जहां है …
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चलते चलिए, हम सब यहां आ कर लाभान्वित होते रहेंगे.
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निशाद तट क्षेत्र में शराब बनती है और आप को शराब की मनाही है! क्या विड़म्बना है 🙂 रही बात सैर की, तो हम रेल्वे प्लेटफ़ार्म पर मौज करते हैं, तॊन-चार चक्कर लगा लिए तो हो गई वाकिंग… शुद्ध हवा पोल्यूशन से दूर॥
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मनाही न भी होती तो क्या?! अब तक ग्लायकोडिन और वाटरबैरी कम्पाउण्ड में जो आसव होता है, वही भर पिया है! 😦 🙂
रेलवे प्लेटफार्म की तो टिप्पणी में आपने इज्जत बढ़ा दी, धन्यवाद।
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आप रहे मस्त तो मधुमेह प्रसाद रहेगे पस्त | अंग्रेजी दवाओ के साथ आयुर्वेदिक का प्रयोग
लाभकारी होगा | जो वर्जित हैं उसे आप ने पहले से ही तिलांजलि दे चुके है | मुंबई में
रहकर रोज सुबह सुबह आप के साथ गंगा के कछार पर टहलने का आनंद ही कुछ और है |
टूरिस्म का ब्रांड अम्बेसडर जवाहिर लाल को बनाया जाय और कच्ची शराब बनाने की
प्रक्रिया को जन जन तक पहुचने का प्रयास सराहनीय है | प्रणाम : गिरीश
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सही में ब्राण्ड अम्बेसडर जवाहिर लाल ही फिट रहेगा! उसकी वापसे पर पोस्ट परसों शिड्यूल करी थी, पर आपकी टिप्पणी पढ़ कर उसे कल ही पब्लिश करता हूं!
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मधुमेह का पता लग गया। जल्दी ही इस की आदत हो लेगी। दवाएँ तो वक्त से लेनी पड़ेंगी। इन दिनों मैथीदाना, अजवाइन और कालाजीरी के चूर्ण बना कर समान मात्रा में उन का मिश्रण बना कर रखा है। रात्रि को सोने के पहले आधा चम्मच चूर्ण सादा पानी से लेता हूँ। कड़वा तो है, लेकिन कब्ज नहीं रहती है, मधुमेह के लिए लाभप्रद है और अनावश्यक चर्बी बढ़ने से रोकता है। एक सामाजिक संस्था इस योग का प्रचार भी कर रही है। आप भी प्रयोग कर के देखें।
दारू पीने वाले तो उसे गंगाजल ही कहते हैं। गंगातट पर निर्मित हो तो धर्मलाभ मुफ्त में मिलता है। राज्य की मशीनरी को इन चीजों की कभी परवाह नहीं होती। उस का उद्देश्य तो केवल वर्गसंघर्ष को हिंसक न होने देना है और उस में लाठी हमेशा कमजोर को ही खानी पड़ती है।
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यह चूर्ण बनाने को कहता हूं अपनी पत्नीजी को!
धन्यवाद।
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देशी शराब का नशा तो प्रकृति पर दिखायी पड़ रहा है। आप कम से कम दो बार अवश्य लिखें सप्ताह में। सृजनात्मकता भी बनी रहेगी और समय भी बना रहेगा।
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दो बार लिखने की कोशिश तो की जा सकती है!
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मैडिको-टूरिज़्म एक विस्तार लेता क्षेत्र है, निषाद क्षेत्र एक संभावित टूरिस्ट प्वाईंट प्रतीत होता है।
डायबिटीज़ परसाद को कष्ट लगातार देते रहें।
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आज देखा, भट्टियों के पास करीब पांच लोग कार्यरत थे। आग जलाये हुये थे। उनमें से एक सुरती बना रहा था … यह सब देखना अपने आप में बढ़िया टूरिस्ट अनुभव होगा! 🙂
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अच्छी चकाचक पोस्ट है।
हमें याद है कि जब आप इस ब्लाग संसार में अवतरित हुये थे तो कहते थे कि आपको हिंदी में अपने को अभिव्यक्त करने में असहजता होती है। अब मेरे ख्याल से वो वाला बयान एकदम बेफ़ालतू हो लिया। 🙂
स्वास्थ्य का ख्याल तो आप रखेंगे ही। ढिलाई करेंगे तो भाभी जी रखा लेगी।
बकिया आप मस्त रहें ! तबियत चकाचक रहने की शुभकामनायें।
हलचल डोमेन लेने के लिये भी बधाई! 🙂
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यह पोस्ट सामान्य से अधिक – 700 शब्दों की है! 😆
अभिव्यक्ति की असहजता तो अभी भी है। हमेशा लगता है शब्दों की किल्लत है! अब अनुभव की भी किल्लत नजर आती है! 😦
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200 मिनट ब्रिस्क-वॉक?
एक शून्य ज्यादा लग रहा है जी !
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जी नहीं, सप्ताह भर का क्यूम्यूलेटिव है यह। सप्ताह में पांच दिन का पक्का मान कर प्रतिदिन 40 मिनट बनता है।
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डायबिटीज़ की जानकारी के बाद तो अनुशासन बहुत ज़रूरी है। जहाँ निषाद घाट के कुटीर उद्योग जैसे ओपेन सीक्रेट हों वहाँ कानून अवश्य किसी की जेब में आराम फ़रमा रहा होगा। हलचल ओर्ग के लिये बधाई!
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धन्यवाद।
आज जवाहिर लाल वापस आ गया। मानो ब्लॉग का कोरम बन गया है। अब उसपर भी पोस्ट लिखनी है! 😆
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