कल कार्तिक पूर्णिमा थी। देव दीपावली का स्नान था घाट पर। सामान्य से अधिक स्नानार्थियों की भीड़। पर कोहरा बहुत घना था। कछार की माटी/रेत पर मोटी परत सा फैला था। घाट की सीढ़ियों से गंगामाई की जल धारा नहीं दीख रही थी। लोग नहाने के लिये आ जा रहे थे, लगभग वैसे ही जैसे एक पंक्ति में चींटियाँ आती जाती हैं – बस आगे वाले पर नजर गड़ाये।
हम घाट पर जाने की बजाय घूमने के लिये तिरछा मुड़े कछार में तो हमारा कपड़ों की मरम्मत करने वाला दर्जी मिला। सवेरे सवेरे वह कछार में निपटान और दातुन करने जाता है। उसने हमें हिदायत दी कि ज्यादा दूर तक न जाइयेगा। शायद कल कछार में मारपीट हुई थी – घाट पर पुलीस वाले भी दीख रहे थे। या यह भी हो सकता है कि कोहरे की अधिकता के कारण उसने कहा हो।
खैर, बहुत ज्यादा नहीं घूमे हम कछार में। कोहरे के कारण रोज के सवेरे की सैर वाले भी नहीं दिख रहे थे। वापसी में कोहरा कुछ कम हुआ और सामान्य से लगभग बीस मिनट देर से दिखे सूर्यदेव। आसमान में थोड़ा और ऊपर पंहुच गये थे, पर चटक लाल नहीं हो पाये थे। अपनी किरणों से कोहरे को खोदने का प्रयास कर रहे थे, पर कोहरा जो था, सो अजगर की तरह हिलने का नाम नहीं ले रहा था।
वापसी में घाट पर मेले की दुकाने जम गयी थीं। सिन्दूर, रोली की शंकु के आकार की ढ़ेरियां, नारियल, बिल्वपत्र, फूल, लाचीदाना-प्रसाद, प्लास्टिक के खिलौने-पिपिहरी इत्यादि की दुकानें। पण्डाजी का संकल्प-दान उद्योग तेजी पर था। लोग संकल्प में चावल और नयी आलू दे रहे थे।

काश हम भी पण्डा होते तो घर में भोजन सब्जी की फिक्र नहीं करनी पड़ती। संकल्प मंत्र पढ़ते और उसमें फिलर के रूप में फलाना मास ढिकाना दिन, ठिकाना गोत्र भर कर दक्षिणा खींचते! तब सवेरे उठते ही मालगाड़ियों की पोजीशन जानने और दफ्तर जाने की हबड़ तबड़ तो न होती! … अगले जनम में जो बनने की विश लिस्ट है, उसमें किसी इम्पॉर्टेण्ट घाट का पण्डा बनना भी जोड़ लेता हूं।
सीढ़ियों पर एक संपेरा भी बैठा था। हमे देख नाग को हुंडेरा (कोंचा) उसने। नाग ने फन ऊपर किया। दान की मांग जब उसने की, तब मुझे कहना पड़ा – पर्स नहीं लाया हूं बन्धु। वह संपेरा दरियादिल था। बोला – कोई बात नहीं, आप फिर भी तस्वीर खींच लीजिये।
उसे यह नहीं मालुम कि तस्वीर तो उसके बोलने के पहले ही ले चुका था मैं।
कोटेश्वर महादेव पर एक सज्जन ज्ञान बांट रहे थे – अरे नहान की क्या जरूरत? मन चंगा तो कठौती में गंगा! हम तो घर पर ही पूजा पाठ कर लेते हैं। … उनकी शकल से नहीं लगता था कि पूजा पाठ करते होंगे। पर सवेरे सवेरे मन्दिर में आने का कष्ट क्यों किया उन्होने? समझ नहीं आया!
दुनियां में सब कुछ समझने के लिये थोड़े ही होता है! कुछ तो ऐसा होता है, जिसे देखा-सुना जाये जिससे कि बाद में ब्लॉग पर उंड़ेला जा सके! 😆
आप को शायद पता नही ज्ञान जी कि ऊपर जब फारम भरा था तो रेलवई की चाकरी चाई, ए ही लिख कर आये थे अब अगली बार पंडा बन जाइये ।
बढिया पोस्ट ।
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बढिया ज्ञान उडेला है ज्ञानदत्त पाण्डेय जी, आपने:) सुबह सुबह दर्ज़ी के भी दर्शन हो गए, सर्पराज के भी…. सब पढकर लगता है दुनिया कितनी छोटी है!!!!!!!
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कभी कभी मुझे लगता है कि बड़ी बड़ी बुद्धिमत्ता युक्त चीजें पढ़ने-ठेलने वाले ब्लॉगर/पाठक को दर्जी, जवाहिरलाल, कछार, सर्पराज, पण्डा — इन सब में क्या मिलता होगा! 😆
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बहुत कुछ ज्ञान…:)
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हम तो कोटेश्वर महादेव पर बैठे सज्जन से भी कोसों आगे हैं। ‘दिशा दर्शन’ की अवधारणा वाले इस देश में, आपके ब्लॉग पर गंगा माई का चित्र देखकर ही गंगा स्नान कर लेते हैं।
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@काश हम भी पण्डा होते तो घर में भोजन सब्जी की फिक्र नहीं करनी पड़ती।
पांडे सर… गर पंडा बने तो हमें भी बुला लीजियेगा, एक सहायक की आवश्यकता रहती है. 🙂 वैसे ये काम हमें बड़े कौतुक का लगता है, बच्पन्न में जैसे लुहार के सामने बैठ कर ‘तमाशा’ देखते थे,
बाकि कछार में एक ठो ब्लोगर मीट करवा दीजिए, और ताकि लगे हाथ आपके ब्लॉग के सभी पात्रो से मुलाकात हो जायेगी.
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ब्लॉगर मीट? अभी तो मैं सोच रहा था कि अपने कछार के सभी मित्रों – जिनमें जवाहिरलाल भी शामिल है – को घर पर एक शाम हाई-टी पर बुलाऊं!
वे लैपटॉप पर देखें कि उनके कितने और मित्र हैं! 🙂
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अपनी किरणों से कोहरे को खोदने का प्रयास कर रहे थे.
Kya baat hai,Sir. Post bahut pasand Aya aur khas kar yeh upar ki line.
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धन्यवाद जी।
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लाचीदाना का ज़िक्र किया आपने और मैं अब इसके बारे में और जानने के लिए उत्सुक हो उठा हूँ! कहाँ और कैसे बनता है ये प्रसाद का आइटम? अगर कुछ जानकारी हो तो कृपया बताएं!
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लाचीदाना, इलायची दाना का अपभ्रंश लगता है। चीनी को फेंट कर छोटी ड्रॉपलेट्स सुखाई जाती हैं। बड़ी इलायची दाने से कुछ बड़े आकार के चीनी के पिण्ड होते हैं। सस्ते प्रसाद का यह मानक आइटम है!
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पता नहीं साहेब, कल मोटी इलाइची खरीदी थी, १४० रुपये की १०० ग्राम. ?
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लाचीदाना सस्ता होगा, चीनी के आस पास – पचास रुपये किलो?!
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धन्य हैं आप! देव दीपावली मुबारक हो!
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देवता अब चौमासा बिता कर एक्टिव हो गये हैं! अब सभी शुभ कर्म होंगे। कर्मकाण्डी ब्राह्मणों की चान्दी!
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