वह लड़का बारह-तेरह साल का रहा होगा। एक जैकेट और रफू की गई जींस का पैण्ट पहने था। माघ मेला क्षेत्र में संगम के पास सड़क के किनारे अखबार बिछा कर बैठा था। खुद के बैठने के लिये अखबार पर अपना गमछा बिछाये था।
वह कन्दमूल फल बेच रहा था। सफेद रंग की विशालकय जड़ का भाग सामने रखे था और पांच रुपये में तीन पीस दे रहा था। बहुत ग्राहक नहीं थे, या मेरे सिवाय कोई ग्राहक नहीं था।

मैने कौतूहल से पूछा – क्या है यह?
कन्दमूल फल। उसके अन्दाज से यह लगता था कि मुझे रामायण की समझ होनी चाहिये और जानना चाहिये कि राम-सीता-लक्षमण यह मूल खाते रहे होंगे। कौतूहल के वशीभूत मैने पांच रुपये में तीन पतले पतले टुकड़े – मानो ब्रिटानिया के चीज-स्लाइस हों, खरीद लिये। पूछा – और क्या बेच रहे हो?
उसके सामने दो तीन और सामान रखे थे। छोटी छोटी खूबसूरत चिलम थीं, पीतल के लोटे थे और दो कटोरियों में कुछ पत्थर जैसी चीज।
वह बोला – चिलम है। फिर खुद ही स्पष्ट करता बोला – वह जिससे गांजा पीते हैं।
गांजा? तुम्हारे पास है?
लड़का बोला – हां। फिर शायद उसने मुझे तौला – मैं पर्याप्त गंजेड़ी नहीं लगता था। शायद उसे लगा कि मैं इस विधा का सही ग्राहक नहीं हूं। लपेटते हुये बोला – गांजा नहीं, उसको पीने वाली चिलम है मेरे पास।
मुझे समझ में आया कि सड़क के किनारे कन्दमूल फल ले कर बैठा बालक फसाड (मुखौटा) है गांजा बेचने के तंत्र का। पूरे सीनेरियो में कोई आपत्तिजनक नहीं लगेगा। पर पर्दे के पीछे बैठे गांजा-ऑपरेटर अपना काम करते होंगे।
मुझे जेम्स हेडली चेज़ या शरलक होम्स का कीड़ा नहीं काटे था। काटे होता तो चिलम खरीदने का उपक्रम कर उस लड़के से बात आगे बढ़ाता। वैसे भी मेला क्षेत्र में टहलने के ध्येय से गया था, गांजा व्यवसाय पर शोध करने नहीं! सो वहां से चल दिया। कन्दमूल फल की स्लाइसों की हल्की मिठास का स्वाद लेते हुये।
पर मुझे इतना समझ में आ गया था कि गांजा बेचना हो फुटकर में, तो कैसे बेचा जाये! 😆
पीने वाले लोग तो कहीं से भी जुगाड़ कर ही लेते हैं।
LikeLike
हाय!! यह कंदमूल फल…रामकंद खाये जमाना गुजरा…..यूँ तो गाँजे की चिलम लगाये भी जमाना ही गुजरा है. 🙂
LikeLike
चिलम चाहिये तो खरीद कर भिजवाऊं। गांजा तो आप को अपने ओर से जुगाड़ना होगा! 🙂
LikeLike
All the world’s a market and all of us sellers!
(“William” Amit 🙂 )
LikeLike
आपकी नौकरी और पद के कारण जन सामान्य में आपका घूमना-फिरना, उठना-बैठना बहुत कम होता होगा। अन्यथा, किसम-किसम के (आपत्तिजनक) सामान और उन्हें बेचने के तरीके किसम-किसम के।
LikeLike
कन्दमूल फल की स्लाइसों की हल्की मिठास का स्वाद लेते हुये।
आश्वस्त हुआ यही जानना चाह रहा था
LikeLike
raja piye ganja, bidi piye chor
ch*%#a kahye tambaku
thukey charo aur.
LikeLike
बच्चों से क्या क्या करवाए जा रहे हैं….गांजा बेचते -बेचते हुए ये बच्चा भी गांजा पीने ही लगेगा…और फिर हो गयी उसकी जिंदगी नरक.
LikeLike
मैं सोचता हूं कि मैं अपने असेसमेण्ट में गलत निकलूं। यह बच्चा गांजा बेचने की चेन में शामिल न हो। 😦
LikeLike
ट्यूबलेस टायर आते हैं जी!
रामकंद तो हम भी खाये हैं।
केवल अनुमान के आधार पर गांजा पुराण !
वैसे यह पहली पोस्ट है जिसमें आपने यह इच्छा जाहिर नहीं की कि उसी की तरह करने लगें (दुकान लगा लें/पटरी पर बैठ जायें।)
यह भेदभाव ठीक नहीं है जी!
LikeLike
कन्दमूल का प्रोडक्शन सेण्टर नहीं मालुम था। लॉजिस्टिक समस्या के चलते यह इच्छा जन्म न ले सकी! 🙂
LikeLike
” मैं पर्याप्त गंजेड़ी नहीं लगता था” कितने प्रतिशत लगते हैं ? 🙂
LikeLike
स्वास्थ्य ठीक न चलने से चेहरा लटक गया है। सो 5-10% तो लग ही सकता हूं। 🙂
LikeLike
आपके ऑब्ज़र्वेशन के बारे में क्या कहें, हम तो उस लड़के की ऑब्ज़र्वेशन क्षमता पर ही सरप्राइज़्ड हैं। न जाने “बचपन बचाओ” आन्दोलन वाले कभी चिलम खरीदने निकलेंगे कि नहीं!
LikeLike