बेंगळुरु

कल सवेरे ट्रेन आन्ध्र के तटीय इलाके से गुजर रही थी। कहीं कहीं सो समुद्र स्पष्ट दिख रहा था। कोवली के पास तो बहुत ही समीप था। सूर्योदय अपनी मिरर इमेज़ समुद्र के पानी में ही बना रहा था। धान के खेत थे। कहीं कहीं नारियल ताड़ के झुरमुट। आगे चल कर रेनेगुण्टा से जब ट्रेन समुद्र तट छोड़ने लगती है तो पहाड़ या पहाड़ियां भी बैकग्राउण्ड में आने लगे। अगर मेरा स्वास्थ टिचन्न रहा होता तो बहुत आनन्द लिया होता यह सब देखने में। अब वापसी में वह करने की अपेक्षा करता हूं।

अन्दाज था कि ट्रेन डेढ़ दो घण्टा लेट थी, पर जब यशवंतपुर पंहुची तो समय पर थी। सांझ उतर चुकी थी। फिर भी लगभग दो घण्टे का समय था सूरज की रोशनी में शहर निहारने का। इतने सारे फ्लाईओवर बन गये हैं कि यातायात रुकता नहीं। केवल रात में बेंगळूरू सिटी स्टेशन के पास ट्रैफिक जाम दिखा।

बेंगळुरू स्टेशन पर अनवरत होने वाले ट्रेनों के आवागमन के अनाउंसमेण्ट में मैं यही अन्दाज लगाता रहा कि अंकों को कन्नड़ में क्या कहा जाता है। हर ट्रेन का और उसके प्लेटफॉर्म का नम्बर उद्घोषित होता था। 

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

12 thoughts on “बेंगळुरु

  1. सुंदर चित्र मन मोह लेने वाले । आपके बंगळुरू पहुंचने का वृतांत प्रवीँ पांडेय जी के ब्लॉग में मिल गया था । जल्द ही स्वस्थ हों और प्रवास का आनंद उठायें ।

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  2. अच्छा लगा. कुछ समय आपके के लिए मोनोटोमी भंग हुई. सर जी सूर्योदय की रोशनी में दिख रहे पेड़ नारियल के नहीं हैं. वे तो ताड़ के हैं.

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    1. उत्तरभारतीय से यह चूक सम्भव है! 🙂
      मैने उपयुक्त सम्पादन कर दिया है पोस्ट में।

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  3. बडिया सुंदर चित्र। आशा है स्वास्थ जल्दी ही टिच्चन हो जाएगा और लौटती ‘डाक’ से और बढिया चित्र देखने को मिलेंगे ॥

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    1. यह पोस्ट तो लिखी मात्र सूचनार्थ कि कहां पंहुचे। अन्यथा, इस वृहदाकार शहर को सूंघने का यत्न ही कर रहा हू!

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