विकास हलवाई झूलेवाला

शिवकुटी लगे मेले में लगे झूले।

कल था शिवकुटी का मेला। हर साल श्रावण मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी को होता है यह। एक दिन पहले से झूले वाले आ जाते हैं। नगरपालिका के लोग सड़क सफ़ाई, उनके किनारे चूना बिखेरना, सड़क पर रोशनी-पानी की व्यवस्था करना आदि करते हैं। पुलीस वाले अपना एक अस्थाई नियन्त्रण कक्ष बनाते हैं। दो साल पहले तक तो एक दो घोड़े पर सवार पुलीस वाले भी रहते थे। अब घोड़े नहीं दिखते। उनका स्थान मोटर साइकल या चौपहिया वाहन ने ले लिया होगा।

तरह तरह की दुकानें लगती हैं – चाट, अनरसा, नानखटाई, बरतन, आलूदम, खिलौने, शीशा-कंघी, सस्ती किताबें, मेंहदी, पिपिहरी, गुब्बारे — सब मिलते हैं।

बच्चों के लिये आकर्षण होता है झूले का। गोल चकरी वाला बड़ा झूला लगता है। हवा भर कर फिसलपट्टी वाला उपकरण और स्विंग करने वाले झूले भी होते हैं। जिस दिन झूला बिठाया जा रहा होता है, उसी समय से आस पास के बच्चे इधर उधर चक्कर काटने लगते हैं। झूला लगते ही झूले वालों की बिक्री प्रारम्भ हो जाती है। रेट सबसे ज्यादा मेले के दिन होते हैं। उससे एक दिन पहले कम रेट पर और एक दो दिन बाद और कम रेट पर बच्चों को झुलाते हैं ये झूले वाले। फिर ट्रक आदि में उन्हे डिसमेण्टल कर लाद कर वैसे ही ले जाते हैं वे लोग, जैसे लाये थे।

आज शाम के समय झूला चल रहा था। काफी बच्चे थे। बिजली नहीं आ रही थी, अत: हवा इन्फ्लेट कर बनने वाली फिसलपट्टी नहीं चल रही थी।

एक नाव के आकार के स्विंग करते झूले में आठ दस बच्चे बैठे थे। पास में एक सांवला सा आदमी खड़ा था। मैने उससे पूछा – यह झूला आपका है?

वह एक कदम पीछे हट गया और पास ही में खड़े दूसरे व्यक्ति की ओर इशारा कर बोला – इनका है। 

विकास हलवाई झूलावाला का झूला और पास में खड़ी उसकी मोटर साइकल।

वह दूसरा व्यक्ति पान खा रहा था। पैण्ट कमीज पहने था। देखने में प्रसन्नमन लगा। वह बोला –  जी, मेरा है। एक यह झूला है और एक रबड़ वाली फिसलपट्टी। वह वहां है। अभी बिजली नहीं आ रही, इस लिये वह नहीं चल रही। 

आत्मविश्वास से भरा वह व्यक्ति बात करने में भी तेज था। ज्यादा सवाल पूछने की जरूरत नहीं पड़ी। बताने लगा कि यहां से वे अपना सामान ले कर सलोरी जायेंगे। वहां से फलानी जगह और उसके बाद ढिमाकी जगह।

सामान कैसे ले जाते हैं?

परसों गाड़ी में लाद कर ले जायेंगे। 

कितनी दूर तक जाते हैं?

उसने बताया कि तेलियरगंज का रहने वाला है वह। इलाहाबाद से २५०-३०० किलोमीटर के दायरे में करीब तीस चालीस जगह जाते हैं वे साल भर में। एक मेले से दूसरे में। पूरा शिड्यूल तय होता है। गाजीपुर, कानपुर, फतेहपुर आदि अनेक उत्तरप्रदेश के शहरों के नाम गिना दिये उसने जहां वे जाते हैं। इन सभी जगहों से तो अब काफी पहचान हो गयी है। हर जगह पर कहां रुकना है, किस दुकान से आटा-चावल खरीदना है और कहां से सब्जी – सब तय है। उसके साथ बारह कर्मचारी हैं जो साल भर एक जगह से दूसरी जाते रहते हैं।

मुझे लगा कि मैं आधुनिक घुमन्तू जाति के जीव – आधुनिक गाडुलिये लुहार से मिल रहा हूं – जिनका व्यवसाय, बोलचाल, पहनावा अलग है और जो अधिक आत्मविश्वास से भरे हैं।

आपका नाम क्या है?

उसने बताया – विकास हलवाई। तेलियरगंज में उसकी हलवाई की दुकान है। उसके अलावा एक चाट कॉर्नर भी है। दुकान, चाट कॉर्नर और झूले के व्यवसाय के अलावा वह केटरिंग का ठेका भी लेता है शादी-व्याह-समारोहों में।

फिर विकास हलवाई को लगा कि मैं उसे हल्के से न ले लूं – मैं आपसे मिलूंगा तो ऐसे ही कपड़ों में, भले ही घर पर फ्रिज टीवी और सुख सुविधा का सभी सामान है। चलने के लिये भी बहत्तर हजार की पल्सर है मेरे पास। 

विकास हलवाई झूलावाला।

बारह कर्मचारी, हलवाई, केटरिंग और झूले का व्यवसाय। आत्मविश्वास से लबालब बातचीत। विकास हलवाई को हल्के से लेने का कोई कारण नहीं था। मैने आत्मीयता से उसके कन्धे पर हाथ रखा और कहा कि उससे मिल कर वहुत प्रसन्नता हुई हमें। मेरी पत्नीजी ने भी अपनी प्रसन्नता व्यक्त की।

हमने चलते हुये परस्पर नमस्ते की। मैने विकास से हाथ मिलाया। उसके हाथ मिलाने में उसके आत्मविश्वास का पर्याप्त आभास होता था। एक संकोच में भरे छोटे कामकाजी का हाथ नहीं था वह, नये भारत के सेल्फ-कॉन्फीडेंस से लबालब नयी पीढ़ी के उद्यमशील व्यवसायी का हाथ था!

अच्छा लगा विकास हलवाई झूलेवाला से हाथ मिलाना और वह छोटी मुलाकात। आप भी कभी विकास से मिलियेगा तो उसे हल्के से लेने की गलती न करियेगा। … वह नये भारत की तस्वीर है। स्मार्ट और स्ट्रीट स्मार्ट भी।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

11 thoughts on “विकास हलवाई झूलेवाला

  1. कांफिडेंस लेवल बढाने के लिए ये सब असेट्स कम नहीं, खुदबखुद कांफिडेंस बढ़ जाता है और बढ़ाना पड़ता भी है वरना यही असेट्स लायेबिलीटीज़ बन जायेंगे|

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  2. शिवकुटी के मेले और विकास जैसे उत्साही नौजवान के बारे में पढ़कर अच्छा लगा … आभार

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  3. कपडों से किसी के बारे में अन्तिम धारणा बनानेवालों को ‘शानदार जवाब’ है विकास हलवाई झूलेवाला। ऐसे लोगों से मिलवाते रहिए।

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  4. विकास जैसे लोगोंकी सराहना करनी पड़ेगी. भले ही वह कितना ही संपन्न हो, उसकी कीमत भी तो चुका रहा है. ऐसे पात्रों से परिचित कराने का आभार.

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  5. वाकई स्मार्ट हैं, क्योंकि इन्हें रास्ते बनाने का हुनर आता है. विकास जी बहुत से धंधे जो करते हैं उन्हें बेरोकटोक जारी रखने के लिए खासा टैलेंट चाहिए.
    हैसियत का दिखावा नहीं करना बहुत पुरानी ट्रिक है. मेरे पिता जब कहीं कोई काम निकलवाने जाते हैं तो पुराने-धुराने कपड़े और साधारण चप्पल पहन लेते हैं ताकि सामनेवाला उन्हें कमतर सामाजिक-आर्थिक हैसियत का मान ले… विकास के मामले में उसे इससे लाभ होता होगा लेकिन पिताजी को मामूली फायदा. खुद को इस तरह तरस का पात्र बनाना हर व्यक्ति को शोभा नहीं देता.

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  6. आप ने उस से यह नहीं पूछा कि उसे कहाँ कहाँ कितनी उगाही किस किस को देनी होती है? शायद यह भी पता लगता कि उस की कमाई का कितना धन अकर्मण्य लोग ले जाते हैं।

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    1. अकर्मण्य लोगों को चढ़ावा सिस्टम में इनबिल्ट है और अण्णा हजारे के आन्दोलन की होती दुर्गति से लगता है कि लोग कसमसाते जरूर हैं, पर उन्हे इस सिस्टम से बहुत कष्ट नहीं हो रहा।

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