गंगा किनारे चेल्हा के लिये मशक्कत

बारिश का मौसम बीतने के बाद गंगा सिकुड़ी हैं। उससे पानी उथला हो गया है गंगा किनारे। चेल्हा मछली इस समय किनारे मिलती है। मछेरे उसके लिये जाल डालते हैं, सवेरे सवेरे।

जाल डालता मछेरा।

मैं जब पंहुचा किनारे पर तो सवेरे के छ बज चुके थे। इस मौसम के हिसाब से कोहरा घना था। मछेरा जाल निकाल कर उसमें फंसी छोटी छोटी चेल्हा मछलियां समेट रहा था। उसने मुझे फोटो लेते या तो नहीं देखा या संज्ञान नहीं लिया उसका। जब मछलियां अपने थैले में डाल चुका तो मैने पूछा – कितनी बार डाल चुके जाल?

जाल से चेल्हा मछलियां बीनता मछेरा।

“तीन बार। पर ज्यादा नहीं मिलीं। कुल मिला कर पाव भर होंगी।” मछेरे ने मायूसी जताई।

नदी के बीच डालने पर शायद ज्यादा मिलतीं? मैने सुझावात्मक प्रश्न किया। वह मेरी अनभिज्ञता पर हल्के से हंसा – “नाहीं, ये किनारे पर ही होती हैं; चेल्हा हैं ये।”

थैले में मछलियां और जाल समेट अगली जगह को चल दिया मछेरा।

उसने मेरे साथ वार्तालाप में समय नष्ट नहीं किया। जाल समेट कर दूसरी जगह के लिये चल दिया – वहां शायद फिर जाल डालेगा। … एक बार और जाल डाल रे, जाने कितनी चेल्हा आना चाहती हैं जाल में!

पीछे से मैने देखा –  बनियान और लंग़ोट पहने था वह। पुरानी बनियान में छेद हो रहे थे। मैने उसके जाते जाते ही पूछा – आपका नाम क्या है?

चलते चलते ही नाम बताया – ओमप्रकाश। फटी बनियान और लंगोट में ओमप्रकाश!

हल्के से पीछे मुड़ कर उसने जवाब दिया – ओमप्रकाश।

उसके बाद अगले ठिकाने के लिये ओमप्रकाश चलता ही गया। धीरे धीरे कोहरे में गुम हो गया।

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

15 thoughts on “गंगा किनारे चेल्हा के लिये मशक्कत

  1. सूर्योदय का फोटो बोहोत अच्छा है.
    टिपण्णी में श्री बुद्धि नाथ मिश्रा जी की कविता अदभुत है.

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  2. चन्‍द्रमा के इर्द-गिर्द बादलों के घेरे,
    ऐसे में क्‍यूं न कोई मौसमी गुनाह हो.

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  3. मछेरा तो जीवन की सीख दे गया, अगर वाकई ये बंदा आई.टी. में होता तो सफ़लता के चरम को छू रहा होता, अब लोगों में संयम नहीं है, पर इनका संयम देखकर बल मिला ।

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    1. मुझे लगता है, वे सब जानते हैं मुझे। अन्यथा फोटो लिये जाने को बहुत अटपटा मानते। इतने फोटो-फ्रेण्डली लोग कहां होते हैं!

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  4. नेता मछेरे हैं और जनता मछलियाँ, हर पाँच वर्ष में अच्छे वादे रूपी चारे को वोटर रूपी मछली के आगे डालते हैं, क्या ही सुन्दर दृश्य उत्पन्न हो रहा है.

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    1. चेल्हा मछलियां बिना चारे के पकड़ी जाती हैं। मानो कमिटेड वोट बैंक हों! 🙂

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  5. श्री बुद्धि नाथ मिश्रा जी की एक सुंदर “आशा वादी” रचना है,
    एक बार और जाल फेंक रे मछेरे, जाने किस मछली में बंधन की चाह हो……………..
    सुनिये आपको अच्छा लगेगा

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    1. धन्यवाद। अचेतन में शायद यही कविता थी, जब पोस्ट लिखी। अद्भुत लगती है यह कविता!

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