मामल्लपुरम

महाबलीपुरम् ॥ मामल्लपुरम्

दिनांक २८ अक्तूबर’२०१२: 

पिछली बार मैं मामल्लपुरम् (महाबलीपुरम्) आया था सन् १९७९ में। तब यहां भीड़ नहीं थी। गिने चुने वाहन, लोग और दुकानें। कल यहां गया तो लगा मानो मद्रास यहीं चला आया हो। टूरिज्म का विस्फोट।

पिछली बार एक लड़की मुझसे भीख मांग रही थी। बमुश्किल आठ नौ साल की रही होगी। कुछ न मिलने पर वह तमिळ में कोई लोकप्रिय गाना गा कर कैबरे की मुद्राओं में नृत्य करने लगी थी। मुझे बहुत कष्ट हुआ था यह देख कर कि बचपन में रोटी की तलाश कैबरे छाप नृत्य करने को बाध्य कर रही थी उसे। … मैने उसे तब भी भीख नहीं दी थी, पर और लोगों से वह कुछ पा गयी।

अब की बार तो बाजार की संस्कृति पूरे यौवन पर थी। लोगों के पास अपने कैमरे थे। कुछ जोड़े थे अपने में ही बात करते और अनेक मुद्राओं में फोटो खींचते खिंचाते। महिलायें थीं जो अनेक स्थानों पर बैठी खीरा या चना चबैना बेच रही थीं। दुकानें थीं जहां टूरिस्ट लोगों को लुभाने वाला टिलिर पिलिर सामान मिल रहा था।

हमारे साथ दक्षिण रेलवे के सुपरवाइजर श्री कन्नन थे। वे स्थानीय दुभाषिये का भी काम कर रहे थे और हमारे गाइड का भी। एक लड़की – सतरह अठारह साल की होगी, मुझे कांच की मालायें बेचने का यत्न कर रही थी – १०० रुपये की पांच। वह बढ़ते बढ़ते सौ रुपये में दस तक आ गयी – पर मेरी पत्नीजी ने बिल्कुल मना कर दिया। वह कहने लगी खाने को कुछ मिल जायेगा उसे अगर हम खरीद लेंगे। कन्नन जी ने उसे डपट कर भगा दिया। … मैं उसे पचास रुपये देना चाहता था.. बाद में पत्नीजी को बताया भी मैने कि उसकी शक्ल को ध्यान से देखो – कितना सौन्दर्य है उसमें। कहते हैं कि दक्षिण में नारियां सांवली भले ही होती हैं पर फीचर्स उनके बहुत शार्प होते हैं – सुन्दर नैन-नक्श। तभी दक्षिण की कई नेत्रियों ने मुम्बई का फिल्म जगत फतह कर रखा है। उस लड़की के दो तीन फोटो ही मैं क्लिक कर पाया। उससे अगर मालायें खरीद लेते तो शायद बेहतर फोटो ले पाता मैं।

मामल्लपुरम मद्रास से पचास-साठ किलोमीटर की दूरी पर कांचीपुरम जिले में है। यह पल्लव राजाओं के समय में बन्दरगाह था। यहां सात पैगोड़ा (मन्दिर थे)। कहते हैं पाण्डव रहे थे यहां मामल्लपुरम में – एक ही चट्टान को काट तराश कर उन्होने गुफायें बनाई थीं। यहां के पत्थर पर उकेरे हाथी और जुयें बीनते बन्दर तो जगत प्रसिद्ध हैं। भारत की किसी भी सांस्कृतिक ऐतिहासिक पुस्तक में उनका उल्लेख-चित्र शामिल होगा। वैसे यहां का स्थापत्य बौद्ध विहारों की भी याद दिलाता है। पर पल्लवन राज्य में बौद्ध प्रभाव था या नहीं – मुझे ज्ञात नहीं। फिर भी, मुझे पूरे भ्रमण के दौरान भीम और अर्जुन याद आते रहे। इतनी रुक्ष चट्टानों में जान भरने में उनकी भूमिका अवश्य महत्वपूर्ण रही होगी। एक गुफा में मैने अपना चित्र भी खिंचवाया। एक लड़की एक गुफा में अपना माडलिंग वाले पोज़ में फोटो खिंचा रही थी, मैने उसका और खींचने वाले का चित्र ले लिया।

लगता है मामल्लपुरम में विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों का घालमेल है। यह मन्दिरों का स्थान नहीं है – यह जरूर स्पष्ट है।

मामल्लपुरम/महाबलीपुरम में एक गोल चट्टान जाने कैसे एक कोने पर टिकी है। पत्नीजी का फोटो उसके पास खींचा।

ग्रेनाइट चट्टानों पर चढ़ाई चढ़ते उतरते सांस फूलने लगी और अहसास होने लगा कि स्वस्थ बहुत टंच नहीं है। पर अच्छा इतना लग रहा था कि स्वास्थ्य की ऐसी तैसी कहा! घूमना पूरा किया और उसके बाद समुद्र के किनारे जा कर लहरों में हिला भी, उने गिना भी।

चेन्नै से दोपहर सवा तीन बजे रवाना हुये थे। वापस लौटे तो रात के साढ़े आठ बज गये थे। हम थक गये थे और हम बहुत प्रसन्न थे महाबलीपुरम् जा कर! 

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

10 thoughts on “मामल्लपुरम

  1. मुझे महाबलीपुरम की अपनी यात्रा हो आई आपकी इस पोस्‍ट से। लेकिन चित्रों से लग रहा है कि काफी-कुछ बदल गया है।

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  2. ऊपर रैंकिंग के लिये जो स्टार आते हैं वे ऐसा भान कराते हैं जैसे कि अपार भरा जा रहा हो… 🙂

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  3. मामल्लपुरम रीविजीटीड … भारतीय स्थापत्य कला का अद्भुत संयोजन…

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  4. तस्वीरें भी देखी और लेखन में दिखाई गई तस्वीरें भी। बदलते युग का प्रभाव हर चीज़ पर स्पष्ट दिखने लगा है।

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  5. मुझे तो इस कांच बेचने वाली लड़की में इसके शार्प फीचर्स कम इसकी बेबसी और मजबूरी ज्यादा दिखी !

    -Arvind K. Pandey

    http://indowaves.wordpress.com/

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  6. एक बात समझ नहीं आती कि इन सभी भारतीय स्थापत्य कला के मंदिरों को बनाने में कितना समय लगा होगा और इसे बनाने वाली पीढ़ी ने क्या यह हुनर अपने आगे वाली पीढ़ी को नहीं दिया ?

    दक्षिण में वाकई सुन्दरता बहुत है, सुन्दरता अपनी आँखों पर निर्भर करती है, अगर मैंगलोर की सुन्दरता देखें तो अद्भुत होती है, हमने भी बैंगलोर में ही देखी है, और मैंगलोर के बारे में केवल सुना है।

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