रायगड़ा

दिनांक २८ अक्तूबर, २०१२

रायगड़ा में अळप्पुझा-धनबाद एक्स्प्रेस पंद्रह मिनट रुकती है। मैने अपना पजामा-बण्डी बदल कर साहब का भेस धरा और अपने डिब्बे से उतरा। शाम के पौने सात बजे थे। अंधेरा हो गया था। कैमरे को क्लोज़-अप मोड में रखा, जिससे चित्र फ्लैश के साथ आ सकें।

उड़िया, हिन्दी, अंग्रेजी और तेळुगू में रायगड़ा का स्टेशन बोर्ड।

आज त्रयोदशी थी। अगले दिन पूर्णमासी। इस लिये कुछ रोशनी थी चांद की प्लेटफार्म पर। अन्यथा लगता है बिजली नहीं आ रही थी और इमरजेंसी लाइट ६०% कटौती पर चल रही थी। फिर भी स्टेशन पर जितना दिखना चाहिये था, उतना दिख रहा था।

रायगड़ा स्टेशन का नामपट्ट चार भाषाओं में था – हिन्दी, अंग्रेजी, उड़िया और तेळुगू। मैने ट्रेन की गार्ड साहब (श्री के. आनन्दराव) से पूछा हम उड़ीसा में हैं या आंध्र में। उन्होने बताया कि ओडिशा कब का शुरू हो गया। वैसे वे जरूर आंध्र (विशाखापतनम) से आ रहे हैं। वहीं के निवासी हैं (पास के गांव के)। उनकी ड्यूटी टीटलागढ़ तक है।

(अगर मैं पाजामा-बण्डी में ही रहता और गार्ड साहब से बात करता तो मुझे या तो उनकी उपेक्षा मिलती या अपने सहकर्मी निरीक्षक महोदय का सहारा लेना पड़ता अपना परिचय देने में! :lol:)

इसके पहले बोबिल्ली जंक्शन का नामपट्ट हिन्दी, अंग्रेजी और तेळुगू में था। आगे थरबानी (?) का नामपट्ट हिन्दी, अंग्रेजी और उड़िया में पाया मैने। रायगड़ा चार भाषाओं का नामपट्ट वाला था। चार भाषाओं के पट्ट वाले स्टेशन कम ही होंगे।

इडली दोसा बेचता हॉकर।

प्लेटफार्म पर इडली-वड़ा-पूरी-सब्जी-छोले मिल रहे थे। दक्षिण का उत्तर से घालमेल प्रारम्भ हो गया था। स्वाद जानने को हमने वड़ा खरीदा। कॉफी छोटेलाल ने बनाई। वड़ा था तो वड़ा, पर कुछ कुछ स्वाद नमकीन अनरसा का दे रहा था। साइज भी छोटा था  और सामान्य से अधिक चपटा। यानी वड़ा उत्तरभारतीय छोटा बन गया था। अब आगे रेलवे स्टेशन पर दक्षिणभारतीय व्यंजन लेने का आनन्द नहीं रहेगा!

रायगड़ा प्लेटफार्म पर भोजन बनाते यात्री।

रायगड़ा में चालक बदलने के लिये एक बड़ी क्र्यू-बुकिंग लॉबी है। एक ओर मुझे पे एण्ड यूज शौचालय भी नजर आया। साफ सुथरा लग रहा था। प्लेटफार्म के एक अंत पर कुछ लोग आग जला कर भोजन बना रहे थे। सामान भी था उनके साथ – यात्री होंगे; कोई बाद की गाड़ी पकड़ने वाले। अगर इस तरह भोजन बनाना आ जाये और यात्रा के खर्च इस स्तर पर आ जायें तो भारत को बहुत भले से समझा जा सकता है। उसके लिये किसी युवराज को किसी दलित के घर सयास  रुकने की जरूरत न पड़े!

एक जगह एक स्त्री ताड़ के पत्तों की झाड़ू लिये बैठी थी। शायद कोई गाड़ी पकड़ कर जायेगी झाड़ू बेचने। उसे मेरा चित्र लेना शायद जमा नहीं, मुंह फेर लिया उसने।

झाड़ू लिये प्लेटफार्म पर बैठी महिला।

एक जगह प्लेटफार्म पर एक महिला बैठी थी। उसका पति उसकी गोद में सिर रख कर सो रहा था। एक अन्य व्यक्ति तेळुगू में उससे जोर जोर से हाथ हिलाते हुये डांट रहा था और वह उड़िया में बराबर का जवाब दे रही थी। मुझे ये भाषायें समझ आतीं तो माजरा भी समझ आता। पर कुछ पड़ा नहीं पल्ले!

मैं, ज्ञानदत्त पांड़े, एक मंझले दर्जे का कौतूहलक और घटिया दर्जे का यात्री (जो यात्रा में किसी भी आकस्मिक परिवर्तन का स्वागत करना नहीं चाहता!); पंद्रह मिनट में एक स्टेशन/एक जगह के बारे में इससे ज्यादा नहीं जान सकता।

बाई रायगड़ा!

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

7 thoughts on “रायगड़ा

  1. अब इस पर बाद में टिपियायेंगे आराम से । अभी जरा देख लें आराम से।

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  2. शायद आपके भीतर एक पत्रकार वाली जिज्ञासा भी कही प्रज्वलित है.

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  3. जो आपके लिए ‘इससे ज्‍यादा नहीं’ रहा वही हमारे लिए ‘काफी-कुछ’ रहा। अंधेरे के बावजूद चित्र अच्‍छे आए हैं।

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  4. अच्छा लगा. रायगडा में एक बहुत बड़ी आबादी तेलुगु बोलने वालों की है. पहले कभी यह कोरापुट जिले में आता था और राज्यों के पुनर्गठन के पूर्व यह मद्रास प्रान्त का हिस्सा रहा है.

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