शादियों का मौसम है। हनुमान मंदिर के ओसारे में एक बरात रुकी थी। जमीन पर बिस्तर लगे थे। सवेरे सवेरे कड कड करता ढोल बज रहा था। लोग उठ चुके थे। संभवत: बिदाई का समय होने जा रहा था।
मैने देखा- बारातियों ने हनुमान मंदिर के नीम को नोच डाला था दतुअन के लिए। निपटान के लिए प्रयोग किया गंगाजी के कछार का मैदान। हाथ धोने को गंगाजी की रेती युक्त मिट्टी और उसके बाद वहीं गंगा स्नान का पुण्य।
बरात का इससे बेहतर इंतजाम नहीं हो सकता था। बस बारातियों का ऑन द स्पॉट इंटरव्यू लेना नहीं हुआ यह पूछते हुए कि इंतजाम कैसा रहा। यह चूक जरूर हुई। पर मैंने सोचा कि पोस्ट तो ठेली जा सकती है। 😀
टूरिज़म इंडस्ट्री की माँ हैं गंगा मैया! मदर्स डे की शुभकामनायें!
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Hanuman ji kee krup a se sab vyavastha theek ho gaee.
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अच्छा किया पोस्ट ठेली| ब्लॉग के दिन बहुरे|
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गंगा और ऐसी कई नदियों को प्रदूषित करने में ऐसे लोगों का योगदान भी कुछ कम महत्वपूर्ण नहीं.
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भागते भूत की लंगोटी भली।
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सोचते हैं कि सरकार और प्रकृति अब भी पहले जैसी व्यवस्था कर देती है..
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