कछार में कल्लू की खेती की प्लानिंग

कछार में कल्लू।
कछार में कल्लू।

आज रविवार को कछार में गंगा किनारे घूम रहा था। एक छोटा लड़का पास आ कर बोला – अंकल जी, वो बुला रहे हैं। देखा तो कल्लू था। रेत में थाला खोद रहा था। दूर से ही बोला – खेती शुरू कर दी है। थोड़ी देर से ही है, पर पूरी मेहनत से है।

कल्लू शो-ऑफ करना चाहता है कि वह गरीब है, वह अपनी कम्यूनिटी में लीडर है, वह बेहतर प्लानिंग से खेती करता है और मुझे तवज्जो देता है। यह सब सही है। शायद गरीबी वाला कोण सही न हो। मेहनत करता है वह और उसका परिवार। और शायद अच्छी कमाई हो जाती है उसको इस तरह के उद्यम से। अपने समाज में अच्छी स्टैण्डिंग है उसकी और उसके परिवार की।

उसने बताया कि इस बार देर हो गयी। मकान बनवा रहा था। दूर गंगा किनारे सफ़ेद रंग का मकान भी दिखाया उसने। “अब बन चुका है! उद्घाटन होना है 8-10 दिन में। आप आयेंगे न? गरीब के घर भी आ जाइये।”

मैने उसे कहा कि अगर सप्ताहान्त में करेगा समारोह तो अवश्य आऊंगा। अन्यथा दफ़्तर के कमिटमेण्ट के कारण आना कठिन है।

दूर था वह - कल्लू।
दूर था वह – कल्लू।

अपनी खेती के बारे में उसने बताया – उस ओर गेंहूं और चना बोया है। और इस ओर सब्जियां। कुछ बो दी हैं। कुछ तो पौधे अंकुरित हो गये हैं। बाकी बोये जा रहे हैं। लौकी के अंकुरित पौधे दिखाये उसने। सभी बोने हैं – लौकी, नेनुआ, कद्दू, मूली, पालक, टमाटर, करेला…

एक छोटा बच्चा खोदने लगा थाला।
एक छोटा बच्चा खोदने लगा थाला।

करीब तीन बीघा में गेंहू-चना बोया है और 4 बीघा में सब्जियां। घाट की पगडण्डी के दूसरी ओर भी हर साल बोता था वह सब्जियां, पर इस साल पार्षद मुरारी यादव ने कह दिया कि उस तरफ़ वह खेती करेगा। मैने छोड़ दिया। कौन लड़ाई करे। लेकिन देखिये, उसने कोई खेती नहीं की है। मैने देखा कि उस ओर कुछ भैंसे घूम रही थीं और लड़के क्रिकेट खेल रहे थे। मुरारी खेती नहीं कर रहा है। यह मात्र सप्पा-बसप्पा का स्थानीय टिर्र-पिर्र है। ये भैसें कभी सब्जी या गेहूं के खेत में हिल गयीं तो स्थानीय राजनैतिक झगड़े की भी सम्भावना बन जायेगी शायद। 🙂

कल्लू ने मुझे दूर नदी के उस पार भी दिखाया कि वहां भी कर रहा है वह खेती। नदी के बीच उग आये टापू पर भी। अगर मैं अनुमान लगाऊं तो कुल 20-25 बीघा में कल्लू का परिवार खेती कर रहा है कछार में।

उसके साथ दो बच्चे थे। उन्हे दिखा कर बोला कि ये खेलते रहते थे यहां। मैं उन्हे 20 रुपया रोज देता हूं। साथ में खुराकी। घूमने वाली बकरियां भगाते हैं। थोड़ी बहुत खेती भी करते हैं। किसी बड़े को रखूं तो गोरू भगाने को धीरे धीरे जायेगा। ये फ़ुर्ती से जाते हैं। पता नहीं बच्चे खुश हैं या अपने को शोषित मानते हैं। मुझे लगे तो वे प्रसन्न। लल्लू के साथ सवेरे आठ बजे से शाम छ बजे तक रहते हैं वे खेत पर।

कल्लू और दोनो बच्चे।
कल्लू और दोनो बच्चे।

रुकता तो कल्लू और बतियाता। मैने वापस लौटते हुये उससे हाथ मिलाया।

ब्लॉग के पढ़ने वाले रहे तो आगे भी पोस्टें होंगी कल्लू पर।

और क्लिक के आंकड़े तो बताते हैं कि पढ़ने वाले हैं पहले की तरह। सिर्फ टिप्पणी आदान-प्रदान सरक गया है फ़ेसबुक पर।

अम्कुरित हो गयी है लौकी।
अंकुरित हो गयी है लौकी।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

16 thoughts on “कछार में कल्लू की खेती की प्लानिंग

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