परमेश्वर

DSC_0158सवेरे साढ़े छ बजे जब मैं घूमने निकला तो वह मुझसे आगे चल रहा था। घुटने तक धोती, मटमैला/सफेद कुरता – गेरुआ नहीं, एक काली जाकेट, बदन पर ओढा चादर जो सिर पर भी ढंकने का काम कर रहा था, बायीं पीठपर बोरा नुमा झोला और पानी का एक बरतन और दायें हाथ में एक डण्डा। पैर में चप्पल नहीं थी। उसकी चाल से लग रहा था दूर से चला आ रहा है।

पीछे से उसका फोटो खींचने के यत्न में मैं उससे कई कदम और पिछड़ गया। फिर चाल बढ़ा कर उसके बराबर में आया। बात करने के ध्येय से उसका नाम पूछा।DSC_0156

लगता है, उसको ऊंचा सुनने की समस्या थी। हाथ दिखा कर बोला – सुवा (या शिवा?) बाजार जात हई बाबू। पैसा नहीं है।

ओह, तो यह साधू नहीं है। भिखमंगा है। उसके दो बार कहने पर कि उसके पास खाने को पैसा नहीं है, मैने जेब से पांच रुपये का सिक्का निकाल कर दिया। उसका फिर नाम पूछा। उसने फिर जवाब दिया सिवा बजार जात हई।

कितना दूर है?

साढ़े तीन कोस होये इंहा से।

कहां से आ रहे हो?

कोई जगह का नाम बताया। फिर बोला मैलानी से। यानी बहुत दूर से आ रहा है। मैलानी तराई में गोरखपुर से 425 किलोमीटर दूर है। उसने बताया कि वहां उसकी कुटिया है। यहां शिवा बाजार (?) में उसका घर। एक बार फिर मैने नाम पूछा। इस बार समझ गया। ऊपर भगवान की ओर हाथ करते बताया – परमेश्वर। उहई जो उसका नाम है।

कुटिया है, भीख मांग कर यापन करता है। परमेश्वर के बारे में सही धारणा है और अपना नाम वही होने पर कुछ फख्र भी। वह सही माने में भारतवासी का प्रतीक है परमेश्वर।

उसकी उम्र पूछी मैने। हाथ हिला कर कहा कि नहीं मालुम। अंगरेज के जमाने में पैदा हुआ। देस छोड़ कर अंगरेज गये तो (हाथ नीचे कर साइज बताया) बच्चा था।

इतनी बात होने पर वह खुद ही बताने लगा। बहुत जी लिया। तब गिलट निकल आता था। बच्चा खतम। पहनने को भगई से आगे नहीं होता था। खाने को नहीं। अंगरेज चले गये। सोना रुपया ले गये। छेदहवा सिक्का छोड़ गये। सोना चांदी उनका। तांबे का छेदहवा हम लोगों का। जाते जाते बोल गये – देस नहीं चला सको तो हमको फिर बुला लेना।

अब बहुत उमिर हो गयी।

अंगरेजों के बारे में कुछ पंक्तियां सुनाईं। उस जमाने की लोक-कविता। मैने देखा कि सिवाय ऊंचा सुनने के, अपनी उम्र के बावजूद, परमेश्वर स्वस्थ है। शरीर पर कोई अतिरिक्त मांस नहीं पर कुपोषित भी नहीं।

चेहरे को ध्यान से देखा मैने। सफेद बहती दाढ़ी। बेतरतीब भौंहें। चौडा माथा, जिसपर पुराना त्रिपुण्ड अभी पूरा मिटा नहीं था। ओवल आकार का मुंह। इस प्रान्त का अमूमन दिखने वाला चेहरा। जवानी में हैण्डसम रहा होगा परमेश्वर। अब भी आकर्षक है।

मैलानी के पास कुटिया में ठीक ठाक कट जाती होगी जिन्दगी। पर वहां से अगर पैदल आ रहा है तो जीवट का यात्री है। लेकिन लगता नहीं कि इतनी यात्रा पैदल की होगी। DSC_0159

यात्री? अरे वही तो मैं भी होना चाहता हूं। पर परमेश्वर की तरह बिना पनही, बिना पैसे वाला भीख मांग कर काम चलाने वाला नहीं।

करीब दो सौ कदम परमेश्वर के साथ चला। बहुत सीख गया जिन्दगी का रंग। फिर हम अपने अपने रास्ते हो गये। मैं सैर को और वह अपनी यात्रा में आगे!

उससे पूछना भूल गया – मैलानी से यहां तक कैसे आया – पैदल या बस/ट्रेन से। ट्रेन से रहा होगा तो सवेरे सवेरे एक बिना टिकट चलने वाले परमेश्वर के दर्शन किये मैने।

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

11 thoughts on “परमेश्वर

  1. उसका मिलना एक साधारण घटना हो सकती है… लेकिन आपकी उसके प्रति जिज्ञासा (आपने यह नहीं बताया कि उससे बात करने की इच्छा क्यों बलवती हुई आपके मन में, या उस समय सड़क पर वह अकेला व्यक्ति था और आपने सोचा चलो इससे बतियाते हैं) इस घटना को महत्वपूर्ण बना रही है. पहले भी कहा था मैंने कि यह हमारे लिये सुयोग है कि आपकी गाड़ी पटरी पर दौड़ने लगी है.. उस परमेश्वर को तो यह भी पता नहीं होगा कि हमलोग आपके कारण उसपर चर्चा कर रहे हैं!! 🙂

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    1. बात करने की इच्छा का कोई महत्वपूर्ण कारण नजर नहीं आया। शायद वह परस्पर था। वह भी बतियाना चाह रहा था और मैं भी।
      ब्लॉगिंग की प्रवृत्ति एक प्रकार का कौतूहल तो जगा ही देती है अन्य लोगों के प्रति! 🙂

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  2. कोई सांसारिक प्राणी इतना निर्लिप्त नहीं होता – शायद फिर कोई कबीर माया-मोह छोड़ कर निकल आया :.इस फक्कड़पन की तहों में क्या-क्या छिपा है कौन जाने !

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  3. ना जाने किस भेष में बाबा , मिल जाये भगवान् !
    कहते हैं ना, कि आत्मा सो परमात्मा । नि:शर्त और निराकार भाव से मिलना ही प्रभु मिलन है। घट-घट में समाया है वो। परमेश्वर-मिलन पर साधुवाद।।

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  4. जगह तो सूबा बजार है, आपके गेस्ट हाउस से 10-12 किलोमीटर के क़रीब. बाक़ी यह भी हो सकता है कि वह कई दिन पहले चला हो और पैदल चला आ रहा हो. ऐसे विचित्र लोग भरे पड़े हैं लोक में.

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    1. जी, गूगल मैप पर देख लिया मैने। वह सूबा बाजार ही कह रहा था।
      अब पुन: तो मिलने से रहा, वर्ना बहुत कुछ पूछता उससे!

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      1. पता नहीं कितना बड़ा है सूबा बाजार। जाना संभव हो तो ईश्वर के दर्शन फिर हो सकते हैं। बरेली स्टेशन पर मैलानी एक्स्प्रेस्स देखी हो ऐसा याद पड़ता है लेकिन अब यह याद नहीं कि वहाँ से कितनी दूर और किधर है। आपने सही कहा कि सही माने में भारतवासी का प्रतीक है परमेश्वर। आज़ादी के कितने साल में हम सूबा बाज़ार से मैलानी और मैलानी से नंगे पाँव वापस आ पाये हैं।

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        1. काश परमेश्वर फिर मिलता तो उससे अनेक जिज्ञासायें शान्त करता मैं!

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