होशंगाबाद – भोपाल से नर्मदामाई की ओर दौड़

मैं रेलवे के मुख्य परिचालन प्रबन्धकों के सम्मेलन में भाग लेने के लिये 7-8 मई’2014 को भोपाल में था। होटल लेक व्यू अशोक में थी यह कॉंफ्रेंस। वहीं रहने का भी इंतजाम था और बैठक का भी। सात तारीख को तो लम्बी चली बैठक। आठ को वह दोपहर तीन बजे समाप्त हो गयी और शाम का समय अधिकारियों को भोपाल देखने के लिये मिल गया।

पश्चिम मध्य रेलवे के मेरे काउण्टर पार्ट श्री अनुराग ने गुना के ट्रैफिक इंस्पेक्टर श्री संजीव गुप्त को साथ लगाया था, लॉजिस्टिक्स की मेरी आवश्यकताओं पर ध्यान देने के लिये। और उन्होने एक अच्छे कम्पेनियन का रोल अदा किया। गुप्ता कानपुर के रहने वाले हैं; पर लम्बे अर्से से रेल सेवा में भोपाल रहे हैं। आजकल गुना में पदस्थ हैं। उन्होने बड़े मौके की जगह – मुख्य सड़क पर बरकतउल्लाह विश्वविद्यालाय के समीप घर बनाया है – दो बेड रूम का। उनकी की एक बिटिया पुणे में है और बेटा दसवीं का छात्र है यहीं भोपाल में हबीबगंज में घर पर रहता है। सेण्ट्रल स्कूल में पढ़ता है। संजीव गुना से यहां आते जाते हैं और जुगाड़ में हैं कि भोपाल में, किसी भी पद पर ट्रांसफर हो जाये। “गलती कर दी सर! यहीँ भोपाल में पोस्टेड था। फिर विजिलेंस में डेप्यूटेशन पर चला गया। वापस आने पर गुना में ही जगह मिली…”

संजीव मुझे पसन्द आये। असर्टिव, विनम्र, कहे को कार्यरूप देने में तत्पर और अपने इनीशियेटिव को बरकरार रखे हुये। रेलवे में कम ही हैं ऐसे लोग। और बहुत इज्जत है इन तरह के लोगों की।

संजीव से मैने पूछा कि यहां से नर्मदा तट कैसे चला जा सकता है? उन्होने सुझाव दिया कि होशंगाबाद में नर्मदा का घाट अच्छा है। भोपाल से डेढ़ घण्टे का रास्ता होना चाहिये सड़क मार्ग से। और मैने शाम चार बजे होटल से चेक-आउट कर सीधे होशंगाबाद जाने की सोची। डेढ़ घण्टा जाने, डेढ़ आने और आधा घण्टा होशंगाबाद के नर्मदाघाट पर पर व्यतीत करने का मन बनाया। इस हिसाब से शाम साढ़े सात-आठ तक वापस भोपाल/हबीबगंज आ जाना बनता था। वापसी में गोरखपुर जाने के लिये राप्तीसागर एक्सप्रेस देर रात में थी। सो दौड़ लगा आने की चिंता नहीं थी।

हम लोग समय से रवाना हुये। संजीव, मेरे साथ आये मेरे दो सहकर्मी – रेलवे ट्रेनों की समय सारिणी बनाने वाले श्री ए.के. मिश्र और योजनाओं की मॉनीटरिंग करने वाले श्री मनीश, और मैं। भोपाल की सड़कें चौड़ी और साफ सुथरी थीं। उत्तरप्रदेश के शहर झेंप जायें उन सड़कों को देख कर। रास्ते में चौराहों पर मूर्तियां अन्य शहरों की तरह थीं – छत्रपति शिवाजी और महाराणाप्रताप मध्यप्रदेश के इलाकाई न होते हुये भी प्रॉमिनेण्टली लगे थे। भारत में इन दो देशभक्ति के प्रतीकों को सर्वव्यापक मान्यता मिल गयी है। वही अन्य देशभक्तों – मसलन मंगलपाण्डे या बिरसामुण्डा के साथ नहीं है। सामंती भावनायें; राजे रजवाड़ों के प्रति अतिरिक्त आकर्षण इसमें रोल प्ले करता है। अन्यथा इतिहास में शिवा-प्रताप के टक्कर के अनेक गौरवशाली चरित्र मिल जायेंगे…

होशंगाबाद जाते रास्ते मेँ मुझे जब भी कोई पुलिया या ओवरब्रिज पार करना होता था, दायीं ओर मोटी पाइपलाइन दिखती थी। संजीव ने बताया कि इसके माध्यम से नर्मदा का जल होशंगाबाद से आ रहा है भोपाल – राजधानी की पानी की जरूरतें पूरा करने को। भोपाल में पहले बड़ा ताल से जल मिलता था। लगभग छ महीना हुआ इस पाइप लाइन को कमीशण्ड हुये। … मुझे याद आया कि कहीं पढ़ा था देवास में नर्मदा का जल पंहुचने के बारे में। जल-प्रबन्धन बहुत महत्वपूर्ण है प्रगति/विकास में। उत्तरप्रदेश तो अपनी चिरकुटई/रंगदारी प्रबन्धन से नहीं उबर पा रहा है। लोग अबकी कह रहे हैं कि अच्छे दिन आने वाले हैं। देखते हैं, क्या होता है।

होशंगाबाद के नाम से मुझे विज्ञान शिक्षण के होशंगाबाद प्रयोग की याद हो आयी। मैने उसका जिक्र किया पर अन्य कोई भी व्यक्ति इस प्रयोग से परिचित नहीं था। संजीव गुप्ता ने बड़े टेनटेटिव अन्दाज में तुक्का लगाया – वहां एक सेण्ट्रल स्कूल है… मुझे लगता है होशंगाबाद की जनता भी एकलव्य प्रयोग से अपरिचित होगी आज के समय मेँ!

साढ़े पांच बजे – जब हमें होशंगाबाद नियराना था; बाईस किलोमीटर दूर थे वहां से। निश्चय ही दूरी और समय के आकलन में गलती हुई थी। उसके बाद समय अनुपात से और अधिक लगा। सीहोर जिले की तहसील बुधनी से गुजरते हुये सड़क बहुत खराब थी। धूल से पाला पड़ा। जगह जगह जेसीबी मशीनें काम कर रही थीं सड़क बनाने के लिये और उनके कारण भी व्यवधान हुआ। जन हमने होशंगाबाद के पास रेलवे फाटक और उसके बाद नर्मदा पर सड़क पुल पार किया तो शाम के सवा छ बज रहे थे। साढ़े छ बजे हम घाट पर पंहुच गये अन्यथा धुन्धलके में घाट के चित्र न ले पाते।

नर्मदा के सड़क पुल से गुजरते देखा – पहले किनारे पर करार पड़ा। इस ओर मन्दिर और इमारतें थीं। दूसरी ओर कछार था। बालू का खनन करते ढेरों ट्रक-ट्रेलर दिखे। गंगा जी की तरह यहां लोगों ने सब्जियां नहीं उगा रखी थीं। शायद खनन (माफिया) का वर्चस्व था यहां। खेती करने वाले कर ही न सकते थे। कछार में जल के समीप एक चिता भी जलते दिखी। वैसा ही दृष्य जैसा मुझे फाफामऊ की ओर गंगा किनारे दिखता था इलाहाबाद में।

नर्मदा का होशंगाबाद में घाट दर्शनीय था और अपेक्षाकृत साफ-सुथरा भी। नदी में प्रवाहित करने के लिये दीप-फूल के दोने और प्रसाद सामग्री की दुकानें थीं। अधिकांशत: मेक-शिफ्ट दुकानें। ऐसे एक दुकान का चित्र मैने लिया। दुकानदारिन एक सुन्दर नवयुवती थी। चित्र लेने के बाद अहसास हुआ कि वह युवती या आसपास के लोग टोक सकते थे। युवती ने कौतूहल भरी दृष्टि डाली अवश्य पर कहा कुछ नहीं। नहीं कहा तो चित्र मेरे कैमरे में हो गया।

इसी तरह की एक अन्य दुकान में एक छोटी लड़की बैठी थी। उसने कहा – काहे ले रहे हैं चित्र, अखबार में तो नहीं देंगे न? मैने उसका नाम पूछा। उसने पुन: कहा – अखबार में मत दे दीजियेगा। फिर बड़ी मुश्किल से नाम बताया – आरती। वह फोटो खिंचाने को लजाते हुये आतुर भी रही और कहती भी जा रही कि अखबार में न दीजियेगा। जब कुछ और सहज हुई तो बोली – मेरा नाम आरती नहीं, दीक्षा है। आरती तो मैने वैसे ही बता दिया!

पता नहीं, उसका नाम क्या था। आरती या दीक्षा। पर उसका डिसीविंग का अन्दाज पसन्द आया मुझे। वैसे भी नाम में क्या रखा है। और यह कह कर कि अखबार में नहीं दूंगा; या अखबार वाला नहीं हूं मैं; मैने अश्वत्थामा हत: (नरो वा कुंजरो वा) वाला सत्य ही बोला था।

मैने भी वैसा ही छद्म किया जैसा आरती/दीक्षा ने! 😆

घाट पर एक फिरकी बेचने वाला था। जमीन पर डेरा जमाये क्वासी-साधू नुमा तीन-चार लोग बतकही कर रहे थे। मन्दिर के पुजारी मेरे कैमरे को देखे जा रहे थे। घाट पर लोग नहा रहे थे। एक तरफ सीढ़ियों को छूते नर्मदा जल में फूल-माला-पूजा सामग्री तैरते दिखे। नर्मदा की भी ऐसी-तैसियत करने वाले लोग हैं। गंगा की तरह। बस थोड़े कम हैं।

नर्मदा और गंगा – दोनो की साड़ी पुरानी और मैली हो गयी है। बस; नर्मदा की साड़ी अभी जर्जर नहीं हुई। उसके छींट के रंग कुछ बदरंग हुये हैं पर अभी भी पहचाने जा सकते हैं। गंगाजी की धोती पुरानी और जर्जर हो गयी है। उसमें लगे पैबन्द भी फट गये हैं। गंगामाई बमुश्किल अपनी इज्जत ढ़ंक-तोप कर चल पा रही हैं। मंथर गति से। आंसू बहाती। अपनी गरिमा अपनी जर्जर पोटली में लिये। और निर्लज्ज भक्त नारा लगाते हैं – जै गंगा माई। 😦

मैने झुक कर नर्मदामाई का जल अंजुरी में लिया और सिर पर छिड़का। समय और तैयारी होती तो जल ऐसा था कि मैं स्नान भी कर सकता था वहां। माई को नमन कर वहां से वापस चला।

शाम के सात बजने वाले थे। रेलवे स्टेशन से सूचना मिल गयी थी कि बिलासपुर से आने वाली गोंडवाना एक्स्प्रेस इटारसी निकल चुकी है। ट्रेन से हबीबगंज/भोपाल घण्टे भर में पंहुचा जा सकता था। सड़क से इसका दुगना समय लगता। हम रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ लिये।

होशंगाबाद का नर्मदा घाट

नर्मदा माई के दर्शन की साध पूरी हुई।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

16 thoughts on “होशंगाबाद – भोपाल से नर्मदामाई की ओर दौड़

  1. नर्मदा को बेगड़ जी की आँखों से देखना शुरू किया था । करीब दसेक साल पहले कवि भवानीप्रसाद मिश्र पर केन्द्रित एक आयोजन में होशंगाबाद जाना हुआ तब अपनी आँखों से नर्मदा को देखने और उसका जल-स्पर्श करने का मौका मिला । अब आपकी आँखों से देख रहा हूँ । मुकम्मल सांस्कृतिक दस्तावेज़ होते हैं आपके ये रिपोर्ताज । नदियां सभ्यता की कथा-वाचक हैं और हमारा जीवन हैं। हम नदियों को माँ कहते हैं पर हम मनुष्यों का नदियों से बर्ताव बहुत असभ्य,अश्लील और अमानवीय किस्म का है । जब नदियां नहीं रहेगी तब आदमी समझेगा की उसने क्या खोया । तब शायद मनुष्य भी न रहे । आपने बहुत मर्मस्पर्शी भाषा में हमारी इन अत्यंत प्रिय जीवनदायिनी नदियों की इस दुर्दशा का वर्णन किया है :

    “नर्मदा और गंगा – दोनो की साड़ी पुरानी और मैली हो गयी है।बस; नर्मदा की साड़ी अभी जर्जर नहीं हुई। उसके छींट के रंग कुछ बदरंग हुये हैं पर अभी भी पहचाने जा सकते हैं। गंगाजी की धोती पुरानी और जर्जर हो गयी है। उसमें लगे पैबन्द भी फट गये हैं। गंगामाई बमुश्किल अपनी इज्जत ढ़ंक-तोप कर चल पा रही हैं। मंथर गति से। आंसू बहाती। अपनी गरिमा अपनी जर्जर पोटली में लिये।और निर्लज्ज भक्त नारा लगाते हैं – जै गंगा माई।”

    काश ! हमें सद्बुद्धि आए और हम अपनी नदियों का वास्तविक सम्मान उन्हें स्वच्छ और अप्रदूषित रखने का जतन करके करें . उनकी ‘ऐसी-तैसियत’ के भागीदार न बनें । आपने इस ओर ध्यान आकर्षित किया सो आभार !

    Like

  2. बस मुग्ध हूँ आपके यात्रा वृत्तांत से और नर्मदा माई के दर्शन तक… आपकी तस्वीरें देखते हुए मन में यही विचार आ रहा था कि कितनी सहजता से आप महिलाओं और बालिकाओं की तस्वीरें खींच लेते हैं, जबकि मुझे कई बार बहुत अच्छी तस्वीर का ड्रिश्य होते हुये भी डर लगता है… एक बार चाहा था तो उसने मना कर दिया!!

    Like

    1. आप सफेद हेयर डाई लगा लीजिये! मेरी तरह हो जायेंगे। महाकवि केशव को लड़कियां बाबा कह कर जाती थीं, वैसे ही! 🙂

      Liked by 1 person

      1. मेरे आधे से अधिक बाल सफ़ेद हैं और उन्हें पत्नी के लाख उलाहनों के बावजूद भी रंगना छोड़ दिया है, इस इंतज़ार में कि सारे सफ़ेद हो जाएँ… लेकिन विश्वास कीजिये, जब से मैंने रंगना छोड़ा है (पिछले चार सालों से) तब से बालों ने सफेद होना त्याग दिया है!!
        हाँ ये बाद दीगर कि अपना लुक अभी तक उम्र से पीछे चल रहा है!! 🙂

        Like

  3. Sir Bahut hi achhi post. Apko narmada per aur bahut likhna chahiye. Narmada hi kyo aapke pas to bahut kuchh hai likhne ko.

    Like

  4. Dhanyabad sir , ye mera saubhagya hai ya poorve janm ka punya , jo aap jaise ek sadhu prawatti ke itne bade adhikari ke sath 2 din raha aur aisa mahsoos kiya ki pariwar ke kisi bujurg sammaniya sadasya ki chhatra chhaya me hoo .maa Narmda ki darshan yatra ke bare me jo aapne itna likha aur visheshkar mere bara me jo tippadi ki uske liye koti koti dhanyabad , appke vicharo me itni takat hai jisase kisi ki jindgi badal sakti hai ,mai apke swasth jeewan & ujjwal bhavishya ki kamna karta hoo. in 2 din rahwash me agar bhule se bhi koi galti ho gayee ho to chhama prarthi hoo , phir kabhi sewa ka mauka dijiye tatha Aasheerwad aur kripa banaye rakhe sir ,,,, madam ko bhi hamara pranam……………………….

    Like

  5. होशंगाबाद तो कभी जाना न हो सका और न ही नर्मदा माई के ही दर्शन का सौभाग्य मिला. पर आपके इस यात्रा वृतांत से हमें नर्मदा तट का सजीव दर्शन हो गया. नर्मदा जी के दर्शन कराने के लिए कोटिशः धन्यवाद.

    Like

Leave a reply to Gyandutt Pandey Cancel reply

Discover more from मानसिक हलचल

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading