सब्जी भाजी का बगीचा

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उस घर के बाहर बांस की खपच्चियों वाली बाड़ के बगीचे को सड़क से साइकल चलाते आते जाते रोज देखता था। आज अपना वाहन रुकवा कर वहां पैदल गया। वहां पंहुचने के लिए संकरी पगडंडी पर लगभग 100 मीटर चलना था। उस संकरे रास्ते पर साइकिल भी नहीं चलाई जा सकती थी। खेत की कुछ ज्यादा चौड़ी मेड़ है वह।

वहां मिले शिवमूर्ति। शिवमूर्ति बाड़ वाले घर के पड़ोसी हैं पर उनके पास भी अच्छा सब्जी भाजी का बगीचा है।

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शकरकंद,  बैगन, मिर्च,  आलू, धनिया, लहसुन आदि अनेक सब्जियों की क्यारियां थी वहां।

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पड़ोसी राजेंद्र प्रसाद जी बांस की खपच्चियों की बाड़ लगाई थी। नीलगाय के आतंक से निपटने के लिए। उन्होंने बताया कि ये खपच्चियां भी कई बार नहीं रोक पातीं नीलगायों को। वे घुस आती हैं। पिछली बार आम्रपाली आम की फुनगी चर गयी थीं। बैगन के फल खा लिए थे। बहुत नुक्सान करती हैं। अच्छे और बड़े फल ही खाती हैं वे – राजेन्द्र प्रसाद ने बताया।

मेरी पत्नी और मुझे देख वहां अच्छी खासी भीड़ जमा हो गयी थी। सभी नीलगाय को अपने जीवन का प्रतिद्वंद्वी मान रहे थे। “कभी भी आ जाती हैं वे। ऊंचा उछल कर आ जाती हैं। बाड़ में नीचे से झुक कर भी प्रवेश कर जाती हैं। दुलत्ती बहुत तेज झाड़ती हैं। सांवले नर नीलगाय टी बहुत ही खूंखार हैं।”

बच्चे भी नीलगायों के बारे में बात करते आवेश से भर जाते लगे।

राजेन्द्र प्रसाद ने बताया कि वे कलकत्ता में जल निगम में काम करते हैं। नौकरी में कुछ अड़चन आ गयी है, सो पिछले पांच छ साल से गाँव में ही हैं। कई आम और नींबू के गाछ वे कलकत्ता से ही ले कर आये हैं। उनके सहकर्मी यहाँ आते रहते हैं बंगाल से। यहाँ आ कर बनारस और प्रयाग घूम कर जाते हैं। उनके बगीचे से नींबू आदि ले जाते हैं।

राजेन्द्र प्रसाद ने हमें दो बड़े प्रकार के नींबू के फल दिए। उनमे से एक अण्डाकार था। राजेन्द्र ने बताया कि उसे गंधराज कहते हैं। हल्का खट्टा होता है वह। बड़ी अच्छी सुगंध थी फल में। शायद इसी कारण से उसका नाम है गंधराज।

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राजेन्द्र के पास दो बिस्सा जमीन में बगिया है और उसके अलावा उनके पास दो गायें हैं। लगभग यही हम भी रखना चाहते हैं गाँव में। मैंने राजेन्द्र से कहा कि उनसे बगीचे और गाय पालने के बारे में सलाह लेने आते रहेंगे।

वे लोग मेरे पहले के काम के बारे में पूछते थे। मैंने बताया कि मैं ट्रेन हांकता था। ज्यादा समझ नहीं पाये वे मेरे काम के बारे में। रेलवे में उनका इंटरेक्शन फिटर खलासी या स्टेशन स्टाफ से हुआ है। उससे मेरे काम का अनुमान लगाना सम्भव नहीं और अनुमान कराना भी शायद व्यर्थ है। हल्का सा भी अनुमान होने पर अपेक्षा होने लगती है कि मैं कोई नौकरी दिलवा दूंगा। वह मेरे बस में नहीं!

मैं उन लोगों से विदा मांग कर आया। भविष्य में उनसे मिलता रहूँगा।

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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

3 thoughts on “सब्जी भाजी का बगीचा

  1. सर, आपकी लेखनी प्रेरणा पुंज रही है मेरे लिये। एक चिंगारी जो ह्रदय में समायी रही आपकी लेखनी से उसे हौसले मिले और मैंने अनुसरण करते हुए मन की खलबली को सोशल साइट्स के माध्यम से बाहर निकाला।
    यदाकदा उस लेखन पर आप एक नज़र डालकर उसे दिशा दें तो आलोक आभारी रहेगा । मेरे ब्लाग एड्रेस पर आप पहले भी आये हैं। मैं पुनःयाकांक्षी हूँ।
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  2. अरे वाह, कितना अच्छा लगा राजेन्द्र जी के नीबू देख कर। और भी बहुत सी सब्जियाँ उगाते होंगे हरियाली देक कर ही मन प्रसन्न हो गया। सब्जी उगानेे के परामर्श लेते रहिये दोस्ती बढेगी ही। वेसे भी पुरानी बातें नये लोगों से कर के क्या फायदा।

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  3. बहुत सुन्दर सर, जब तक वार्ता समान स्तर पर चलती है तब तलक बतियाने वालों में आनन्द का प्रवाह रहता है। यद्यपि जो बड़ा होता है वह लघुताओं के साथ सहजता का अनुभव कर लेता है किन्तु जो छोटे स्तर पर होता है वह या तो हीनता की परिधि में अ जाता है या फिर उम्मीदों के सोपान पर चढ़ना आरम्भ कर देता है। बात का आनंद तभी तक ही है जब दोनों को एक ही जमीन पर खड़े होने का अहसास हो। राजेन्द्र जी को आपके उच्चाधिकारी होने का ज्ञान होते ही वार्ता का मर्म बदल सकता था। चूँकि आप एक ऊंचे ओहदे पर हैं अतः आपको इस बात का भी विशेष ध्यान तखन पद जाता है। धन्यवाद सर!! प्रेरणा स्त्रोत बने रहें बस यूँ ही!!

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