डेढ़ी – डेढ़ किलोमीटर लम्बी सड़क जो उत्तर में रेलवे लाइन और दक्षिण में गंगा किनारे के गांव द्वारिकापुर के बीच है और जिसके पूर्व में मिर्जापुर, पश्चिम में भदोही जिले के गांव हैं; के बारे में कल मैने बताना शुरू किया था। मेरा विचार है कि इस सड़क के माध्यम से गांव के जीवन की बहुत सी बातें मैं देख/समझ/बता पाऊंगा। इस सड़क पर रोज सवेरे मैं 8-9 किलोमीटर साइकिल चलाता हूं। डेढ़ी के लगभग तीन चक्कर। घर से सात बजे निकलता हूं – उदर में दो कप चाय डाल कर। बटोही (अपनी साइकिल) को एक बोतल पानी थमाता हूं। जस्ट इन केस प्यास लग जाये!
उत्तर छोर पर डेढ़ी रेलवे लाइन के पहले ठिठक कर खत्म हो जाती है। उसके आगे और दांये, बांये रेलवे की जमीन है। डेढ़ी के भगीरथ – परधान लोग अपनी सीमा में ही डेढ़ी के बहाव को तय कर सकते हैं। रेलवे पर जोर नहीं उनका।

एक महिला थैले में अपना सामान ले कर मुझसे आगे चल रही थी डेढ़ी पर। उसे रेल लाइन के उस पार जाना था। मेरे सामने पटरी पार की उसने।
उसी समय दूसरी ओर से एक ग्रामीण को इस पार आने के लिये अपनी साइकिल पटरी पर कुदाते देखा।

डेढ़ी के सामने कटका रेलवे स्टेशन का शण्टिंग नेक का छोर दिखता है। अगर स्टेशन की लूप लाइन को चीरता लेवल क्रासिंग इस जगह पर शिफ़्ट कर दिया जाये तो स्टेशन सेक्शन के लेवल क्रासिंग को ब्लॉक सेक्शन में किया जा सकता है। रेलवे यातायात के लिये ज्यादा सुरक्षित विकल्प होगा वह। वर्तमान के लेवल क्रासिंग नम्बर 23 से इस जगह के बीच अपनी जमीन पर लगभग 400 मीटर पतली सड़क जरूर बना कर देनी होगी रेलवे को। और डेढ़ी के ग्रेडियेण्ट (समतल से ऊंचाई) को भी अगर टटोला जाये तो शायद नई जगह पर लेवल क्रासिंग की बजाय रोड-अन्डर-ब्रिज (पुलिया) बनाई जा सके शायद। वह रेलवे की लेवल क्रासिंग खत्म करने की पॉलिसी के अनुरूप होगा। अभी रेलवे लाइन का दोहरीकरण का काम चल रहा है। उस दशा में यह और भी ज्यादा सुरक्षित रेल यातायात का निमित्त होगा। गांव और रेल – दोनो के लिये विन-विन सिचयुयेशन।

मैं अगर रेल सेवा में होता तो यह करा पाना मेरे लिये बहुत सरल होता। अब मैं सुझाव भर दे सकता हूं। आसपास के चार-पांच प्रधान लोग, लोकल एमएलए/सांसद यह काम करा सकते हैं। शायद मण्डल रेल प्रबन्धक इसपर ध्यान दे सकें। पर इन सब प्रकार के जीवों के लिये फैज़ की वह नज्म है न! “और भी गम हैं जमाने में मुहब्बत के सिवा।“ मुहब्बत की जगह रेलवे क्रासिंग और डेढ़ी पढ़ें! 😊
लेवल क्रासिंग तो एक मुद्दा है। इसी तरह के अनेक मुद्दे हैं जिनपर मैं चर्चा योग्य सोच रखने लगा हूं। पर उस सब के क्रियान्वयन को ले कर मन में एक गहन उदासीनता है। यह रिटायर्ड जीवन का सच है। व्यक्ति कर्मक्षेत्र में छलांग नहीं लगाना चाहता। कर्मक्षेत्र जो कमिटमेण्ट मांगता है उसमें आशा/निराशा/हर्ष/खिन्नता/थकान सब कुछ है। उसमें रक्तचाप और व्यग्रता की मात्रा में बढ़ना भी निहित है। वह शायद मैं पुन: नहीं चाहता। बहुत हुआ।
हां, पर डेढ़ी यूंही डेड-एण्ड में खत्म नहीं होनी चाहिये। उसकी तार्किक परिणिति नेशनल हाईवे तक पंहुचने की है। और वहां तक पंहुचने के लिये जरूरी है लेवल क्रॉसिंग या रोड-अण्डर-ब्रिज।
देखें, कौन भगीरथ उसे वहां पंहुचाता है।
आपका सुझाव आपकी विशेषज्ञता और लम्बे अनुभव का नवनीत है. इसका कुछ लाभ तो ग्राम-समाज को मिलना ही चाहिए. सेवानिवृत्ति के बाद फल की कामना भले मत कीजिए पर ऐसे सुझाव देते रहिए और सद्प्रयास जारी रखिए. जब काम शुरु होता है तो रास्ते भी खुलते हैं और सहायक-जन भी मिलते जाते हैं .
हां! स्वास्थ्य का ध्यान रखिये . स्वास्थ्य पर इसका असर नहीं होना चाहिए .
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आपकी सोच अमल में आ सके इसके लिये शुभकामनायें !
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