रिटायरमेण्ट के बाद जब मित्र भी नहीं बचते (शहर के मित्र शहर में छूट गये, गांव के अभी उतने प्रगाढ़ बने नहीं) तो पठन ही मित्र हैं। दिन भर लिखा पढ़ने में बहुत समय जाता है। पर बहुत व्यवस्थित नहीं है पठन।
गांव में अखबार वाला समाचारपत्र बड़ी मुश्किल से देता है। पत्रिकायें नहीं मिलतीं। उसका विकल्प टैब पर Magzter पर पत्रिकायें पढ़ने से मिलता है। पुस्तकों की संक्षिप्तता का एप्प – Blinkist बड़े काम का है। पुस्तक परिचय का बहुत महत्वपूर्ण काम उनसे हो जाता है। अमेजन से किण्डल पर पुस्तकें खरीद कर पढ़ी जा सकती/जाती हैं। अमेजन प्राइम कई पुस्तकें मुफ्त में पढ़ने को दे देता है। उसके अलावा नेट पर उपलब्ध क्लासिक्स या पायरेटेड अच्छी पुस्तकों का भण्डार है। पेपर पर छपी पुस्तकें खरीदना लगभग खतम हो गया है पर पहले खरीदी पुस्तकों का भी बडा बैकलॉग है।

दिन भर में जितना पढ़ता हूं उसे व्यवस्थित तरीके से रखा जाये तो पुस्तक के 80-100 पृष्ठ बराबर होता होगा। पर साल भर में 10 पुस्तकें ही होती होंगी जिन्हे आदि से अन्त तक पढ़ने की स्वीकारोक्ति की जा सकती है। उनमें भी इतने टुकड़ों टुकड़ों में पढ़ी जाती हैं कि पुस्तक की समग्रता की अनुभूति बहुधा गायब रहती है। अब तक उन्हीं को पढ़ा हुआ मानता रहा हूं मैं।
पुस्तक कब पढ़ी मानी जाये? इस सवाल का जवाब इस बात में भी निहित है कि समय का सदुपयोग कर किस प्रकार से अपना पठन व्यवस्थित किया जाये।

कई पुस्तकें (लगभग) संक्षेप पढ़ने पर ही पढ़ी मानी जा सकती हैं। ब्लिन्किस्ट पर संक्षेप पढ़ने पर कुछ ही पुस्तकों को पुस्तक पर जा कर पढ़ने का मन करता है। कई पुस्तकों को उनका कवर, बैक कवर, प्रीफ़ेस, इण्ट्रोडक्शन और/या उनके विकिपेडिया/गुडरीड्स पर चर्चा के पठन से ही जाना जा सकता है। कई पुस्तकें तो सन्दर्भ ग्रन्थ सी हैं – उन्हे बारबार उपयुक्त प्रसंग में जा कर देखा जाता है। कम ही हैं, जिन्हे आदि से अन्त तक पढ़ना रोचक या जरूरी होता है। कई पुस्तकें संवेदनाओं को इतना झकझोरती हैं कि उन्हें पॉज दे कर, अपने को व्यवस्थित कर फिर उनपर जाना होता है।

अमेजन पर कुछ पुस्तकें ऑडियो रूपान्तरण में भी उपलब्ध हैं। उनका प्रयोग मैने नहीं किया पर प्राइम मेम्बरशिप के साथ तीन पुस्तकें ऑडियो में फ्री सुनने का प्रवधान है। इसके अलावा ब्लिन्किस्ट पुस्तक संक्षेप पढ़ने की बजाय सुना जा सकता है, जिसका प्रयोग आजकल यदा-कदा मैं कर रहा हूं। सुनाने वाली आवाज फिरंगी है; पर समझ में आ जाती है और पुस्तक ग्रहण उतना या उसके आसपास ही होता है जितना पढ़ने में। भविष्य में इस विधा का प्रयोग पुस्तक पढ़ने में उत्तरोत्तर बढ़ेगा।
जब आप पुस्तक सुन लें तो उसे पढ़ा हुआ माना ही जा सकता है। माना जायेगा भी।
कई पुस्तकें आपको नोट्स लेने, बुलेट प्वाइण्ट बनाने या दूसरों को समझाने के लिये पावर प्वाइण्ट बनाने को प्रेरित करती हैं। किण्डल पर यह सहूलियत है कि पढ़ने के दौरान आप मनचाहे खण्ड को हाइलाइट कर सकते हैं और फिर उस पुस्तक के इस तरह के खण्ड एक साथ देख भी सकते हैं। कुछ मोटी भारी भरकम पुस्तकों के साथ यह कर चुका हूं मैं।
वैसे, पुस्तक पर चर्चा करने वाले और मुझसे समझने वाले नहीं हैं जिनके लिये पावर प्वाइण्ट बनाया जाये। पुस्तक चर्चा के लिये पत्नीजी ही बची हैं। फिर भी पठन ही मित्र है।
शायद हर पुस्तक पर मन में तोल लेना चाहिये कि “मैने पढ़ लिया, या नहीं”। बहुत कुछ इस तरह कि भोजन करते हुये एक समय (या एक ही व्यंजन कई दिन लगातार बार बार खाने के बाद) आता है जब लगता है कि पेट भी भर गया है और स्वाद की तृप्ति हो गयी है। उस समय पुस्तक को पढ़ा मान लेना चाहिये। आफ़्टरऑल आपको यह तो किसी अन्य को प्रमाण देना नहीं है कि अगर आपने पुस्तक पढ़ ली है तो अमुक प्रसंग या विषय पर ध्यान दिया या नहीं या आपको वह कैसा लगा? पठन अगर स्वान्त: सुखाय है तो “पुस्तक पढ़ लेने का जजमेण्ट” भी उसी आधार पर होना चाहिये।
अधिकतर पुस्तक पठन में प्रगति अवरुद्ध होने पर भी उसे छोड़ा नहीं जाता। उसमें समय और पैसे का जो निवेश हो चुका होता है, वह उससे चिपके रहने को बाध्य कर देता है। पुस्तक से विरत होना एक सजग निर्णय है जो बुकवार्म लोग बहुधा नहीं ले पाते। मैं उनमें से एक हूं।
शायद हर पुस्तक पर मन में तोल लेना चाहिये कि “मैने पढ़ लिया, या नहीं”। बहुत कुछ इस तरह कि भोजन करते हुये एक समय आता है जब लगता है कि पेट भी भर गया है और स्वाद की तृप्ति हो गयी है। उस समय पुस्तक को पढ़ा मान लेना चाहिये।
फिर भी, पुस्तक पठन के अपने अनुशासन होने चाहियें। दिन में समय तय होना चाहिये। कितना समय कौन सी पत्रिकाओं को और कितना बुक समरीज़ को देना है, यह प्लानिंग की जानी चाहिये। पुस्तकों पर फुदकना – Book-hopping – कम से कम होना चाहिये। नोट्स लेने की आदत बननी और व्यवस्थित होनी चाहिये। … यह सब मैं बार बार सोचता हूं और बार बार उसमें आलसा जाता हूं।
तरीका बदलना चाहिये जीडी।
कुल मिला कर गुडरीड्स (goodreads.com) की साइट पर पुस्तक पठन का विवरण देने की और देते समय यह सब ध्यान में रखने की सोची है। पठन-नोट्स की अपनी स्क्रेप-बुक को भी बेहतर करने का यत्न करूंगा।
उत्तिष्ठत्, जाग्रत्, रिस्पॉसिबिल भव:; जीडी।
पुस्तक पठन अपनी अभिरूचि के विषय अनुरूप मूलतः स्वान्ता: सुखाय ही है जो कि सांसारिक जानकारियों से मानसिक तृप्ति प्रदान करने वाला होता है । अब यह अलग बात है कि जीवन के पूर्वार्द्ध में गद्य या पद्य या दोनों ही विधा में अभिरूचि को अभिव्यक्ति के लिए व्यवस्थित तरीके से समय नही मिल पाता है, भरण पोषण के लिए सेवा या व्यवसाय में व्यस्तता के कारण से।
जीवन के उत्तरार्ध में जब समय ही समय मिलता है कि अपनी गद्य या पद्य लेखन की अभिरुचि को अभिव्यक्ति देने के लिए, तब इंसान की वय सांसारिकता से विरक्ति से अध्यात्मिकता की ओर प्रवृत्त होने लगती है।
लेखन विधा में भी एकाग्रता, व पूर्ण समर्पण की पूर्णकालिक मनःस्थिति की आवश्यकता तो रहती ही है।
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लेख पढ लिया। किताबें बाकी हैं ! कई किताबें ! 🙂
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book jruri hoti gyan ke liye
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मुझे रिसर्च के सिलसिले में कई विषयों की पुस्तकों के रिफेरेंस की जरुरत होती है जिसके लिये मुझे बहुत प्रयास करना होता है, अधिकांश मैं इन्टरनेट से जुगाड़ करके उपयोग करता हूं ।
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ब्लॉग पोस्ट लिखने के लिए लिए भी इंटरनेट की बहुधा आवश्यकता होती है. नेट विहीन होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती.
एक सज्जन ने कहीं लिखा है कि जैसे लोग मंगलवार या एकादशी का उपवास करते हैं, वैसे एक दिन सप्ताह में इन्टरनेट का उपवास रखना चाहिए मानसिक स्वास्थ्य के लिए…
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