आज की रीता पाण्डेय की अतिथि ब्लॉग पोस्ट –
चैत्र शुक्ल पक्ष की द्वादशी (अप्रेल 5, 2020)। रात 9 बजे जब सभी बत्तियां बन्द हुईं और मिट्टी के दिये जगमगा रहे थे, तब आसमान में भी चांद की रोशनी उजाला कर रही थी और वातावरण साफ़ होने के कारण तारे टिमटिमा रहे थे। धूल का कण भी नहीं था।
एक आहसास गहरे में था कि पूरा हिन्दुस्तान एक साथ दिया जला कर प्रार्थना कर रहा है कि इस धरती को सुरक्षित रखना, प्रभु! गहरी आध्यात्मिक अनुभूति थी, मानो हर कोई जल-थल-नभ को दूषित करने के लिये क्षमा याचना कर रहा हो।
मन की यह भाव यात्रा का रास्ता दिखाया था प्रधानमन्त्री जी ने। शायद वे जानते हैं कि सामुहिक प्रार्थना में बहुत बल होता है। वे जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं। भारत के जन मानस को पहचानते हैं, और सामुहिकता की ताकत को भी। दशकों बाद एक ऐसा नेता हमारे बीच है जिसके आवाहन पर पूरा देश एक साथ खड़ा हो जाता है।
जब मैं छोटी थी, तब सुना था कि प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्रीजी ने जनता से अपील की थी कि अनाज के संकट के कारण लोग एक दिन एक वख्त का भोजन ही करें जिससे युद्धग्रस्त भारत पर विदेश का दबाव कम हो सके। उनके आवाहन पर सहर्ष लोगों ने उपवास किया था। उनके आवाहन पर कई माताओं बहनो ने अपने आभूषण उतार कर देश रक्षा के लिये दान कर दिये थे।
पांच अप्रेल को ऐसे ही एक आवाहन ने मन में एकता और सन्तुष्टि का भाव जगाया।
बच्चे काफ़ी उत्साहित थे। मेरी पोती चीनी (पद्मजा पांडेय) दिया जलाने को ले कर बहुत उत्सुक थी। घण्टा भर पाह्ले से तैयारी शुरू कर दी थी और दीवार पर लगी घड़ी पर बराबर नजर लगाये हुई थी।
नौ बजे, पास के बस्ती के कुछ बच्चे जोर जोर से “भाग, करोना भाग!” का सामुहिक नारा भी बार बार लगा रहे थे। कहीं कहीं पटाके और आतिशबाजी के प्रयोग भी हो रहे थे। कुल मिला कर पूरे देश के एक साथ होने का भाव गहरे में महसूस हो रहा था।
विलक्षण अनुभव था!

सही कहा। उस दिन सारा देश एक साथ खड़ा था। बस इसी तरह एकता से इस विपदा से लड़ना है। आभार।
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