मैं लीलापुर के तालाब के किनारे था। यह बड़ा तालाब है। इसके किनारे बहुत से वृक्ष हैं। इसकी साफ़सफ़ाई पर ग्रामीण बहुत ध्यान देते हैं और यह भी उनका ध्यान रखता है। इसके किनारे एक प्राचीन मन्दिर भी है – शायद 17-18वीं शताब्दी का।
तालाब में पानी पर्याप्त था। उसके दूर के किनारे पर पानी में एक गाय जैसा बड़ा जानवर दिखा। कुछ कुत्ते उसपर झपट रहे थे। वह जब भी बच निकलने और किनारे पर जाने का प्रयास करता था, कुत्ते उसपर हमला कर देते थे। कुत्तों का ध्येय उसे पानी में फ़ंसा कर थका कर मार डालना लगता था।
दृष्य कुछ अजीब सा था। मैने ध्यान से देखा तो पाया कि वह जानवर नीलगाय था। बड़े आकार का नीलगाय।

नीलगाय ने हार कर अपनी स्ट्रेटजी बदली। वह किनारे पर जाने की बजाय ताल के बीच में तैर कर दूसरे किनारे – मेरी ओर – आने का प्रयास करने लगा। मेरे सामने दो विकल्प थे। उसका चित्र लेते जाना अथवा वहां से हट कर वापस चल देना। नील गाय इस किनारे आने पर बेतरतीब भागता तो उससे मेरे घायल होने की सम्भावना थीं। मेरे पार केवल मोबाइल था। आत्मरक्षा के लिये कोई डण्डी या छड़ी नहीं थी। अपना डेढ़ हाथ का बैटन भी घर पर छोड़ आया था आज।
पर दृष्य इतना रोमांचक था, कि सतर्क रहते हुये मैने चित्र लेना जारी रखा। यद्यपि मोबाइल कैमरे से कोई बहुत स्तरीय फ़ोटो नहीं आ रहे थे।
नीलगाय मेरी ओर तैर रहा था। परेशान और बेतरतीब तरीके से तैरता हुआ कभी दायें जा रहा था कभी बायें। वह इस किनारे कहां जमीन पर आयेगा, ठीक से नहीं कहा जा सकता था।

मुझे कुछ देर में स्पष्ट हो गया कि वह करीब 50 फ़िट दूर मेरी दांयी ओर किनारे पर पंहुचेगा। इस बीच किनारे पर कुछ और तमाशबीन ग्रामीण इकठ्ठा हो गये थे। नीलगाय ग्रामीण लोगों का प्रिय पशु नहीं है। वह उनकी फ़सलों को बहुत बरबाद करता है। इसलिये तमाशबीनों में उसकी दशा के साथ संवेदना रखने वाले कम ही थे। कुछ लोगों ने तो उसपर आक्रमण करने (या आत्मरक्षा के लिये) डण्डे भी ले रखे थे। तमाशबीनों की गतिविधि से नीलगाय के किनारे पंहुच कर बेतारतीब भागने की सम्भावनायें बनती थीं।

नीलगाय किनारे लगा। उसके आकार से स्पष्ट हो गया कि वह पूरी तरह वयस्क था। एक पैर में शायद चोट लगी थी। इसी कारण वह कुत्तों के चंगुल में आ गया था। भयभीत था और उसकी दुम उसके पृष्ठभाग में दबी हुई थी।

वह किनारे जमीन पर आ गया। तमाशबीनों ने कुत्तों को दूर ही भगाये रखा। पर भीड़ से डर कर नीलगाय घूमा और मेरी ओर भागा।

नीलगाय की दिशा से अलग हटने की तत्परता दिखाई मैने। मेरे पास से करीब दस कदम के फ़ासले से वह दौड़ता हुआ एक ओर आम के झुरमुट में चला गया। मोबाइल संभाले रखना और नीलगाय से अपने को बचाना – ये दोनो काम मुझे साथ साथ करने थे। इस फ़ेर में मोबाइल हिला और एक दो फ़ोटो बेकार आये। पर मैं अपने को नीलगाय की दिशा से बचा पाया।

पर बेचारे नीलगाय का दुर्भाग्य! अमराई में फिर कुत्तों के दूसरे झुण्ड ने उसे खदेड़ा और वह फ़िर वापस लौट कर तालाब में कूद गया। इस बार इतने सारे लोग ताल के किनारे इकठ्ठा थे और नीलगाय की परेशानी देख उससे सहानुभूति की मात्रा बढ़ गयी थी तमाशबीनों में, कि उसे तालाब से निकालने के लिये लोगों ने कुत्तों को खदेड़ दिया।
नीलगाय पानी से जल्दी निकल आया और दूर खड़े अपने झुंड के नीलगायों की ओर निकल गया। यह देख कर मुझे नीलगाय प्रजाति की सामुहिक वृत्ति भी नजर आयी। वे अपने झुण्ड के साथी को विपत्ति में परित्याग कर गये नहीं थे। आसपास मंडरा रहे थे।

नीलगाय को झुण्ड में फ़सल चरते और अगियाबीर के टीले पर बबूल की छाया में आराम फ़रमाते बहुत देखा है। पर उसके साथ इतनी नजदीक से और इतनी रोमान्चक मुलाकात पहले नहीं हुई।
रोमांचक रही यह मुलाक़ात। नील गाय जब मैं सुनता था तो लगता था कि यह जंगली गाय होगी जैसे बाईसन(गौड़) होता है। बहुत बाद में पता चला कि ये तो हिरण जैसा दिखता है। लेकिन जिस हिसाब से इनका शरीर है इनके बलशाली होने में मुझे कोई शक नहीं है। इस लेख के लिए यही कहूँगा कि अंत भला तो सब भला। आखिरकार नील गाय की जान बच ही गयी।
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YE KALE RANG KI NILGAY KE BARE ME PAHALI BAR DEKH SUN RAHA HU / HAMARE IDHAR SAFED RANG KI NILGAY DIKHAI DETI HAI KALE RANG KI NAHI / LOG ISE MARAKAR ISAKA GOSHT KHA JATE HAI / YAH GANGA KINARE HI PAYI JATI HAI AUR YAH JHUND ME RAHATI HAI AISA MAI DEKHATA HU /
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