अपने आसपास के ग्रामीण चरित्रों के बारे में हम ब्लॉग पर लिखेंगे। #ग्रामचरित हैशटैग के साथ। पहला चरित्र थी दसमा। मेरी पत्नीजी द्वारा लिखी गई पोस्ट। अब पढ़ें सुग्गी के बारे में –
सुग्गी गांव में आने के बाद पहले पहल मिलने वाले लोगों में है। उसका घर यहीं पास में है। सौ कदम पर पासी चौराहे पर उसका पति राजू सब्जी की दुकान लगाता है। उसे हमने अपना दो बीघा खेत जोतने के लिये बटाई पर देने का प्रयोग किया था। जब हम यहाँ शिफ्ट हुए तो राजू स्वयं आया था। उसने परिचय दिया कि वह विश्वनाथ का बेटा है। विश्वनाथ मेरे श्वसुर स्वर्गीय शिवानंद दुबे का विश्वासपात्र था। उसी विश्वास के आधार पर पत्नीजी ने खेत उसे जोतने को दिया।
बाद में पाया कि बटाई पर खेती करने के काम में सुग्गी अपने पति की बजाय ज्यादा कुशल है। राजू में अपनी आत्मप्रेरणा (इनीशियेटिव) की कमी है। उसके घर में नेतृत्व का काम शायद सुग्गी करती है।

मेहनती है सुग्गी। घर का काम करती है। खेती किसानी भी ज्यादातर वही देखती है। क्या बोना है, क्या खाद देना है, कटाई के लिये किस किस से सहायता लेनी है, खलिहान में कैसे कैसे काम सफराना है और आधा आधा कैसे बांटना है – यह सब सुग्गी तय करती है।
अपने आसपास लोगों से अपने हक के लिये दबाव दे कर बोलने बतियाने में वही तेज है अपने पति की तुलना में। पर वह मुखर होने के साथ बात-व्यवहार में भी कुशल है। सब्जी की दुकान में भी वह ज्यादा दखल रखती है। गावदेहात में स्त्रियों में नेतृत्व की क्षमता कम ही पायी जाती है। सुग्गी में वह भरपूर है।
पिछले कई महीनों से सुग्गी अपने हाथ पैर (शायद अर्थराइटिस के किसी प्रकार) के रोग से परेशान है। उंगलिया सूज जाती हैं। उनमें दर्द भी होता है और कभी कभी पानी भी भर जाता है। मेहनतकश के लिये हाथ पैर का जकड़ जाना बहुत दुखदाई होता है। इसके इलाज में कुछ हजार खर्च हो गये हैं। कई महीनों तो वह कोई काम नहीं कर पाई। अब रुपया में बारह आना भर हाथ पैर काम करने लगे हैं। उसी के बल पर वह सतत लगी रहती है श्रम करने में।
अभी सरसों और गेंहू की फसल निपटाई है उसने दो सप्ताह पहले।
लॉकडाउन होने के कारण उसका आदमी सब्जी मण्डी नहीं जा पाता। राजू के पास एक मॉपेड है, जिससे रात दो तीन बजे मण्डी जा कर सब्जी ला सकता है। पर एक बार गया तो किसी पुलीस वाले ने धमका दिया, सो बाद में गया ही नहीं। अब वह और सुग्गी सब्जी की बजाय चाय बेचते हैं अपनी गुमटी पर। कभी कभी सुग्गी आलू की टिक्की भी बनाती है। पुलीस वाले कभी कभी तंग करते हैं, पर अपनी बस्ती के पास होने के कारण काम चला लेते हैं राजू और सुग्गी।
कुछ बकरियां पाली हैं सुग्गी ने। बकरियां गांव के गरीब तबके का फिक्स्ड डिपॉजिट होती हैं। इन पर खर्च लगभग नहीं होता है और साल में एक दो बार बेचने पर ठीकठाक पैसा मिल जाता है। कभी कभी सुग्गी खरगोश भी पालती है। चिन्ना पांड़े के खेलने के लिये वह बकरी के बच्चे और खरगोश ले आती है।
सिलाई भी कर लेती है सुग्गी। स्त्रियों के कपड़े सिल लेती है। उसकी सिलाई मशीन खराब हो गयी तो मेरी पत्नीजी ने अपनी मशीन उसे काम करने को दे दी। वह मशीन महीनों से उसी के पास है।

कोरोनावायरस संक्रमण से बचाव के लिये मास्क बनाने-बांटने का विचार मेरी पत्नीजी के मन में आया। सुग्गी को एक नमूना दिया मास्क का। दो लेयर के कपड़े – एक मोटा और एक महीन भी उसे दिये। उसे यह भी कहा कि प्रति मास्क दस रुपया सिलाई मिलेगी। यह काम रुचा सुग्गी को। पहले दिन वह दो मास्क बना कर लाई। उनमें नफासत कुछ कम थी, पर काम लायक थे वे मास्क। उसके बाद बाकी पच्चीस मास्क तो बहुत स्तरीय बनाये सुग्गी ने। उनमें से अधिकांश मास्क मेरी पत्नीजी ने घर में काम करने वाली महिलाओं, पड़ोस के अपने भाई के नौकर, अपने वाहन चालक और दसमा को बांटे। अभी भी उन लोगों से कह दिया है कि किसी और को चाहिये तो वे दे सकती हैं।

मेरी पत्नीजी द्बारा दिये गये कपड़े और सिलाई के पैसे तथा सुग्गी की कारीगरी ने बड़ा शानदार काम किया कोरोना युद्ध के लिये। मैं भी पहले एन95 मास्क का प्रयोग कर रहा था, अब सुग्गी के बनाये भगवा रंग के मास्क को अपना लिया है। मेरी पत्नीजी और पोती चिन्ना पांड़े भी सुग्गी के बनाये मास्क को पहन कर फोटो खिंचा चुके हैं।
रीता पाण्डेय चिन्ना पाण्डेय ज्ञानदत्त पाण्डेय दसमा
पत्नीजी जरूरतमंद गांव वालों को मुफ्त में मास्क बांटने की सोच रही हैं। आगे शायद मास्क के डिजाइन में और सुधार हो। फिलहाल तीन प्लेट लगा रंगबिरंगा सुग्गी द्वारा बनाया गया मास्क मुझे तो बहुत आकर्षक लगता है।
सुग्गी का व्यक्तित्व आकर्षक है। मेहनत करने से शरीर अनुपात में है। उसके दांत चमकीले सफेद हैं और वह हंसती रहती है। दुख को अपने पर ज्यादा हावी नहीं होने देती। कमर में मोटी करधनी पहने वह सीधे बिना झुके चलती है तो आत्मविश्वास झलकता है उसकी चाल से। चांदी के ही सही, गहने पूरे पहनती है वह। दबंग है, सो अपने बराबर के और अन्य बिरादरी वालों को ज्यादा सेंटती नहीं है। शायद यह दबंगई न हो तो उसका घर दुआर ही न चले!

सुंदर चित्रण सुग्गी का । शहर में भी पाठक सुग्गी को अपने आस पास ही खड़ा पाता है। आपके साथ आभार आपकी पत्नी का भी सुंदर प्रस्तुति।
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धन्यवाद, श्रीमती पंत।
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सुग्गी जी के विषय में जानकर अच्छा लगा। प्रेरक व्यक्तित्व है उनका। इस श्रृंखला की आगे की कड़ियों का इन्तजार रहेगा।
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ye hai gaon aur deahato ki aj kivastavikata / delhi aur desh ki rajdhaniyo me baithe netao ko yah sab nahi dikhai deta , kyonki jaisa apane kaha ki GRAM CHARIT kaisa hai usake bare me netao ko pata hi nahi hai / ap isi tarah se bataiye kyonki gaon ki vastavik ta vahi ke kisi vyakti dvara kaha jata hai to vahi vishvasaniy hai /
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