वे इस गांव के सम्भवत: सज्जनतम व्यक्ति हैं। सवेरे उठ कर शौच-स्नान के बाद एक डेढ़ घण्टा ईश्वर पूजन में लगाते हैं। उनके पास धर्म ग्रंथ न केवल हैं, वरन उनका अध्ययन भी करते हैं। नियमित अध्ययन अनुशासन की स्निग्धता उनमें प्रचुर है। उनकी ही जमीन पर हनुमान जी का एक मंदिर है, जिसकी प्रतिमा जमीन में मिली थी। उन्होने प्रतिमा की पुनर्स्थापना की है और वार्षिक भण्डरा भी होता है वहां।
मैंने उन्हे गांव के पंच-प्रपंच में उलझते नहीं पाया। व्यवहार में सरल हैं। कभी किसी से अपशब्द बोलते नहीं देखा।
मेरी तरह उन्हे भी ऑस्टियोअर्थराइटिस है और वे भी पैदल की बजाय साइकिल से चलते हैं!
मैं यक्ष-प्रश्न के संदर्भ में महाभारत का अरण्यपर्व देखने उनके यहां गया था। पर जैसा सामान्यत: होता है; लोग महाभारत घर में रखते नहीं। उनके पास भागवत पुराण था, पर उसमें यक्ष संदर्भ नहीं मिला।
सवेरे सवेरे जितने प्रेम से उन्होने मुझे बिठाया और मनोयोग से भागवत के दोनो खण्ड खंगालने का कार्य किया, वह बहुत अच्छा लगा।
मुझे यह लगा कि यूंही, कैलश जी के पास जाया और बैठा जा सकता है। धर्म और अर्थ को सरलता के मधु में जिस कुशलता से उन्होने साधा है, वह अभूतपूर्व है।

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