परेशानी में हैं कड़े प्रसाद

उस दिन कड़े प्रसाद महराजगंज कस्बे के बाजार में मिले। मॉपेड से थे, पर बेचने के लिये नमकीन, पेड़ा आदि नहीं लिये थे। मैंने उनका हालचाल पूछा तो बताये – “गुरूजी, आजकल बड़ी परेसानी में आई ग हई।”

उनके भाई माताप्रसाद को साल भर पहले ब्रेन स्ट्रोक हुआ था। अस्पताल में भर्ती रहे। मुश्किल से बचे। भाई थे तो कड़े प्रसाद महीना भर अपना कामधाम रोक कर अस्पताल में तीमारदारी करते रहे। ठीक हो गये थे माता प्रसाद।

कड़े प्रसाद (बांये) और माता प्रसाद। ढाई साल पहले का चित्र।

अब फिर से स्ट्रोक हो गया है। “अस्पताल में भरती हयेन साहेब। पचासन हजार खर्चा होई गवा बा। अबऊ वेण्टीलेटर पर हयें। (अस्पताल में भर्ती हैं साहब। पचास हजार खर्च हो गया है। वेण्टीलेटर पर हैं)।” कड़े प्रसाद ने बताया कि जिला पंचायत अध्यक्ष के यहां हो कर आ रहे हैं, कि वे कुछ मदद कर दें।

जुगाड़ू हैं कड़े प्रसाद। जिला पंचायत तक टटोल ले रहे हैं भाई के इलाज के लिये। आम आदमी तो यूंही फड़फड़ाता रहता। खैर, अभी कोई मदद नहीं मिली है।

[…]

अपनी मॉपेड पर पेड़ा का बक्सा ले कर बेचने जाते कड़े प्रसाद

दो दिन बाद फिर दिखे कड़े प्रसाद। इस बार पीछे बक्सा लादे थे। बताया कि भाई की हालात अब ठीक है। बोल-बतिया ले रहे हैं। सब को पहचान ले रहे हैं और कल शाम कुछ खाना भी खाया। अभी हैं आईसीयू में ही, पर वैण्टीलेटर हट गया है।

बक्से में पेड़ा बना कर लिये निकले थे। “थोड़ा ल साहेब (थोड़ा लीजिये साहेब)। बहुत मुलायम है और चीनी तो बहुत ही मामूली पड़ी है।”

मैंने उन्हे कहा कि पेड़ा तो डाईबीटीज के कारण खाते नहीं हम। नमकीन होता तो ले लेते। पर समयाभाव में कड़े प्रसाद नमकीन नहीं बना पाये थे। “अगली बेरियाँ लई क आउब साहेब (अगली बार ले कर आऊंगा, साहब)।”

कड़े प्रसाद कुशल सेल्समैन हैं। देसी आदमी। एक बार मेरे घर के पास के स्कूल में छुट्टी हो गयी थी। स्कूल की मास्टरानियाँ घर जाने को निकली थीं। कड़े प्रसाद उनसे पुरानी जानपहचान न होते हुये भी सड़क पार ही एक एक पैकेट नमकीन टिका दिये थे उनको। और अब वे सब उनकी फेरी की रेगुलर ग्राहक हो गयी हैं। कड़े प्रसाद गंजे को कंधी और मुर्दे को चवनप्राश बेचने का माद्दा रखते हैं।

अलबत्ता, इस समय कड़े प्रसाद परेशानी में हैं। भाई के गम्भीर बीमार होने की परेशानी। फिर भी, जीवन और जीविका उपार्जन चलता ही रहता है, कड़े प्रसाद भाई की तीमारदारी कर रहे हैं, पर अपने काम पर लौटना उनकी जरूरत है।

कर्म क्षेत्र में काम का चक्र रुकता नहीं।


Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

7 thoughts on “परेशानी में हैं कड़े प्रसाद

  1. Medical insurance की उपयोगिता शायद नहीं जान पाए हैं गाँव देहात के लोग अभी …

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    1. लाइफ इंश्योरेंस वाले तो पीछे लगे रहते हैं। टर्म इंश्योरेंश की कोई बात ही नहीं करता! 🙂

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  2. प्रधानमंत्री जी की आयुष्मान आरोग्य योजना से कोई मदद नही मिलती है इन लोगों को।

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    1. मैंने पूछा नहीं, पर कड़े प्रसाद ने सभी साधन टैप किये हैं, इसका मुझे यकीन है।

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