हंगामा क्यों है बरपा – बेबाक बुधवार का ट्विटर स्पेस

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बेबाक बुधवार” तीन ताल वालों का ट्विटर स्पेस है। उस पर एक परिचयात्मक पोस्ट पहले भी लिख चुका हूं। उसके माध्यम से आजतक रेडियो के तीन ताल वाले पॉडकास्टक लोग श्रोता मण्डली को अपने साथ जोड़ने का प्रयास करते हैं। ठेठ भाषा में कहें तो श्रोता पकड़ने के लिये कंटिया है यह कार्यक्रम। दो ढाई सौ श्रोता जुटते हैं। खुल्ला मंच है तो लोग आते जाते रहते हैं। किसिम किसिम के श्रोता लोग बीच बीच में वक्ता भी बन जाते हैं। वे अपनी अपनी ठेलते हैं। कोई विद्वान टाइप होते हैं। संस्कृत हिंदी के क्लिष्ट श्लोक या काव्य या वक्तव्य परोसते हैं जो अपने जैसे श्रोता जो रात नौ दस बजे अपना ग्रे मैटर विश्राम के मोड पर रख कर सुनते हैं; के ऊपर से निकल जाता है। पर कुल मिला कर कण्टेण्ट ऐसा निकल आता है जो नोट पैड पर स्क्रिबल करने और बाद में उसपर सोचने पर बाध्य करता है।

रात में देर तक सुनना 60+ वाले के लिये भारी पड़ता है। जवान पीढ़ी तो शायद अपनी क्षमताओं के हिसाब से निशाचर होती है। हमारे जैसे लिये बेहतर है कि उस कार्यक्रम की रिकार्डिंग हो, जो बाद में सुनी जा सके। कुलदीप मिसिर जी को मैंने कहा भी है। आखिर मुझे उसमें बोल कर अपना पाण्डित्य प्रमाणित करने का मोह तो है नहीं (उससे शायद पचीस पचास ट्विटर फॉलोवर्स मिल जायें, या न भी मिलें); इसलिये दिन में इत्मीनान से सुनना ज्यादा बेहतर विकल्प होगा। कुलदीप शायद वैसा जुगाड़ बिठा भी रहे हैं।


बेबाक बुधवार का ट्विटर स्पेस मंच

आठ दस दिन पहले उनके बेबाक बुधवार कार्यक्रम का विषय था – हंगामा क्यों है बरपा?

आजकल देखा है कि वे तीनतालिये विषय ऐसा रखते हैं जिसपर कोई भी श्रोता कुछ भी बोल ले। और उसके बोलने से आगे बात बुनी जा सके। बहुत कुछ वैसे जैसे लोग आपस में हाँकते हुये कोई कहानी सामुहिक रूप से बुन लेते हैं। कोई भी श्रोता (जो वक्ता बन चुका होता है) अगर ज्यादा ही बहकने लगता है तो उसको पटरी पर लाने का काम सूत्रधार का होता है – जो कार्य उस दिन नितिन ठाकुर कर रहे थे। नितिन अतिथि-तीनतालिये हैं। उनके पढ़ाकू पॉडकास्ट से पता चलता है कि वे चार चार किताबें कांख में दबाये चलने वाले जीव हैं।

खैर, मैं हंगामा बरपा वाले विषय पर आता हूं। मुझे लगा था कि उर्दू वाली गजल के बहाने लोग शराब की तरफदारी या खबरदारी में माहौल बनायेंगे। यह अकबर इलाहाबादी की गजल की मुख्य पंक्ति है – हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है; डाका तो नहीं मारा चोरी तो नहीं की है।

बहुत अधिक हंगामों के युग में होना, बहुत सारी रोचकता तलाशना, बात बात पर बड़ी खबर चीखती टीवी एंकर से दो-चार होना, नई पोस्ट, नयी लाइक-कमेण्ट के डोपेमाइन का लती होना; यह अभिशाप नहीं तो क्या है?

इसी पोस्ट से

पर लोग इसे आजकल के सोशियो-पॉलिटिकल हंगामों पर ले गये – लोग बात करने लगे पेगासस की, साइबर जासूसी की, कोरोना संक्रमण की, तीसरी वेव की, बारिश और बाढ़ की … इसी तरह के आंचा-पांचा विषयों की। लोगों के अनुसार हंगामें तो हो ही रहे हैं। मैक्रो लेवल पर – वैश्विक स्तर पर – भी हंगामे हैं और माइक्रो लेवल पर भी। वक्ता लोग अपने मन में चल रहे हंगामों की बात पर तो नहीं आये, वर्ना मन में जितना सिनिसिज्म, नार्सीसिज्म; जितनी हताशा, जितनी उदासी और जितनी दुनियां को मुट्ठी में कर लेने की तलब आज के युग में दिखती है, उतना शायद पहले कभी नहीं रही।

चैनल फेंटने की लत Photo by JESHOOTS.com on Pexels.com

एक चीनी (प्रसिद्ध) कहावत है – एक चीनी श्राप (Curse) – May you live in interesting Times.

पता नहीं यह मूलत: चीनी कहावत है या नहीं, मुझे रुचती है। बहुत अधिक हंगामों के युग में होना, बहुत सारी रोचकता तलाशना, बात बात पर बड़ी खबर चीखती टीवी एंकर से दो-चार होना, हर दस मिनट में नयी खबर, नई पोस्ट, नयी लाइक-कमेण्ट के डोपेमाइन का लती होना; यह अभिशाप नहीं तो क्या है?

यह हंगामत्व से सराबोर युग अभिशप्त युग नहीं तो क्या है?

एक नियमित, सामान्य जीवन जीना नियामत है। मैंने कहीं पढ़ा कि डार्विन अपने जीवन के उत्तरार्ध में अपने घर से 12 किलोमीटर की परिधि में ही रहे। उन्होने चिंतन मनन किया; पर कोई हंगामा नहीं तलाशा। हम भी अपने टीवी स्विच ऑफ कर दें। बहुत ज्यादा सोशल मीडिया पर लिप्तता न रखें। ओटीटी प्लैटफार्मों से अश्लील भाषा न सीखें। अपनी देशज सामाजिकता निभायें। अपने लाइक्स गिनने के फेर में जिंदगी न खपायें। ये हंगामें किसी काम के नहीं हैं। सब हंगामा पड़ा रह जायेगा जब लाद चलेगा बंजारा।

हंगामत्व चौपट कर रहा है। उसे छोड़ अपनी जिंदगी जीने का यत्न करना चाहिये।

चला जाये। बहुत कह लिया! 😆

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हंगामा क्यों है बरपा Photo by Harrison Haines on Pexels.com

Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

7 thoughts on “हंगामा क्यों है बरपा – बेबाक बुधवार का ट्विटर स्पेस

    1. जी, पढ़ी है. बहुत जानदार पुस्तक है. फिर भी आपकी अनुशंसा पर इसका ऑडियो संस्करण भी खरीद लिया है. एक बार सुना जाएगा.

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  1. हंगामा केवल हंगामें तक ही सुख देता है। उसके बाद आपको अपना व्यक्तित्व ही सान्त्वना देगा। तो व्यक्तित्व बनाने में लगे रहना चाहिये, नियमित।

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  2. हंगामें किसी काम के नहीं हैं। सब हंगामा पड़ा रह जायेगा जब लाद चलेगा बंजारा।
    हंगामत्व चौपट कर रहा है। उसे छोड़ अपनी जिंदगी जीने का यत्न करना चाहिये।
    एक नियमित, सामान्य जीवन जीना ही नियामत है। 

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