गायत्रीमंत्र और वह शक्ति हमें दो दयानिधे वाला गायन योगी आदित्यनाथ के अजेण्डे के हिसाब से तो परफेक्ट प्रार्थना है, पर घोसियाँ और इटवा की मुस्लिम बहुल इलाके के स्कूलों में भी यही प्रार्थना होती होगी तो बहुत कुड़बुड़ाते होंगे मुसलमान।
आज सवेरे साइकिल भ्रमण पर यह सब दिखा –
घुमई की पेंशन आ गयी है। लेने जायेंगे आज।
उमाशंकर यादव उर्फ घुमई को चीनी मिल, औराई की नौकरी की करीब हजार रुपया पेंशन मिलती है। अगस्त की पेंशन खाते में आ गयी है। आज लेने जायेंगे, महराजगंज के पंजाब नेशनल बैंक में।
रोज आठ बजे सवेरे की सैर के बाद वे मुखारी और नहाने का उपक्रम करते हैं। आज आधा घण्टा जल्दी ही उस काम पर लग गये थे। मैंने जल्दी का कारण पूछा तो उठने लगे। मैंने कहा – जैसे बैठे हैं, जो कर रहे हैं, करते रहिये वर्ना फोटो सही नहीं आयेगा।
उन्होने उसी पोज में मुखारी मुंह में दाबे बताया कि पेंशन का पैसा निकालने जायेंगे। इसलिये जल्दी तैयार हो रहे हैं।

दो-तीन बातें मन में आयीं – एक तो बैंक जाना अपने आप में महत्व की बात है घुमई के लिये। दूसरे, बैंक में पैसा पड़ा रहे, यह उम्रदराज लोगों को सही नहीं लगता। फ्रॉड का जमाना है। पैसा इधर उधर कोई मार जाये, इससे पहले उसे निकाल लेना चाहिये। तीसरे, पेंशन, भले ही कितनी हो, हजार रुपया ही हो; उसके खाते में आने की जो सनसनी, जो खुशी होती है, वह और कोई क्या अनुभव कर सकता होगा! 😆
भारत अभी जवान देश है। पर उत्तरोत्तर पेंशनजीवी देश होता जायेगा। घुमईत्व भारत का भविष्य है!
शनिवार है। नींबू-मिर्चा बेचने वाला।

वह उमेश किराना के पास मिला। लड़का ही है। साइकिल में नींबू मिर्चा की डोरियां लटकाये था। शनिवार को लोग खरीदते हैं। टोना-टोटका से बचाव के लिये। इस डोरी को घर पर, दुकान पर लटकाते हैं। “ताकि किसी की बुरी नजर न लगे”।

लड़के ने बताया कि महराजगंज में रहता है। स्कूल जाता है। शुक्रवार और शनिवार को स्कूल नहीं जाता। शुक्रवार को नींबू और मिर्च खरीद कर लाता है और उनकी डोरियां गूंथता है। करीब साठ सत्तर डोरियां साइकिल पर लटका कर शनिवार को बेचने निकलता है। दस रुपये की एक। लागत आती है पांच रुपया। सभी बिक ही जाती हैं। मेरे सामने एक खरीदने वाले मिल ही गये।

लड़का शुक्र शनि को यह काम करता है। बाकी दिन स्कूल जाता है, पर उसके पहले माला-फूल बेचता है। गांवदेहात में लड़कों को अखबार बांटने का काम नहीं मिलता तो यही काम उसके समतुल्य है। इसी से उनकी ‘पॉकेट मनी’ निकल आती होगी या अपने परिवार की आमदनी में सहयोग करते होंगे!
कास फूल गया है, मेरे बालों की तरह

अभी तो हल्की फुल्की डाई लगा दी है पत्नीजी ने मेरे बालों में; अन्यथा मेरे बाल कास की तरह ही हैं। सफेद और चमकदार।
इस साल कास जल्दी ही फूला है। सामान्यत: कुआर में फूलता है। अभी तो भादौं का पूर्वार्ध ही है और अब तरफ कस के फूल गया है कास!

कास के नाम से तुलसी बाबा ही याद आते हैं – फूले कास सकल मही छाई, जनु बरसा कृत प्रकट बुढ़ाई। बरसा (वर्षा) की बुढ़ाई आ गयी। शरद आवई वाली बा, हो! उमस पटाये। तब सइकिलिया खूब चले। (शरद ऋतुआने वाली है। उमस खत्म होगी और साइकिल खूब चलेगी, जीडी!)
स्कूल खुल गये हैं

गो कोरोना गो। स्कूल खुल गये है। सरकारी स्कूल में प्रार्थना गायी जा रही थी। पहले ॐ भूर्भुव: का गायत्री मंत्र का तीन बार उच्चारण और उसके बाद “वह शक्ति हमें दो दयानिधे” वाला गायन। जूनियर हाई स्कूल की इमारत नीलाम हो गयी है। उसमें नया स्कूल बनेगा। चार दीवारी के और कुछ कमरों की ईंटे ले गये हैं बोली लगाने वाले। बाकी हिस्से में स्कूल लगना शुरू हो गया है। मास्टरानी जी और कुछ बच्चे मास्क पहने हैं। बाकी ऐसे ही हैं।

गायत्रीमंत्र और वह शक्ति हमें दो दयानिधे वाला गायन योगी आदित्यनाथ के अजेण्डे के हिसाब से तो परफेक्ट प्रार्थना है, पर घोसियाँ और इटवा की मुस्लिम बहुल इलाके के स्कूलों में भी यही प्रार्थना होती होगी तो बहुत कुड़बुड़ाते होंगे मुसलमान। पता नहीं सरकारी स्कूलों में बच्चे भेजते भी होगे या नहीं। शायद उसकी बजाय मदरसा भेजते हों या बच्चों को प्रार्थना के समय मौन रहने की हिदायत देते हों माँ-बाप। पता नहीं वहाँ क्या होता है!
आज इतना ही। खांची भर चित्र और लिये हैं। पर नाश्ते का टाइम हो गया है। लिखने को विराम दे कर उठा जाये। #आजसवेरे का लेखन सम्पन्न हुआ।
प्रेमसागर जी से सीख लिया है – हर हर महादेव का अभिवादन। सो आपका दिन शुभ हो।
हर हर महादेव! जय हो!
एक पूर्वाह्म के अर्ध में कितना कुछ भरा हुआ। हमारा तो चाय पीने में ही निकल जाता है.
LikeLiked by 1 person
😊
LikeLike
जब मै गाव मे होता हु तो ठीक इसी तरह से दांत माँजना और स्नान ध्यान करता हु/ मेरा अपना कोई गाव नहीं है इसलिए मित्रों और रिश्तेदारों के गाव देहात मे अक्सर जाता रहता हू, नर्सिंग और फारमेसी कालेज भी एक गाव मे ही है/ / तुलनात्मक तौर से कहू तो देहात का जीवन बहुत सुकून और प्रकृति के आति नजदीक लगता है/ और सच तो यह है की अब सभी गाव मुझे शहरों के छोटे या मँझोले स्वरूप दिखते है/ नीबू मिर्च बेचने वाले चाहे आपके गाव के हो या कानपुर के सब एक जैसे ही दिखते है, कोई बदलाव नहीं/
LikeLiked by 1 person
आप सही कह रहे हैं. प्रकृति में भारतीय शहर, मेट्रो छोड़ कर दूसरे और तीसरे दर्जे के शहर गांव की बहुत सी आदतों से युक्त होते हैं…
LikeLike
कुछ वर्ष पूर्व फ्रांस में सेवा-निवृत्ति की आयु बढ़ाए जाने के विरोध में हो रहे आंदोलन के बारे में सुना था। थोड़ा अटपटा लगा था क्योंकि भारत में तो केवल सेवा निवृत्ति की आयु बढ़ाने के लिए होने वाले आंदोलनों के बारे में ही सुनते आए हैं। 🙂
LikeLiked by 1 person
वहां लोग जल्दी रिटायर हो कर जीवन का आनंद लेना चाहते हैं! 😊
LikeLike