अपने चलने के अनुशासन के बारे में प्रेमसागर बताते हैं कि घूमने की आदत उनकी पुरानी है, पर घूमना बढ़ा दिल की बीमारी से उबरने के बाद। मुझे कहते हैं – “मेन बात ये हुआ भईया कि उसके बाद भगवान पर मेरा विश्वास काफी बढ़ गया।”
प्रेम सागर सोलह साल के थे, जब उनकी माता मरणासन्न थीं। उनके पिता जी ने उनके बचने की आशा छोड़ कर उनके लिये लकड़ी आदि का इंतजाम कर लिया था। पड़ोस की एक महिला के कहने पर माँ के बचने के लिये उन्होने द्वादश-ज्योतिर्लिंग की कांवर अर्पण का संकल्प लिया। अपनी माँ के लिये उन्होने अपनी उम्र सोलह की बजाय अठारह बताते हुये अपना रक्त भी दिया। मां बच गयीं। और उसके बाद 28-29 साल और जी कर गयीं।
प्रेम सागर बताते हैं कि सोलह वर्ष की अवस्था में उन्हें द्वादश ज्योतिर्लिंग पदयात्रा के संकल्प की विराटता का आभास नहीं था। यह भी नहीं लगता था कि वैसा कुछ वे कर पायेंगे भी। समय बीतता गया; संकल्प शेष रहा। “अनजाने में लिये संकल्प के प्रति जिज्ञासा बढ़ती गयी।”
प्रेम सागर द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा के बारे में योजना तो आज से आठ नौ साल पहले बनाना शुरू कर दिये थे। उस समय उन्होने सोच लिया था कि बेटी की शादी हो जाये और बच्चे अपने पैरों पर खड़े हो जायें, तब वे यह यात्रा करने में देर नहीं करेंगे।
पर सब कुछ उनकी योजना के अनुसार नहीं हुआ। छ साल पहले उनका हृदय रोग उभरा। उनके ब्लॉकेज देखते हुये, संजय गांधी पी.जी.आई. में बाईपास सर्जरी ही एक मात्र निदान बताया गया। खर्चा करीब 5-6 लाख का अंदाज बैठा। प्रेम सागर के सामने अपनी बिटिया के विवाह की प्राथमिकता थी। उनके अनुसार अगर छ लाख इलाज पर खर्च हो जाता तो बिटिया का विवाह न हो पाता। उनका सौभाग्य था – और एक चमत्कार कि उन्हें लखनऊ के अस्पताल में कार्डियॉलॉजी के डाक्टर साहब मिल गये। उनकी कृपा से उनके सारे टेस्ट बिना पैसा खर्च किये हो गये। डाक्टर साहब ने उन्हें दवा भी मुफ्त में दी और जीवन का अनुशासन बताया। अंकुरित अन्न खाने को कहा और धीरे धीरे अपना पैदल चलना बढ़ाने को बोला। वह अनुशासन प्रेमसागर ने बड़ी कड़ाई से पालन किया। छ सात महीने बाद हुई जांच में पता चला कि उनका ब्लॉकेज मामूली बचा है। उसके बाद तीन महीने और बीते। फिर टेस्ट कराने पर डाक्टर साहब ने कहा कि जो 5-10 पर्सेण्ट ब्लॉकेज बचा है वह तो कोई खास बात नहीं है। वे अपनी सामान्य जिंदगी जी सकते हैं। बीमार होते समय तुरंत बाईपास सर्जरी का मामला था और प्रेमसागर छ मीटर भी चल नहीं पाते थे; पर इस अलग प्रकार से हुये इलाज से एक चमत्कार ही हुआ। प्रेमसागर ठीक हो गये। उससे उनका पैदल चलने का अनुशासन बन गया। वह समय के साथ प्रबलतर होता गया।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
वे उन डाक्टर साहब से उसके बाद मिलने का प्रयास किये। लखनऊ के अस्पताल में तीन बार गये पर वे डाक्टर साहब – ओम प्रकाश पाण्डेय जी – मिले ही नहीं। अस्पताल वालों से पता चला कि वे बाहर से विजटिंग डाक्टर के तौर पर आते थे पर फिर वे कहां गये, उनका पता कोई नहीं बता पाया। … प्रेम सागर के लिये वे शंकर जी की कृपा उनपर बरसाने आये और उसके बाद उनका पता नहीं चला!
अपने चलने के अनुशासन के बारे में प्रेमसागर बताते हैं कि घूमने की आदत उनकी पुरानी है, पर घूमना बढ़ा दिल की बीमारी से उबरने के बाद। मुझे कहते हैं – “मेन बात ये हुआ भईया कि उसके बाद भगवान पर मेरा विश्वास काफी बढ़ गया।”

उनकी बिटिया की शादी में बहुत अड़चनें आ रही थीं। परिवार के लोगों का भी सहयोग नहीं मिल रहा था। तब उन्होने संकल्प लिया 101 बार बैजनाथधाम में जल चढ़ाने का। वे सप्ताह के काम के दिन जमशेदपुर में नौकरी करते। फिर शनिवार को ट्रेन पकड़ कर सुल्तानगंज जा कर रविवार की सुबह गंगाजल लेते और पैदल देवघर आ कर सोमवार को 12-1 बजे तक बैजनाथ जी को जल अर्पित करते। यह एक सौ एक बार किया। उसके बाद “सलामी” भी किया दो बार दण्ड भी किया। दण्ड में कांवर रास्ता लेट लेट कर तय किया जाता है। वह और भी कठिन कार्य है। वहां सुल्तानगंज से देवघर का रास्ता 105 किलोमीटर का है। एक दिन में तय करते थे। “पर मेन बात है कि रास्ता कच्चा है इसलिये चलने में दिक्कत नहीं होता था। पैदल चलने के लिये रास्ता जितना कच्चा हो, उतना बेहतर है।”

प्रेम सागर बताते हैं कि जब यह 101 कांवर संकल्प लिया और देवघर के बैजनाथधाम में जल चढ़ाना प्रारम्भ किया तो आशातीत दैवीय परिवर्तन हुआ। बिटिया की शादी सहजता से हो गयी। संकल्प की कसौटी पर खरे उतरे प्रेम सागर!
उनकी माता, जो उनकी सोलह वर्ष की अवस्था में ही जाने वाली थीं; लम्बा जी कर आज से तीन साल पहले देह छोड़ी। उनका क्रियाकर्म भी उन्होने और अन्य दो भाइयों के सहयोग से सम्पन्न हुआ। बड़ा बेटा 21 साल का है और छोटा अठारह का। दोनो काम में लग गये हैं। बड़ा बेटा कहता है कि अभी तीन चार साल काम करने के बाद विवाह की सोचेगा। छोटे की शादी तो उसके बाद होनी है। अब सैंतालीस साल के हैं प्रेम सागर। उन्हें लगा कि यही उचित समय है सोलह वर्ष की उम्र में लिये संकल्प के लिये निकल लेने का। इसके बाद तो दम खम उतार पर होगा। तब के लिये उस संकल्प को स्थगित करना सही नहीं होगा।

और इस कारण से निकल लिये हैं प्रेम सागर! चलते चले जा रहे हैंं। मैं प्रेम सागार जी से कुछ सवाल पूछता हूं।
“आपको यकीन है कि यह द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा पूरी कर लेंगे?”
“हण्ड्रेड टेन परसेण्ट यकीन है भईया। यकीन अपने पर नहीं, महादेव पर है। अपना क्या कहा जा सकता है? अगले क्षण सांस खत्म हो जाये। मेरा क्या गारण्टी है भईया, गारण्टी तो उनका है!”
“आप चले जा रहे हैं, पर कभी यह विचार नहीं आता कि इसमें असफल भी हो सकते हैं?” – मैं यकीन वाले सवाल को दूसरे तरह से पूछता हूं।
“असफलता का भय तो कभी भी मन में नहीं आया। नेगेटिविटी अगर मन में आयी तो समझो आदमी गया। तब वह चल ही नहीं पायेगा।” – प्रेम सागर वाजिब कारण बताते हैं अपने सफल होने के अटूट विश्वास का।
“अकेले चल रहे हैं। यह नहीं लगता कि एक ग्रुप होता, लोग साथ होते आपस में सहायता के लिये?” – मैं पूछता हूं।
“एक बात बतायें भईया कि काहे अकेले चलते हैं। साथ में कोई हो तो बातचीत में कभी दूसरे पर क्रोध या ईर्ष्या उठेगा ही। एक बार ईर्ष्या, क्रोध, गुस्सा आया तो सारी तपस्या मिट्टी में मिला देगा। अकेले चल कर अपने को उससे बचाता हूं मैं।”
महादेव पर अटूट श्रद्धा, संकल्प की कसौटी पर खुद को कसने का आत्मानुशासन और चमत्कारों पर यकीन – इसी के सहारे प्रेमसागर चलते चले जा रहे हैं। चरैवेति! चरैवेति!!!

15 सितम्बर 2021:
शहडोल में तेज बारिश हो रही है। इसलिये आज प्रेमसागर आगे अनूपपुर-अमरकण्टक के लिये प्रस्थान नहीं कर सके। बोल रहे थे कि आज एक रेनकोट खरीदने की सोच रहे हैं।
आगे की पोस्टों की सूचना के लिये कृपया ई-मेल से सब्स्क्राइब करें –
नीतू आर पाण्डेय @nitya_kashi जी की टिप्पणी –
महादेव की महिमा ।।
महादेव ही जाने ।।
हर हर महादेव। ।
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निशांक अग्रवाल @NishankAgrawal जी की टिप्पणी –
आस्था चाहे भगवान में हो या किसी और में, एक बार अगर ये मन में बैठ गई तो ऐसा लगता है सभी काम इसी वजह से बिना मुश्किल से हो रहे हैं। इसका एक दूसरा पहलू भी है कि अगर आपने आस्था के अनुरूप काम नही किया तो नकारात्मक परिणाम दिखते हैं। बहुत जटिल मनोविज्ञान है ये।
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बदनाम शायर @BadnamShayar1 जी की टिप्पणी –
1. सतपुड़ा के घने जंगल कविता को पढ़ते हुवे कहीं से भी नहीं लगता कि जंगल से डरना चाहिए जा जंगल डरावने या हिंसा के पर्याय हो सकते हैं पाश्चात्य विचारधारा के अनुसार जबकि भारतीय संस्कृति मे जंगल को वन कहने का तात्पर्य ही यही था कि वन शांत प्रदेश हैं तप,वैराग्य और विचार के क्षेत्र हैं ।
2. I wish he could have been a better writer and had knack of expressing himself; not merely being a pilgrim. पर आप प्रेमसागर नहीं हो सकते और प्रेमसागर आप नहीं हो सकते!
🙂
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संकल्प ही तो कुछ करा पाते है, हम तो सुविधामय विकल्प ढूढ़कर निकल लेते हैं। आपका डिजिटल सहयात्रा वृत्तान्त पढ़ अपने सपने याद आ रहे हैं कि क्या क्या सोचा था और क्यों उनको टाला गया?
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ईश्वर ने हमें सुविधा दी, साधन दिये, बुद्धि दी पर संकल्प हमसे छीन लिये! 🙂
सभी कुछ ईश्वर नहीं देते, खुद को भी साधना होता है। अभी भी बहुत सा जीवन बाकी है साधने को!
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एक बार ईर्ष्या, क्रोध, गुस्सा आया तो सारी तपस्या मिट्टी में मिला देगा
पुराने जमाने में ऋषि मुनि और योगी (शायद जगतगुरु शंकाराचार्य भी) ने पहले इंद्रियों पर विजयी प्राप्त की होगी, उसके बाद अपने शिष्यों के साथ यात्राएं की होंंगी…
अगर कभी मैं निकला तो मुझे भी अकेले ही निकलना पड़ेगा, क्योंकि दुर्बलताएं समय के साथ बढ़ ही रही हैं, कम नहीं हो रही…
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चलिए, प्रेम सागर जी के कहे में आपने अपने काम की बात निकाल ही ली!
मेरे घर में तो प्रेम सागर जी के व्यक्तित्व को लेकर मेरी और पत्नी जी के बीच खूब चर्चा होती है. अधिकांश बार वे यही कहती हैं कि मैं उस व्यक्ति को समझता ही नहीं. 😁
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जैसे जैसे यात्रा बढती जा रही है वैसे वैसे उत्कंठा बढती जा रही है , अभी २० दिन पहले हम कुछ मित्र मोटरसाइकिल से अमरकंटक यात्रा की चर्चा कर रहे थे पर कुछ न कुछ अडचनों के कारण यात्रा टल रही है पर अब लगता है जल्द ही हमारी भी यात्रा होगी उसमे उत्प्रेरक के कारण आप ही होंगे
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जय हो!
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