21 सितम्बर 2021:
आज शाम को अमरकण्टक पंहुच जायेंगे प्रेमसागर जी। वहां उन्हें सोन-जोहिला-नर्मदा का उद्गम मिलेगा। वहां वे कांवर भी खरीदेंगे। बहुत कुछ लिखने को मिलेगा अमरकण्टक और उसके आसपास के बारे में। अभी तक की यात्रा रोचक रही है, मेरे डिजिटल ट्रेवल के लिये। आगे और भी रोचक होगी; तय है!
कल प्रेमसागर रुके राजेंद्रग्राम में। बाणसागर के डिप्टी रेंजर तिवारी जी के घर पर अतिथि थे। मैंने पूछा नहीं, पर उनके आग्रह से उनके घर पर थे तो सत्कार भरपूर हुआ ही होगा। इतना कि कल दिन भर न उन्होने बात की और न दिन का कोई चित्र प्रेषित किया। शाम को उनका कोई फोन भी नहीं था। निश्चय ही आनंद से रहे होंगे वहा। उनके परिवार का कोई चित्र नहीं भेजा अन्यथा पता चलता कि वे लोग कैसे लगते हैं। कल सवेरे आसपास घूम कर जोहिला नदी और कुछ मंदिरों के चित्र अवश्य भेजे हैं। नदी ठीकठाक जल वाली लगती हैं। शायद वर्षा का मौसम है, इसलिये जल होगा; वर्ना नदियां सभ्यता की विकृति को झेलते हुये कृषकाय होती गयी हैं उत्तरोत्तर।

कल शैलेश पण्डित की टिप्पणी थी जोहिला-सोन-नर्मदा की कथा के बारे में। वही बात लगभग प्रेमसागर जी ने भी अपने मैसेज में लिखी है। शैलेश पण्डित का एक ब्लॉग है DZIRENDISCOVER जो रेगुलर अपडेट नहीं होता। उसमें नर्मदा की दशा दुर्दशा पर एक पोस्ट है। उन्होने लिखा है –
“हमने नदियों को माता तो माना लेकिन कभी उसका रख रखाव उस तरह से नहीं किया। औद्योगिक कचरा, आवासीय और धार्मिक गन्दगी हमने जी खोल कर नदियों में बहाई। जिन देशों में नदी को केवल नदी माना उन नदियों की स्थिति हमारी गंगा, यमुना, नर्मदा से लाख गुना अच्छी है।”
शैलेश जी अगर अपना फोन नम्बर दे सकें तो उनसे नर्मदा के बारे में जरूरी इनपुट्स मिल सकेंगे और आगे प्रेमसागर के यात्रा विवरण का कण्टेण्ट बेहतर हो सकेगा। शैलेश जी आशा है यह पढेंगे।
प्रेमसागर जी आज सवेरे निकल लिये अमरकण्टक के लिये। जल्दी निकलते हैं तो अगले घण्टा-डेढ़ घण्टा चलने पर कोई चाय की दुकान मिलती है तो वहां चाय पीते हैं। उनसे जब भी सवेरे बात होती है तो वे चाय की दुकान के आसपास या चाय की दुकान पर ही होते हैं। आज भी वे चाय की दुकान पर थे। बताया कि रास्ता अच्छा है। नीचाई है – पचहत्तर परसेण्ट ढलान और पचीस परसेण्ट चढ़ाई। एक दो चित्र भी भेजे हैं उन्होने आज की अब तक की यात्रा के।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
एक चित्र उन्होने बलभद्र चौबे जी का भेजा है। बलभद्र जी उनको परसों अवरुद्ध घाटी से मैकल पर्वत चढ़ाते और आगे राजेंद्रग्राम तक साथ एस्कोर्ट किये थे। द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा के एक महत्वपूर्ण अंश में वे सहायक बने। उनका सहयोग रामचंद्र जी की रामेश्वरम सेतु वाली गिलहरी जैसा नहीं, नल-नील जैसा माना जाना चाहिये। उनके रहने से ही प्रेमसागर वह दुर्गम रास्ता पार कर पाये।

प्रेम जी ने बताया कि प्रवीण दुबे जी उनकी खैर खबर लेते रहते हैं। कल उनका फोन आया था। प्रवीण जी ने कहा कि अमरकण्टक में दो तीन दिन प्रेम सागर जी को गुजारना चाहिये। वहां की व्यवस्था के लिये उन्होने लोगों को सहेज दिया है। प्रवीण जी प्रेमसागर की आगे मध्य प्रदेश की ॐकारेश्वर – उज्जैन की यात्रा भी सकुशल करा देंगे, ऐसा मेरा यकीन है!
प्रवीण जी प्रेमसागर के लिये भगवान शिव के प्रतिनिधि हैं। वे मुझे भी यात्रा के लिये उकसाते रहते हैं और मैं अपने ऑस्टियोअर्थराइटिस ग्रस्त पैरों का बहाना देता रहता हूं! … प्रवीण दुबे जी की जय हो!
आज शाम को अमरकण्टक पंहुच जायेंगे प्रेमसागर जी। वहां उन्हें सोन-जोहिला-नर्मदा का उद्गम मिलेगा। वहां वे कांवर भी खरीदेंगे। बहुत कुछ लिखने को मिलेगा अमरकण्टक और उसके आसपास के बारे में। अभी तक की यात्रा रोचक रही है, मेरे डिजिटल ट्रेवल के लिये। आगे और भी रोचक होगी; तय है!
हर हर महादेव!

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शानदार यात्रा विवरण। पैदल न निकलें लेकिन साइकिल से यात्रा करने की सोचिए। आपकी नाव यात्रा का भी एक संकल्प पूरा होना है। 😊
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हमारे संकल्प तो हमारी तरह हैं, ख्याली और खाली. शुक्र है कि आपने यह नहीं कहा कि एक संकल्प किताब ठेलने का भी है. 😁
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किताब ठेलने का संकल्प तो पूरा होना ही है। इसलिए उसकी याद नहीं दिलाई। 😊
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जय हो!
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संभवतः अब तो प्रेमसागर जी को अमरकंटक से ओंकारेश्वर तक के लिए कई साथी मिल जायेंगे नर्मदा परिकर्मा वाले | हर हर महादेव
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अमरकंटक पंहुच कर उनका उत्साह सुना आज. वह संक्रामक है! 😁
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मुझे पक्का नहीं पता कि वे नर्मदा परिकम्मा वाला मार्ग चुनेंगे या कोई और पर जाना उन्हें यहां से ॐकारेश्वर और फिर उज्जैन है। आगे की यात्रा भी उन्होने बुन ली है! 🙂
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सोशल मीडिया छोड़ने के बाद फिर से ब्लॉग पढ़ने लगा हूँ, और आपके ब्लॉग पर तो मानो प्रेमसागर जी के साथ एक यात्रा ही शुरू हो गयी है।
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जय हो, जय हो! 🙏
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१२ अध्याय होंगे आपकी डिजिटल सहयात्रा के। प्रथम के सारथी तो दुबेजी रहेंगे। द्वितीय सारथी की खोज प्रारम्भ हो।
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दुबे जी ओंकारेश्वर और महाकाल निपटा देंगे. बाबा विश्वनाथ तो हो ही चुके हैं…
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जी सर। नंबर लिखने में गलती हो गई। 9********8, 9*&*&*&*&8
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धन्यवाद!
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और सर, आप को ये लिखने की आवश्यकता भी नहीं है कि आशा है पढ़ेंगे। आपके इस यात्रा वृतांत को नियमित पढ़ते रहने के लिए ही पुनः ये एप्प इंस्टॉल की है और नोटिफिकेशन भी ऑन रखा है। ताकि किसी भी पोस्ट का अपडेट तुरन्त मिले।🙏🏻
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जय हो! 🙂
मैंने नम्बर नोट करने के बाद हटा दिया है आपकी ब्लॉग टिप्पणी में।
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बहुत बहुत धन्यवाद सर🙏🏻
ब्लॉग लिखना तो शुरू किया था लेकिन एक दो पोस्ट के बाद कतिपय कारणों से लिखना जारी न रख सका।
मोबाइल नंबर 966969568 हैं।
वैसे तो मध्यप्रदेश का रहने वाला हूँ लेकिन पिछले चार साल से गुरुग्राम निवास हैं। अनूपपुर क्षेत्र में नौकरी कर चुका हूं। घर अभी भी बड़वाह में है जो कि ओम्कारेश्वर से 15 किमी पहले है। प्रेमसागर जी की यात्रा में उल्लेख अवश्य आएगा जब वे ओम्कारेश्वर पहुँचने वाले होंगे। दुःख इस बात का हैं कि शायद उस समय हम उनकी सेवा के लिए वहाँ उपस्थित न हो।🙏🏻
हालांकि अब जो उनका यात्रा मार्ग रहेगा उससे सम्बंधित अतिरिक्त जानकारी सामर्थ्यानुसार उपलब्ध करवा सकते हैं। आशा है कि इस यात्रा में वास्तविक ना सही पर ब्लॉग यात्रा में योगदान दे सकें।
🙏🏻
शैलेंद्र पंडित
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जय हो! बड़वाह तो मेरे क्षेत्र में आता था। मैं रतलाम में 17 साल रेल परिचालन के विभिन्न पदों पर रहा। बड़वाह, ॐकारेश्वर और खण्डवा-महू-इंदौर-उज्जैन आदि स्टेशन मेरे अधिकार क्षेत्र में थे।
आपका नम्बर डायल करने पर कहता है कि नम्बर अमान्य है। शायद देने में कुछ त्रुटि हो गयी हो।
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