22 सितम्बर 2021:
अमृतलाल वेगड़ उन्हें सौंदर्य की नदी, अमृतदायिनी नदी कहते हैं। सर्पिल, बल खाती, उछलती कूदती क्षिप्र गति से आगे बढ़ती नर्मदा मंत्रमुग्ध करती हैं। मेरे जैसे अ-कवि हृदय को भी इतना आकर्षित करती हैं कि मैं यहां अपने लैपटॉप के की-बोर्ड से जूझते हुये भी नर्मदा तट पर जाने की प्रबल इच्छा रखता हूं।
इधर प्रेम सागर अमरकण्टक की ओर बढ़ रहे थे, उधर मुझे अमरकण्टक से बहने वाली नदियों की भांति भांति की कथायें सुनने को मिल रही थीं। आज और अगले दो दिनों में प्रेमसागर नर्मदा और सोन आदि के उद्गम स्थलों को देख चित्र आदि भेजेंगे। नर्मदा की उत्पति और सोन से उनके सम्बंधों की बात उठेगी। उन कथाओं की बात होगी जो मैंने सुनी हैं, पर जिनपर कोई मत नहीं बनाया है।
सोन नदी नहीं नद है। नर्मदा चिरकुमारी हैं। उनकी शादी होने वाली थी सोन से, जो हुई नहीं। सोन जोहिला (नर्मदा की सखी/दासी/नाउन) के साथ वैवाहेत्तर सम्बंध बनाना चाह रहा था या बना चुका था। ये सब कथानक तत्कालीन समाज, उसके उन्मुक्त भाव या पितृसत्तात्मक स्वरूप आदि पर दृष्टि डालते है। नदियाँ, पर्वत, ताल, झील, समुद्र, सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्र आदि प्राकृतिक संरचनायें हैं। भिन्न भिन्न समाज उन्हें समझने के लिये उन्हें मानवीय या अतिमानवीय गुण प्रदान करते हैं और उनकी प्रकृति अपनी कथाओं के आधार पर समझने समझाने का प्रयत्न करते हैं। वही गंगा-यमुना-सरस्वती-सिंधु के साथ हुआ है और वही नर्मदा, सोन और जोहिला के साथ भी।
जो कथा (कथायें) मुझे बताई गयीं नर्मदा के बारे में, वे निश्चय ही वैदिक या पौराणिक आधार रखती हैं। पर शहडोल-अमरकण्टक और छतीसगढ़ के जुड़े इलाके में गोंड जनजाति रहती आयी है। शैलेश पण्डित से मैं पूछता हूं कि पुष्पराजघाट (राजेंद्रग्राम) से अमरकण्टक के बीच कौन रहते हैं तो उनका कहना है कि सकरा घाटी और उसके बाद के विंध्य के (?) पठारी भू भाग में दूर दूर बसे गोंड गिरिजनों के गांव (उनकी भाषा में ‘टोला’) हैं। आज से नहीं; आदि काल से यही गिरिजन वहां हैं। मनु, मार्कण्डेय, अत्रि या अगस्त्य और आज के तिवारी, पांड़े, ठाकुर, वैश्य आदि तो बाद में आये होंगे (मेरा कयास)। गोंड क्या लोककथा रखते हैं नर्मदा के बारे में? उनकी कथायें वही या उसी जैसी हैं जो मनु, मार्कण्डेय की पौराणिक कथायें हैं या उनसे कुछ अलग? नर्मदा के क्षेत्र में वे तो पहले (आदि) मानव रहे होंगे।
मुझे इण्टरनेट पर मोऊमिता डे (Moumita Dey) जी का एक रिसर्च पेपर मिला। इस सात पेज के वर्ड डॉक्यूमेण्ट में भिन्न भिन्न समाजों में नर्मदा के विषय में प्रचलित कथाओं का विश्लेषण है। यह रिसर्च पेपर आपको किसी निष्कर्ष पर नहीं पंहुचाता। वह शायद उसका ध्येय भी नहीं है।
वह रिसर्च पेपर केवल यह बताता है कि प्रत्येक समाज ने प्रकृति की देन – नदियों – को अपनी अपनी मान्यताओं के अनुसार गुण प्रदान किये हैं। पितृसत्तात्मक समाज में नारी (नर्मदा) किस प्रकार अपने को अभूतपूर्व बनाने के लिये संघर्ष करती है और किस प्रकार वह सफल या असफल होती है, उसकी झांकी लोक मान्यताओं/कथाओं में है। सुश्री डे के रिसर्च पेपर में अगर कोई पक्षपात है तो वह फेमिनिस्ट पक्षपात ही होगा।
पितृसत्तात्मक समाज – चाहे वह मनु मार्कण्डेय के गोल वाला हो या गिरिजनों के गोल वाला, वह नारी (अर्थात नर्मदा) की महत्ता यूंही स्वीकार नहीं करता। पहले वह उसे लांछित या उपेक्षित करता है, पर अगर फिर भी नारी अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित कर देती है, जो नर्मदा के मामले में है; तो वह उसे देवी का दर्जा देकर पूजनीय बना देता है।

पेपर के अनुसार गोंड समाज में मान्यता है कि –
- नर्मदा माँ देवी थीं और उनके सोन के साथ (संसर्ग से) एक बच्चा हुआ था।
- नर्मदा के रूप रंग आकार प्रकार के बारे में गोंण लोक गाथा कुछ नहीं कहती।
- जब नर्मदा ‘सिंगल मदर’ थीं (बिना बच्चे के पिता का नाम बताये) अपने बच्चे के लिये और वे जीवनदायिनी हैं। यह उनकी प्रकृति बताई गयी है। अर्थात अपने बच्चे का खुद पालन देखभाल करने वाली।
- जिस कथा में वे यह बताती हैं कि उनका शिशु सोन के संसर्ग से है, वहां उन्हें आत्महत्या करनी पड़ती है।
- गोंड गिरिजनों के मातृकुलीय समाज में स्त्री अपने बच्चे का लालन पालन कर सकती है, बिना अपने बच्चे के पिता या अपने पति का नाम बताये। पर अगर पिता कुल के बाहर का होता है तो नारी उपेक्षित और निंदनीय हो जाती है।
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
गोंड सोन को अपने कुल का मानते हैं। नर्मदा का अपने कुल के व्यक्ति से सम्बंध हो तो वह ‘स्वीकार्य है’ भले ही मातृकुलीय परम्परा पिता के जनक का नाम न घोषित करे। पर एक अन्य लोक कथा – सोन-मुदा की लोक कथा – में सोन गोंड समाज से इतर है और तब नर्मदा को अपनी दिव्यता के बावजूद आत्महत्या करनी पड़ती है।… कुल मिला कर नर्मदा के चरित्र की परिकल्पना बहुत कुछ इसपर निर्भर करती है कि कौन समाज वह परिकल्पना कर रहा है।
नर्मदा गिरिजनों की भी नदी हैं और आर्यजनों की भी। इसलिये उनकी कथाओं और उनको दिये गये attributes में अंतर है। आर्यजनों की नर्मदा चिरकुमारी हैं। गंगा जितनी पवित्र हैं। पितृसत्तात्मक समाज में भी अपनी श्रेष्ठता प्रमाणित करने के कारण; एक बड़े विंध्येत्तर भू भाग की जीवनदायिनी पुण्यसलिला नदी होने के कारण; वे उतनी ही पूज्य हैं; वैसी ही पापनाशिनी हैं, जैसी माँ गंगा।
अमृतलाल वेगड़ उन्हें सौंदर्य की नदी, अमृतदायिनी नदी कहते हैं। सर्पिल, बल खाती, उछलती कूदती क्षिप्र गति से आगे बढ़ती नर्मदा मंत्रमुग्ध करती हैं। मेरे जैसे अ-कवि हृदय को भी इतना आकर्षित करती हैं कि मैं यहां अपने लैपटॉप के की-बोर्ड से जूझते हुये भी नर्मदा तट पर जाने की प्रबल इच्छा रखता हूं।… और इसके अलावा सोन (शोणभद्र नद) को भी आदर मिलना चाहिये। यह कहना कि वह एक नाउन या दासी के साथ सम्बंध बना रहा था; धिक्कृत लोक मानसिकता है। जोहिला भी एक अच्छी बलखाती ट्रिब्यूटरी नदी है। उसका भी मान होता चाहिये। … नदी, कोई भी हो, प्रकृति का वरदान है। मानव उसकी इज्जत करेगा तो प्रकृति मानव की इज्जत करेगी। अन्यथा भारत की अनेक नदियाँ माता का दर्जा पाने पर भी आई.सी.यू. में हैं। मरणासन्न! 😦
यह सब पढने-जानने के बाद में मनु-मार्कण्डेय-पुराण-नर्मदा उद्गम- सोन मुदा और गिरिजनों की लोक कथाओं के जाल को विराम देते हुये; मैं केवल नर्मदा के सुंदर, चंचल और जीवनदायी स्वरूप के प्रति ही सोचूंगा। सोन/शोणभद्र, जोहिला और नर्मदा के सम्बंधों की बात को विराम देता हूं।
और इससे जुडी बात – ईश्वर की, देवों की रचना मनुष्य ने की है; या प्रकृति को, मनुष्य को ईश्वर ने रचा है; उसके पचड़े में पड़ने का भी कोई लाभ नहीं है। जो सामने है, वह सत्य है, सुंदर है, शिव है। वही सोचो और वही लिखो जीडी!
हर हर महादेव!
(इस पोस्ट का ऊपर का चित्र शैलेश पंडित का हैं। हेडर में प्रेमसागर नर्मदा मंदिर में हैं।)
23 सितम्बर 2021 सवेरे:
कल प्रेमसागर नर्मदा मंदिर गये थे। उसके अनेक चित्र उन्होने भेजे हैं। मैंने उन्हें कहा है कि मुझे चित्रों की आवश्यकता जितनी है उससे दस गुना चित्र भेजे हैं। उनमें से कुछ का प्रयोग मैं आगे एक दो दिन में करूंगा।
एक अच्छी बात उन्होने बताई कि वन विभाग एक आसवन शाला चलाता है संजीवनी नामके स्थल पर। वहां अश्वगंधा, नीम का तेल आदि अनेक दवायें वे निर्मित करते हैं। उनकी बिक्री भी होती है। वहां आई ड्रॉप का आसवन चल रहा था। एक कर्मी, साधना मार्को जी वहां लैब में काम कर रही थीं। प्रेमसागर ने भी वहां आई-ड्रॉप लिया।

आज प्रेम सागर जी ने बताया कि प्रयाग-बनारस के बीच चलने वाले दो कांवरिया बंधु कल अमरकण्टक पंहुच रहे हैं। वे भी प्रेम जी के साथ अमरकण्टक से कांवर उठा कर साथ चलेंगे और उनके साथ ॐकारेश्वर-महाकाल तक साथ रहेंगे। … कारवाँ बढ़ेगा, जैसी टिप्पणी में कयास व्यक्त किया था कृष्ण देव जी ने! 🙂
प्रेम सागार जी की गतिविधि के बारे में कल लिखा जायेगा। आज तो आप मेरी उक्त ‘मानसिक हलचल’ से ही अवगत हों! 🙂
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कुछ दिन पूर्व माँ नर्मदा पर एक गुजराती फिल्म देखी थी रेवा के नाम से। नर्मदा का महत्व उद्गम से सागर मिलन तक अद्भुत है.
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कृष्ण देव जी की फेसबुक पर टिप्पणी –
जब प्रेमसागर जी यहाँ बनारस से चले थे तब से मुझे अमरकंटक पहुँचने का इंतजार था आज उनके पहुँचने पर लगा मैं ही पहुँच गया सकुशल , नर्मदे हर ! नर्मदे हर !
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अनुराग शर्मा @HindiHainHam जी की ट्विटर पर टिप्पणियाँ –
जनजाति का नाम गोंड है, गोण नहीं।
प्रेमसागर जैसे पथिकों को रास्ता दिखाने के कारण ही माँ नर्मदा को मार्गदा कहा गया है। वे पथिकों को प्रिय हैं इसलिए उन्हें पथिप्रिया कहा गया।
माना जाता है कि वे चंद्रमा से उत्पन्न हुईं इसलिए उन्हें इंदुजा या सोमोद्भवा कहा जाता है।
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वे तीव्र वेग से बहती हैं इसलिए रेवा और रभसोगमा कही गईं। उनकी लहरें नाचते हुए बहती हैं इसलिए लास्या हैं। उनका पानी बहुत मीठा है इसलिए वे रुच्यनीरा हैं। महादेव को प्रिय हैं इसलिए शिवप्रिया और भक्तों को सब कुछ देने वाली हैं इसलिए सर्वदा हैं।
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वे विद्वान हैं इसलिए वेदिनी और शिष्टा कही गईं। तप के कारण उन्हें तपस्विनी कहा गया।
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आर्य ग्रंथ महाभारत के अनुसार माँ नर्मदा का विवाह माहिष्मती के राजा दुर्योधन (धृतराष्ट्र के बेटे नहीं) से हुआ था। उनकी एक बेटी सुदर्शना हुईं। यह दुर्योधन राजा दुर्जय का बेटा था। सुदर्शना का विवाह अग्निदेव से हुआ था।
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बदनाम शायर @BadnamShayar1 जी की ट्विटर पर टिप्पणियाँ –
मनु, मार्कण्डेय, अत्रि या अगस्त्य और आज के तिवारी, पांड़े, ठाकुर, वैश्य आदि तो बाद में आये होंगे (मेरा कयास)। – आपका लिखा — कहीं न कहीं से तर्क जागृत होते ही उसी बिन्दु पर जाता है कि आर्य भारत के नहीं है बाहर से आए। फिर तर्क विज्ञान आते ही धर्मच्युत होने का खतरा बना रहेगा ।
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वैसे तो धर्म को तर्क के साथ मिलाकर देखने से आस्था का लोप होने लगता है और आपके इस पोस्ट मे यह जान पड़ता है। जैसे ही तर्क जागृत होगा वह धर्म की व्यख्या उसी तरह से करेगा जिस तरह चाहता है जैसे मौमिता ने प्राचीन भारत मे स्त्री पक्ष सलेक्टिव उठाया है ताकि पितृसत्ता विचार दिखे ।
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नर्मदा उल्टी दिशा मे चल पड़ी थी आज भी उल्टी बह रही, उल्टी बहने को भी स्वीकार किया समाज ने वह पूजित हैं ।
मौमिता के पेपर मे बंगाली असर आना ही था, जो पहले से फ्रेम लेकर चलता है कि आर्य और द्रविड़ अलग हैं कि भारत मे आर्य बाहर से आए – यूरोपियन मेंटलिटी
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अगर जोहिला भी बस एक नदी है स्त्री है तो नर्मदा भी बस एक नदी है स्त्री है, आप जोहिला को नदी मानेंगे और नर्मदा को पूज्यनीय नदी इस विचार के लिए आपको “धर्म” का आधार लेना ही होगा । विज्ञान के लिए दोनों बस नदी हैं । धर्म की आलोचना विज्ञान का आधार लेकर ?? ऐसा ठीक नहीं लगता ।
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वैसे एक महत्वपूर्ण बात गोंड जनजाति आदमी है यह भी विदेशी विचार है , गोंडवाना लैंड नाम दिया आस्ट्रियन Eduard Suess ने हमारी धरती के प्लेट को, यही मानकर की गोंड ही इस देश के मूल निवासी है लेकिन क्यों ? इसका उत्तर नहीं था उनके पास ।
गोंड जाति जुरासिक एज मे भी थी यह भी उसका कहना था
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अच्छी व सुसंगत व्याख्या है आपकी, कि –
ईश्वर और देवों की मनुष्य की कल्पित रचना है या प्रकृति और मनुष्य को ईश्वर ने रचा है, इस झमेले में पड़ने से अच्छा है कि जो सामने है वो ही सत्य है, शिव, सुंदर है।
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जय हो! आशा है आप सकुशल और आनंद से होंगे! 🙏
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ऊंकारेश्वर में नर्मदा माई के दर्शन किए थे, किनारे घाट पर फुल कांफिडेंस में तेजी से उतर रहा था कि अचानक पैर फिसला और चार पांच सीढ़ी नीचे तक उतर गया, कहीं चोट नहीं आई, लेकिन हृदय में धक्का बैठ गया। बाद में जल के करीब पहुंचा तो पूरी तमीज से पहले प्रणाम आचमन किया, उसके बाद पैर डाले 🙂
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ओंकारेश्वर में सीढियों पर फिसलन है. मैं भी फिसलते बचा था. चेला लोग सम्भाल लिए थे. 😊
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‘गंगा कनखले पुण्या, कुरुक्षेत्रे सरस्वती,
ग्रामे वा यदि वारण्ये, पुण्या सर्वत्र नर्मदा।’
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नर्मदे हर! 🙏
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