9 अक्तूबर 21, शाम –
प्रेमसागर सवेरे दस बजे पंहुच गये थे गाडरवारा। रास्ते में शक्कर नदी के चित्र भेजे। नदी में जल कम है, रेत ज्यादा। उथली हैं नदी। इतनी उथली कि मेरे विचार से पैदल पार की जा सकती है। किसी चित्र में कोई डोंगी उसमें नहीं दिखी। नदी का पाट चौड़ा है। बारिश होने पर खूब जल होता होगा और बारिश के मौसम के बाद रेत की नदी होती होगी। पता नहीं सदानीरा रहती है या नहीं। पर नदी का स्वास्थ्य अच्छा नहीं लगता। शक्कर कभी मीठी रही होंगी, अब मिठास बची नहीं लगती।
गीली रेत में पक्षियों और जानवरों के चलने के निशान साफ देखे जा सकते हैं जबकि फोटो पुल से लिये होंगे प्रेमसागर ने। उनके चित्र समय के साथ बेहतरतर (उत्तरोत्तर बेहतर के लिये गढ़ा शब्द) होते चले जा रहे हैं।
गाडरवारा में शक्कर और सीतारेवा का संगम है। मैंने प्रेमसागर को कहा कि वे जा कर संगम देख आयें। रेस्ट हाउस से तो किलोमीटर भर दूर होगा। नक्शे में शक्कर का पाट चौड़ा लगता है और सीतारेवा छोटी और पतली नदी लगती हैं। शायद चंचल और सुंदर नदी रही हो, तभी नाम में रेवा जुड़ा हो।

नदियां – चाहे प्रत्यक्ष हों या नक्शे में, मुझे आकर्षित करती हैं। लगता है पूर्वजन्म में मैं मल्लाह रहा होऊंगा। किसी नदी को मैने सताया होगा और उन्होने शाप दिया होगा – जा तू अगले जनम में तैरना भी नहीं जानेगा और पानी में हिलने में तुझे भय लगा करेगा। कुछ वैसा ही है मेरे साथ – नदी को निहारता हूं पर उसमें पैर रखने से भी भय लगता है। लोग कहते हैं कि रोज गंगा जाते हो, उसमें स्नान कितनी बार किये हो? … मैंने शायद ही कभी गंगाजी में डुबकी लगाई हो। पैंतीस साल पहले अपने बब्बा को संगम में स्नान कराने ले गया था; तब लगाई थी उनके साथ। उनकी अंतिम ख्वाहिशों में एक रहा होगा संगम में नहाना। बस वही याद है। नदी के प्रति लगाव, भाव और भय का अजीब मिश्रण है मेरे व्यक्तित्व में।
प्रेमसागर मुझे फोन मिलाते हैं और बात करने के लिये फोन एक वन रक्षक मनीष तिवारी को थमा देते हैं। मनीष 1996 से वन विभाग के कर्मचारी हैं। तब कैजुअल लगे होंगे। सन 2008-09 से नियमित वन रक्षक हैं। यहीं गाडरवारा में पदस्थापना है। सरकारी क्वार्टर मिला है। वे दो भाई हैं। मनीष और उनके छोटे भाई के परिवार साथ रहते हैं उनके सरकारी मकान में। वैसे उन्होने एक प्लॉट ले लिया है गाडरवारा में। “नर्मदा मईया की कृपा रही और आप लोगों का आशीर्वाद रहा तो मकान भी बन ही जायेगा।”
दोनो की पत्नी हैं, उनकी माता जी हैं और दोनो के दो दो बच्चे हैं। मनीष के दो लड़के हैं – आठवीं और चौथी कक्षा में। भाई की दो बेटियां हैं जो अभी छोटी हैं। एक ढाई साल की और दूसरी कुछ महीने की। उनके पास गाय है या नहीं – यह नहीं बताया और मैंने पूछा भी नहीं।
मनीष बताते हैं कि ये नदियां – और कई नदियां हैं जो नर्मदा माई में जा कर मिल जाती हैं – उनके बचपन में सदानीरा हुआ करती थीं। उनके गांव के पास भी उम्मर नदी है जो आगे चल कर दूधी नदी में मिलती है और दूधी मिलती है नर्मदा में। ये सभी नदियां सतपुड़ा की देन हैं। सभी नर्मदा के जल को समृद्ध करने वाली हैं। शक्कर तो वाराह गंगा हैं नर्मदा पुराण में। वाराह भगवान शक्कर नदी के रूप में प्रकट हुये थे, ऐसा विवरण आता है। “एक बार मैं नर्मदा पुराण सुन रहा था पण्डितजी से, तब उन्होने उल्लेख किया था।”
पर अब इन नदियों में गर्मियों में पानी नहीं रहता; रेत ही रहती है। बरसात होना कम हो गयी है। “मेरे गांव के पास भी उम्मर नदी है, उसमें मेरे बचपन में हमेशा पानी होता था, अब केवल बारिश और ठण्ड में ही होता है।”
बालू दोहन का बड़ा खेल चलता है, बड़ा ग़जब का कारोबार है। पूरे मध्य प्रदेश में चल रहा है। एक ट्रॉली जो पहले में हजार से कम की होती थी अब चार पांच हजार की आती है। अब तो सुनते हैं रेत ट्रेन से भी जाने लग गयी है। मनीष तो नर्मदा की ट्रिब्यूटरी नदियों की बात बताये, नर्मदा का खुद का हाल भी बताने वाला कोई मिलेगा कभी। वैसे मनीष बताते हैं कि नर्मदा यहां गडरवारा से अठारह किमी पर हैं और वहां जाना तो महीने में दो चार बार हो ही जाता है। उनमें तो अच्छे से पानी है।

मनीष अपनी नौकरी से संतुष्ट दिखे। पच्चीस किलोमीटर दूर उनका गांव है। वहं खेत हैं। ट्रेक्टर है। छोटा भाई प्राइवेट में नौकरी करता है और गांव की खेती भी संभालता है। “आपकी दया से एक चार पहिया गाड़ी भी है और गांव तक डामर की सड़क भी है। आने जाने में दिक्कत नहीं है। मैं तो यहीं रहता हूं। भाई गांव आता जाता रहता है। हम दोनो साथ रह कर और हिलमिल कर बढ़िया से संभाल रहे हैं गाडरवारा का काम भी और गांव का काम भी।” – मनीष यह बताते हुये अपना संतोष, प्रसन्नता और मेरे प्रति आदर, सब व्यक्त कर देते हैं। वह बार बार यह जोड़ते हैं – आप भी एक बार गाडरवारा का चक्कर लगाईये न। चित्र में मनीष अपनी सरकारी नौकरी और पास में गांव की खेती की जुगलबंदी तथा भाई के साथ एक साथ रहने के कारण एक अपवर्ड-मोबाइल-क्वासी-रूरल मध्यवर्गीय व्यक्ति लगते हैं। वनरक्षक अगर सामान्यत: इसी प्रकार के होंगे तो उनके जरीये बहुत कुछ बदलाव गांव-समाज में आ रहे होंगे।
पता नहीं मनीष को मुझसे बात कर कैसा लगा; मुझे तो बहुत रस मिला। लगा कि अपनी साइकिल ले कर मैं उससे उनके गांवदेहात में मिलने निकला हूं, गाडरवारा! …. अब लगता है कि तुम ब्लॉग की मजूरी नहीं कर रहे, तुम भी यात्रा कर रहे हो, जीडी! 🙂
प्रेमसागर कल गाडरवारा के आगे निकलने के मूड में नहीं हैं। आज उन्हें थोड़ी हरारत थी। पेरासेटामॉल ले कर सोये और दोपहर तीन-चार बजे ही उठे। बता रहे थे कि लगता है ताप है। कल चलने के लिये लक्ष्य है पिपरिया तक जाने का। रास्ता लम्बा है। मैं उनसे कहता हूं कि पचीस तीस किमी से ज्यादा दूर अगला मुकाम नहीं होना चाहिये। भले ही रुकने के लिये कोई असुविधाजनक घर ही मिले। उनकी जरूरतें ही क्या हैं – एक बिस्तर, दो रोटी और सब्जी! वह न भी हो तो सत्तू चिवड़ा, चीनी तो है ही उनकी पोटली में। मुकाम उतनी दूर होना चाहिये जितना सरलता से रास्ता देखते आनंद लेते कटे। कांवर-मैराथन प्रतियोगिता थोड़े जीतनी है।
प्रेमसागर हां हां कह देते हैं पर करते अपने हिसाब से ही हैं। खैर, फिलहाल कल उन्होने निकलना मुल्तवी कर दिया है। जान गये हैं कि शरीर एक दिन का आराम मांगता है।

मेरा आसपास देखने का आग्रह-प्रवचन लगता है प्रेमसागर पर असर डाल रहा है। उन्होने बताया कि यहां गाडरवारा में उन्होने कई इमारतों में छत खपरैल की देखी। पास में पीडब्ल्यूडी का रेस्ट हाउस भी है, जिसकी इमारत बड़ी है और छत खपरैल की है। मैं प्रेमसागर को कहता हूं कि अगर खपरैल की छत व्यापक है तो उसको बनाने वाले – नरिया और थपुआ बनाने वाले – कुम्हार भी आसपास होने चाहियें। मनीष ने बताया कि आस-पास कुम्हार हैं। कल प्रेमसागर और मनीष खपरैल के घरों के चित्र भी लेंगे और कुम्हारों से भी मिलेंगे। … आठ सौ किमी दूर बैठे मुझे आनंद आ रहा है। प्रेमसागर की यात्रा में दूरी नापने के साथ आसपास देखने का आयाम भी जुड़ रहा है। आसपास देखेंगे, फिर उसमें सौंदर्य की अनुभूति करेंगे और सौंदर्य आयेगा तो शिवत्व तो उसमें घुलामिला होगा ही! सत्यम-शिवम-सुंदरम!
प्रेमसागर को ब्लॉग की उपयोगिता समझ आ रही है। वे महसूस करते हैं; कि उनके माध्यम से खपरैल के मकानों के, कुम्हारों के और आसपास के लोगों के चित्र उसमें आयें। “सीतारेवा और शक्कर के संगम को भी कल देख कर आऊंगा” – वे बताते हैं। वे यह भी कहते हैं – “आप मनीष जी के बारे में भी लिखें। उससे वन विभाग के बड़े अधिकारियों और प्रवीण भईया को भी तो पता चले मनीष जी के बारे में कि किसे लोग हैं और कैसी जिंदगी है उनकी”। अब प्रेमसागर अभिव्यक्ति की जरूरत और महत्व के पक्ष को भी समझने लगे हैं – मेरी पत्नीजी कहती हैं कि कहीं भी पंहुचने पर मात्र मंदिर, मूर्तियां और चमत्कार तलाशने वाला व्यक्ति अब खपरैल और कुम्हार भी तलाशने लगा है – यह बहुत गहन बदलाव है व्यक्तित्व का!
अपडेट 10 अक्तूबर, सवेरे – पिछली पोस्ट में जिक्र है कौड़िया के राजकुमार जी का। प्रेमसागर का आपात स्थिति में परसों उन्होने अपने घर रात्रि आश्रय और भोजन का इंतजाम किया था। वे कल रात में मिलने मिलने आये। गलती से उनका नाम पोस्ट में राजकुमार रघुवंशी की बजाय राजकुमार यदुवंशी लिखा गया था। उसे सही कर दिया गया है। उन्हें असुविधा हुई, उसका खेद है। इसके लिये उन्हे कौड़िया से गाडरवारा आना पड़ा, यह और गड़बड़ हुआ। प्रेमसागर और मैं दोनो ही भविष्य में लोगों के नामों को ले कर सतर्क रहें – यही सीख मिलती है।

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
इंद्रेश, ट्विटर –
Ghar to kafi achha lg raha hai.
LikeLike
बदनाम शायर, ट्विटर –
1. ओशो याद आए । वही इमलिया मे शक्कर नदी पर बने रेलवे पुल से कूदकर स्नान के बाद बगल के शिव मंदिर मे जाकर घंटो ध्यान मग्न रहते थे ओशो रजनीश। पूछने पर कहते की अपनी मृत्यु को बुलाता हूँ आती नहीं ।ओशो ने तैरना वही स्वयं से शक्कर नदी मे सीखा ।
बाद मे उनके फालोवर्स ने वही आश्रम बनवा दिया।
2. वाराह पर एकजनश्रुति है कि वाराह क्षेत्र बस्ती जिले मे है ( बडा चत्रा , उतरप्रदेश) टिनिच रेल्वे स्टेशन से दो मील पूर्व ओर कुआनो नदी के दक्षिणी तट पर, रेल के पुल से आधे मील पर एक ग्राम है जो ऐतिहासिक साक्ष्यो तथा जनश्रुति के अनुसार “वराह – अवतार” की स्थली है ।पुराणो का व्याघ्रपुर ।
3. ओशो ने अपने बचपन को याद करते हुवे लिखा है कि वो उस शिव मंदिर में सात दिनों तक लेटकर मृत्यु का इंतजार करते रहे। सातवें दिन वहां एक सर्प आया, तो ओशो को लगा कि यही उनकी मृत्यु है लेकिन सर्प चला गया। इस घटना ने ओशो का मृत्यु से साक्षात्कार कराया और उन्हें मृत्युबोध हुआ। #OSHO #Shiva
LikeLiked by 1 person
प्रेमसागर जी शरीर की भी सुनें। प्रकृति की आज्ञा मान लें। नदियों में पानी कम हो रहा हे, बालू का जमकर खनन हो रहा है, पता नहीं आगे क्या होगा?
LikeLiked by 1 person
प्रेम सागर अब शरीर की थोड़ा थोड़ा सुनने भी लगे हैं, शायद!
LikeLike
J A N A R D A N @janardanwakank1 जी की ट्विटर पर टिप्पणी
सरकारी नौकरी और गांव के खेत की जुगलबंदी ..
वाह शानदार क्या बात है
सत्यम शिवम् सुंदरम!
—–
यहां मेरे गांव के आसपास भी वन रक्षक या रेलवे के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी ऐसी जुगलबंदी कर पा रहे हैं। उनकी क्वालिटी ऑफ लाइफ हमारी से कहीं बेहतर है! 🙂
LikeLike
Sir bahut hi sunder aisa lag raha ap bhi sath m anandit ho rahe h
LikeLiked by 1 person
यह लगभग यात्रा न करते हुये भी यात्रा का अनुभव दे रहा है। गूगल मैप, रीयल टाइम लोकेशन शेयर, टेलीग्राम/ह्वाट्सएप्प से उपलब्ध चित्र और लोगों से बातचीत करीब 40-50 प्रतिशत साथ साथ घुमा रहे हैं। बची कसर कुछ पुस्तकें पूरी कर दे रही हैं! 🙂
LikeLike