बरेली से बाड़ी की ओर चलने का अर्थ है नर्मदेय क्षेत्र से पहाड़ की गोदी की ओर चलना। नर्मदा का मैदान उतना विस्तृत नहीं है जितना गंगा का। दस किलोमीटर उत्तर दक्षिण चलते ही नर्मदा की घाटी अपनी रंगत बदलने लगती है। घाटी से हम विंध्य या सतपुड़ा की ऊंचाईयों में चढ़ने लगते हैं। यह मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव से कम, नक्शे को बार बार ध्यान से देखने के आधार पर ज्यादा कह रहा हूं। व्यक्तिगत अनुभव तो मध्य प्रदेश की गिनीचुनी ट्रेन यात्राओं का ही है जो उत्तर से दक्षिण जाते हुये की हैं।
अब जब प्रेमसागर बरेली से बाड़ी की ओर चले तो मुझे वही याद आया। यात्रा शुरू करते समय ही मैंने एक घण्टे बाद उनसे पूछा – ऊंचाई नीचाई आ रही है सड़क में? आसपास खेत हैं या पहड़ियां। प्रेम सागर ने उत्तर दिया कि जगह ऊंची नीची है। एक ओर खेत हैं पर दूसरी ओर तो जमीन ऊंची-नीची है। आबादी है, पर वह ज्यादातर बरेली के आसपास ही थी। उसके आगे एक नदी पड़ी, जिसका नाम वे नहीं जान पाये। नक्शे में देखने पर पता चलता है कि वह बरना नदी है जो बाड़ी के पास बरना जलाशय से निकलती है और आगे जा कर घूमते घामते नर्मदा में समा जाती है। बरना जलाशय बड़ा है और विंध्य की गोद में है। बरना नाम शायद वरुणा का अपभ्रंश है। नदी है वरुणा-नर्मदा। वैसे ही जैसे वरुणा वाराणसी में गंगा से मिलती हैं, ये वरुणा-नर्मदा, नर्मदा में मिलती हैं। बरना जलशय में कई नदियां आ कर मिलती हैं (बरना भी उनमें से एक है) और फिर बरना उसमें से निकलती है। उस जलाशय के आसपास घूमना रोचक अनुभव होगा। पर वह लेने तो प्रेमसागर निकले नहीं हैं। वे तो आज बाड़ी में रुक कर आगे बढ़ लेंगे – शायद भोपाल की ओर।

आज की प्रेमसागार की यात्रा छोटी है। कुल बीस किलोमीटर की। कुछ डी-टूर भी जोड़ लिया जाये तो 21-22 किलोमीटर होगी। वे अपना रीयल टाइम लोकेशन शेयर करने लगे हैं तो बीच बीच में मैं मैप पर झांक लेता हूं कि सीधे सपाट चल रहे हैं या नीचे उतर रहे हैं/ऊपर चढ़ रहे हैं। एक स्थान पर मुझे लगता है कि वे एक गिरजाघर के पास से गुजरने वाले हैं। मैं उन्हे आगाह करता हूं फोन पर कि वे चर्च का चित्र लेने का प्रयास करें। वे चर्च का चित्र तो नहीं भेज पाये पर वर्जिन मेरी और जीसस की मूर्ति का चित्र जरूर भेजा। एक बगीचा भी था। जिसे देख कर लगता है कि यह स्थान परित्यक्त नहीं हो गया है। गिरजा जीवंत है। रविवार को परिवार वहां जुटते होंगे। अंग्रेज चले गये बहुत जमाने पहले पर थोड़ी बहुत ईसाई आबादी आसपास बच रही होगी। या बढ़ भी रही हो?! क्या पता!

प्रेम सागर को आगे एक नब्बे साल से अधिक उम्र के सज्जन मिले। वे पूरी तरह फिट थे। स्वतंत्रता सेनानी थे, गुजरात के रहने वाले पर यहीं बस गये हैं – शायद यहीं कोई जॉब करते रहे हों। सड़क किनारे वे चाय के लिये एक होटल पर आये थे, वहीं पर मिले। बताया कि उनकी पैदाइश 1927 की है। उन्होने एक गरीब आदमी को पैंतीस हजार दे कर मदद की थी चाय आदि की दुकान खोलने में। उसे मिल कर आश्वासन भी दे रहे थे कि भविष्य में भी कोई जरूरत हो तो उनसे बेझिझक मांग सकता है।

मैंने प्रेमसागर से आज पूछा कि उन्हें दिन भर की यात्रा में कब कब लगा कि महादेव की उपस्थिति थी यात्रा के दौरान? आखिर कहा जाता है न कि कंकर में शंकर हैं तो चलते चले जाने की सार्थकता तो इसी में है कि कभी कभी उनकी अनुभूति होती रहे। प्रेम सागर ने कहा कि आज दो बार ऐसा लगा। उनमें से पहली बार तो इन स्वतंत्रता सेनानी जी के मिलते समय लगा था। इतनी उम्र में भी वे निस्वार्थ लोक कल्याण में लगे थे।
वहीं कुछ दूर पर एक महिला – नाम बताया मनीषा बैरागी – जी ने प्रेमसागर को कांवर लिये जाते देख रोक लिया और जलेबी-फलहारी चिवड़ा और चाय का नाश्ता कराया।
रास्ते में प्रेमसागर तो एक ओर खेत और दूसरी ओर पेड़ और ऊंची नीची जमीन दिखी। एक स्थान पर कोई पॉलीटेकनिक संस्थान था और एक गौशाला। वे सब दूर से चलते चलते ही देखे उन्होने। उनके चित्र यहां लगा देता हूं जिससे भविष्य में यात्रा करने वालों को स्थान की प्रकृति का कुछ अहसास रहे।
बाड़ी पंहुच गये होंगे हमारे पदयात्री जी साढ़े तीन बजे तक। शाम छ बजे वे मंदिरों के दर्शन को निकलने वाले थे। मैं अगर बीस किलोमीटर चलूं तो दो दिन पांव की मालिश करवाऊंं! गजब की जीजीविषा है प्रेमसागर में चलने और घूमने की। मेरी पत्नी जी कहती हैं – यह उनका और अपना तुलना राग तो छेड़ा ही मत किया करो। तुम्हारी और उनकी यू.एस.पी. अलग अलग विधाओंंमें है। तुम लिखते नहीं तो क्या करते? प्रेमसागर चलते नहीं तो क्या करते? यह जरूर है कि प्रेमसागर के बारे में नहीं लिखते तो कुछ और लिखते।” वे शायद वेगड़ जी कथन से प्रभावित हैं। उन्होने कहा है कि मैं नर्मदा की यात्रा नहीं करता तो क्या करता? मेरा जन्म ही उसके लिये हुआ है।
वन विभाग के रेस्ट हाउस के पास ही है हिंगलाज मंदिर। मूल शक्तिपीठ तो हिंगलाज माता का बलूचिस्तान में है। पर रायसेन जिले का यह मंदिर भी प्राचीन है। किसी साधक को माताजी ने सपने में प्रेरणा दी थी और (कथाओं के अनुसार) कालान्तर में वे बलूचिस्तान के मंदिर से ज्योति ले कर भी आये थे। “उसके बाद माता जी स्वयम यहां प्रकट हो गयी थीं।” नेट पर उपलब्ध सामग्री में इस मंदिर के विलुप्त होने और पुन: जीर्णोद्धार की बात भी है। प्रेमसागर ने बताया कि एक छतरी नुमा इमारत में औरंगजेब की प्रसाद बांटने की शरारत (?) और उनके द्वारा भेजे मांसाहारी भोज के मिठाई में बदल जाने के चमत्कार की कथा भी है। पर मुझे लगता है कि मामला इतिहास के नहीं, आस्था और श्रद्धा के डोमेन में है। इस मंदिर की बहुत मान्यता है। शक्तिपीठ ही माना जाता है इस पीठ को।
मंदिर में वहां के पुजारी जी और माँ हिंगलाज संस्कृत विद्यालय के प्राचार्य पण्डित देवनारायण त्रिपाठी जी से भेंट हुई प्रेमसागर की। आज की यात्रा के शिव-तत्व-दर्शन में दूसरी घटना प्रेम सागर त्रिपाठी जी से मिलना बताते हैं। त्रिपाठी जी ने उन्हें दो चुनरी, श्रीफल, सेब और केले और दुर्गा सप्तशती की एक पुस्तक उपहार में दी और ढेर सारा आशीर्वाद दिया यात्रा के लिये। प्रेमसागर ने कहा – “वे प्रसाद (भोजन) ग्रहण करने का भी जोर दे रहे थे; भईया, पर रेस्ट हाउस में मेरा भोजन बन रहा था; इसलिये उन्हें मना किया। अन्यथा वहीं प्रसाद ग्रहण करता। कल यहां से निकलते समय यदि हो सका तो उनके पास कुछ देर रुकूंगा। उनकी तरफ से आज नवरात्रि की अष्टमी को जो उपहार मिला, उससे मैं अपने को धन्य मानता हूं। फल तो मैं खा जाऊंगा, पर बाकी उपहार तो मेरे साथ बना रहेगा।”

पास में ही राम जानकी मंदिर है। रात में रामदरबार के जो चित्र प्रेमसागर ने भेजे वे इतने स्पष्ट नहीं हैं, पर सुंदर पेण्टिंग से लगते हैं। चित्र में पूरे राम परिवार की मूर्तियां सिंगार के साथ हैं।
रेस्ट हाउस में व्यवस्था चंद्रकांत त्यागी जी कर रहे हैं। उन्होने ही बताया है कि कल विनायका (?) के लिये रवाना होंगे प्रेमसागर। वे भोपाल के लिये रवाना होंगे। रास्ते में भोजपुर पड़ेगा जहां विशालकाय शिवलिंग है। अगला मुकाम – विनायका मुझे नक्शे में दिखता ही नहीं। अगला मुकाम नक्शे में देख कर उसकी दूरी ज्ञात करना प्रेमसागर की पदयात्रा अनुशासन में नहीं है। वे रास्ते में लोगों से पूछने, फोन पर मार्ग के बारे में बात कर जानकारी लेने आदि पर ज्यादा यकीन करते हैं। वे जैसे जैसे चलते जायेंगे, वैसे वैसे मार्ग मुझे स्पष्ट होगा।

मैं सोचता था कि प्रेमसागर ॐकारेश्वर के लिये होशंगाबाद की ओर निकलेंगे, पर अगर वे भोपाल की ओर निकलते हैं तो पहले उज्जैन जाना होगा – महाकाल दूसरे ज्योतिर्लिंग होंगे उनकी पदयात्रा के। पर पता नहीं उनकी यात्रा की योजना कौन बना रहा है? प्रेमसागर खुद तो बना नहीं रहे। शायद प्रवीण दुबे जी बना रहे हों; या शायद महादेव ही बना रहे हों। उनकी यात्रा का हर दिन, हर मुकाम मेरे लिये अप्रत्याशित ही होता है।
और इस प्रकार की लबड़-धबड़ यात्रा मेरी प्रकृति से फिट नहीं बैठती। पर तुम कर ही क्या सकते हो जीडी? दिनेश कुमार शुक्ल जी मुझसे कहते हैं – “प्रेमसागर को लिखो महराज, पर अपने आसपास का जो देखते-लिखते-बुनते हो, जो इप्रेशनिष्ट कथ्य उसमें निकल कर आता है, उसे कमतर मत आंको।” प्रेमसागर के अगले मुकाम के बारे में अस्पष्टता को ले कर मुझे दिनेश जी की बात याद हो आयी है। प्रेमसागर के चक्कर में कोलाहलपुर की सुंदर मूर्ति बनाने वाले के पास जाना और मिलना रह ही गया। अब नवरात्रि भी बीतने को आयी। आसपास भी देखो, जीडी!
हर हर महादेव!
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
यात्रा से इतर भी आनन्द है। यदि न हो तो रोचकता चली जायेगी। ३० किमी प्रतिदिन में ४-५ विशेष अंग होने चाहिये।
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धन्यवाद, यह ध्यान रखना सुनिश्चित किया जाएगा!
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सुधीर खत्री, फेसबुक पेज पर –
इसी बहाने पाठकों को भी भारत भ्रमण की जानकारी से अवगत कराने हेतु आपको साधुवाद
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नीरज सिंह, ट्विटर पर –
मैडम फक्कड़ matured हैं।
गुढ़ बात तपाक से बोल देंती हैं…
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हम दोनों काफी चर्चा करते हैं और उसे लिखते हुए कोई संकोच नहीं दिखाते। मैं भी प्रेम सागर के बारे में अपनी झुंझलाहट भी निःसंकोच लिख देता हूं।
इस ब्लॉग की प्रवृत्ति वैसी ही है। 🙂
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नीरज सिंंह जी की प्रत्युत्तर में टिप्पणी –
जी…ये आपके लेखन में झलकता है।
यात्रा के प्रति आपकी दृष्टि काफी रोचक है। प्रेमसागर जी का धेयः मंजिल है तो आपका मार्ग।
मार्ग में शिवतत्त्व को अनुभव करना ज्यादा रोचक है। ये में अपने रुचि की बात कह रहा हुँ।
आपने यात्रा के प्रति जो नजरिया मुझे दिया वो मेरे अंदर था पर मैं उसे अच्छे से समझ नही पा रहा था या उभार नही पा रहा था। प्रकृति को देखने मे ज्यादा आनंद है, कैसे देखें ये आपने बताया।
इसके लिए आपका आभार।
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शैलेंद्र सिंह, ट्विटर पर –
Teerth yatra mai forest dept ka khoob sahayog mil raha hai . Kya Premsagar ji forest dept ke employees k lagatar sampark mai hai ? Kaise arrangements ho raha hai unke stay ka ?
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प्रवीण चंद्र दुबे मेरे बंधु हैं। वे सेवा निवृत्त Chief Conservator Of Forests हैं। उनके अनुरोध पर वन कर्मी सहायता को तत्पर हैं। अब तो बहुत से प्रेम सागर को जान गए हैं और सुहृद बन गए हैं! 🙂
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अरुण सांकृत्यायन ट्विटर पर –
सादर – नाना जी स्वर्गीय श्री सूर्य नारायण पाण्डेय, शुकुल पुर ने नर्मदा परिक्रमा की थी। उन्होंने बताया था कि जितनी विविधता नर्मदा के जंगलों में है वैसी कहीं और नहीं।
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जी! बहुत सही कहा था आदरणीय पाण्डेय जी ने।
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Sunder satik chitran sath m Mam k expert comment achchhe lagte h
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रीता पाण्डेय प्रेमसागर की यात्रा सूक्ष्मता से फॉलो करती हैं! और बिना लाग लपेट के टिप्पणी भी करती हैं। उसे लिख देने पर कहती जरूर हैं कि “सब लिख देते हो” – पर बुरा नहीं मानतीं। 😀
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