15 अक्तूबर 21, रात्रि –
भोजपुर करीब छ किलोमीटर दूर था, तभी प्रेमसागर का फोन आया। बोले कि गौहरगंज में भोजपुर के भोजेश्वर मंदिर के महन्त जी मिले थे। बोल रहे थे कि भोजपुर के पास एक किलोमीटर पहले ही उनकी अगवानी करेंगे। बड़ी मान सम्मान की बात है प्रेमसागर के लिये। ऐसे में वे खुश थे, और रास्ते में चलते चलते मुझसे बात कर यह सूचना दे रहे थे। जब व्यक्ति कुछ पा लेता है तो विनयवत हो जाता है। प्रेमसागर वही विनय अभिव्यक्त कर रहे थे – “भईया, आपकी, भाभी (मेरी पत्नी) जी की और प्रवीण भईया की कृपा से हम चल रहे हैं। आज शाम मंदिर के दर्शन करेंगे। रात में पास ही की दिगम्बर जैन धर्मशाला में रुकने की व्यवस्था है। सवेरे एक बार फिर महादेव जी के दर्शन कर, जल चढ़ा कर भोपाल के लिये निकल लेंगे।” चलते चलते बात करते जा रहे थे प्रेमसागर। शायद ईयरफोन लगाये थे तो हाथ फोन से खाली थे। कांवर ले कर चलना और बात करना एक साथ हो पा रहा था।

पास ही बैठी मेरी पत्नी जी ने सुना तो अपने अंदाज में टिप्पणी की – “वाह! खीर, रसमलाई, पकवान खुद चाभ रहा है और कहता है कि आशीर्वाद हमारा है!” फिर कुछ सोच कर बोला – “पर यह लिख मत देना। मेरी ईमेज ही बिगाड़ दिये हो ब्लॉग पर।” … अंदाज वही है जो भाभियां अपने देवर या भाई को उलाहना देते, मजाक करते और मजाक मजाक में प्रशंसा करते दिखाती हैं। इकसठ साल की हो गयीं रीता पांड़े। प्रेमसागर उनके सबसे छोटे भाई के हम-उम्र होंगे। बचपन में सबसे छोटा भाई सबसे ज्यादा मार खाया है और सबसे ज्यादा स्नेह भी उसी पर है। प्रेमसागर से एक दिन ही मिली हैं वे, पर दिनो दिन उन्ही की चर्चा होती है तो छोटे भाई जैसा दर्जा हो गया है उनका।
प्रेमसागर बता रहे थे – “आज तो दिन भर फोन का नेटवर्क ही नहीं था। गौहरगंज के आसपास लगा। तभी मैंने आपको लोकेशन शेयर किया। गौहरगंज में जय प्रकाश त्रिपाठी जी मिले थे सड़क पर ही। वे वकील हैं। उनको खबर वन विभाग के राहेश नामदेव जी, एसडीओ साहब किये थे। त्रिपाठी जी ने खूब सत्कार किया। वहीं उनके ऑफिस में दो घण्टा मैंने आराम किया। मैंं फोटो भेजूंगा। बहुत से लोग थे सेवा करने वाले। कोई पैर दबा रहा था, कोई कुछ और सेवा कर रहा था।”

“उसके पहले जब बिनेका से चला तो छ किलोमीटर बाद ठाकरी गांव में राजेश नामदेव जी, एसडीओ साहब के दो भाई, पिताजी, उनकी पत्नीजी और बाकी लोग सड़क पर मेरा इंतजार करते मिले। नामदेव जी भोपाल में हैं पर उनका घर यहां है। वे लोग मुझे घर ले गये। फलाहार, चाय आदि कराये। टीका-चंदन से सत्कार किया और नारियल दे कर विदाई की।”
नामदेव जी के घर सत्कार, जय प्रकाश जी के दफ्तर में लोगों द्वारा सेवा और भोजेश्वर मंदिर के महंत जी से मुलाकात – यह सब उपलब्धि ही है। महादेव का कठिन पदयात्रा के दौरान उत्साह बढ़ाने को दिया प्रोत्साहन। चले चलो प्रेमसागर! हर हर महादेव का जयकारा लगाते चले चलो!

भोजपुर पंहुचते पंहुचते प्रेमसागर के हुये सत्कारोत्सवों ने मुझे सतर्क कर दिया। मैंने उनके बातचीत की टोन में ‘नारदीय अहंकार’ की तनिक भी गंध सूंघने की कोशिश की। दिखी नहीं। सत्कारोत्सव मुझे असहज करते हैं। प्रेमसागर को ले कर मेरे मन में कोई ईर्ष्या नहीं है, एक सद्भावना है कि कहीं बंदे का विकेट डाउन करने के लिये अहंकार कोई गुगली न फैंक दे जिसे ये खेल न पाये। फिलहाल प्रेमसागार सतर्क खिलाड़ी लग रहे हैं। सतर्क और सहज-सरल।
भोजपुर की तरफ पदयात्रा मुड़ने के साथ साथ यात्रा का नर्मदा – परिक्रमा मार्ग वाला चरित्र पीछे छूट रहा है। भोपाल तालों का शहर है। उसके बाद मालवा का पठार है। वहां जो नदियां हैं वे नर्मदा की ओर नहीं, उत्तर की ओर बहने वाली हैं। गम्भीर, चम्बल, काली सिंध, पार्वती – कुछ नाम मुझे याद आते हैं। देवास में नर्मदा का जल लिफ्ट कर लाया जाता था/है। उज्जैन में भी सिंहस्थ कुम्भ के दौरान नर्मदा का जल ला कर क्षिप्रा में डाले बिना काम नहीं चलता था। मालवा के पठार की नदियां उतनी स्वस्थ भी नहीं होंगी और उनका वह बड़ा जाल भी नहीं होगा जो गाडरवारा के दांये बांये दिखता था।
जैसा और जितना प्राचीन काशी है, उतना ही उज्जैन है। धार्मिक रूप से भी और सांस्कृतिक रूप से भी। जितना महत्व बाबा विश्वनाथ का है, उतना ही महाकाल का। मालवा प्रेमसागर को आकर्षित करे, न करे; मुझे जरूर उस क्षेत्र का यात्रा वृत्तांत लिखने का चाव है। देखें आगे क्या होता है!
“नर्मदे हर” से स्वागत करने वाले लोग कम होंगे पर यहां दूसरे प्रकार से सत्कार अभिवादन करने वाले होंगे। जमीन भी अलग होगी, खेती भी अलग होगी। शायद सोयाबीन के खेत मिलें। किसान ज्यादा प्रयोगधर्मी होंगे और ज्यादा सम्पन्न भी। पठार का चरित्र पहाड़ और घाटी से अलग होता है। वह परिवर्तन प्रेमसागर कितना देखते हैं – यह ऑब्जर्व करना रोचक होगा। … फिलहाल दो दिन तो भोजपुर-भोपाल की चर्चा होगी। कल देखेंगे कैसा लगता है भोजपुर का साढ़े अठारह फुट का शिवलिंग और कैसे होते हैं भोजेश्वर मंदिर के महंत जी!
बिनेका से सवेरे सवा सात बजे रवाना हुये प्रेमसागर। बिनेका के आसपास का दृश्य मनमोहक था। बहता जल, हरियाली और उनपर सवेरे की पड़ती सूरज की किरणें। चित्र भेजे उन्होने। बड़े अच्छे आये हैं।
उसके बाद नेटवर्क काम करना बंद कर दिया। फिर शाम पांच बजे ही उनसे सम्पर्क हुआ। तब प्रेमसागर भोजपुर से छ किलोमीटर की दूरी पर थे। शाम के समय जो कहा, उससे यही लगा कि आज की यात्रा आनंददायक रही। अधिकांश समय वे हाईवे पर नहीं थे। सड़क शायद उतनी अच्छी न रही हो। पर प्रेमसागर का मत है कि छोटी सड़क पदयात्री के हिसाब से बेहतर होती है। टेरेन नक्शे के हिसाब से समतल था – सो घाटी-पहाड़ नहीं मिले होंगे। जो हैं वे भोजपुर में हैं। पहाड़ी इलाके के बगल से निकल जाता है रास्ता जिसपर आज प्रेमसागर चल कर आये।
आज रात में तो भोजेश्वर मंदिर वाले लोग होंगे। कल सवेरे ही बात होगी प्रेमसागर के साथ। आज की बात यहीं तक!
हर हर महादेव!
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
यह सब पढ़ कर एक अद्भुत चेतना का संचार हो रहा है शरीर में। कहाँ जीवन के दिन गिनते गिनते एक ही घर में बिता देने वाले हम लोग, कहाँ घुमक्कड़ी का यह नित नया आनन्द। दोनों ही छोर हैं, आज अपना छोर व्यर्थ लग रहा है।
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चलो चलें, साइकिल ले कर चलें। हम दो पांड़े! 😁
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यहां पाण्डेय वाद नहीं चलेगा, चले न चले सभी पाठकों को आमंत्रित करना होगा 🙂
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चलिए, ज्योतिषी लोग भी आमंत्रित हैं! ग्रह नक्षत्र देखते रहेंगे तो यात्रा निर्विघ्न होगी! 😊
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🙏
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