19 अक्तूबर 21, रात्रि –
नर्सरी (रोपनी) जहां रुके थे प्रेमसागर और जिसे स्थान बताते थे – धुन (डीएचयूएन); वहां से आज करीब 56 किलोमीटर चले। सवेरे सवा छ बजे रवाना हुये होंगे। जब आष्टा पंहुचे तो रात के सवा आठ बज गये थे।
प्रेमसागर में सामान्य यूपोरियन आदमी की तरह हाँकने की प्रवृत्ति नहीं है जो तीन करता है और तेरह बताता है; अन्यथा वे इस दूरी को बड़े आराम से पचहत्तर किलोमीटर बताते और यह कहते कि सवेरे चार बजे निकले और रात बारह बजे पंहुचे। … लेकिन तब भी, प्रेमसागर की स्पष्टवादिता के बावजूद भी, मुझे प्रेमसागर से कष्ट है। मैंने उन्हे कहा भी – देखो, मैं अगर तुम्हारे साथ यात्रा कर रहा होता; और यह बड़ा अगर है; तो हमारी ज्यादा दिन निभती नहीं।
उनकी यात्रा में बहुत प्लानिंग नहीं है। फलाने ने कह दिया, ढिकाने ने रास्ता बता दिया तो तय कर लेते हैं चलने निकलने का। मैं यह कत्तई नहीं करता। कत्तई नहीं। जब से गूगल वाली मेहरारू गूगल मैप में बोल कर रास्ता बताने लगी है, मैं उसकी ज्यादा सुनता हूं। भले ही वह अमरीकन लहजे में जगहों के नाम को रगड़ देती है। भले ही वह मोहन सराय को “मोहंसर्रे” बोलती है, पर बहुत से लफाड़िया लोगों से बेहतर बताती है।
इसके अलावा, यह मालूम होने पर भी कि दिन भर में 55-60 किमी चलना है, प्रेमसागर यात्रा पर निकलने के दस किलोमीटर बाद ही शर्मा जी (वन विभाग के डिप्टी साहेब) के घर पर सामाजिकता निभाने के लिये डेढ़ दो घण्टा व्यतीत करते हैं – यह मैं कत्तई नहीं करता। ज्यादा होता तो उनके दरवाजे से या एक कप चाय पी कर दण्ड-प्रणाम कर आगे निकल लिया होता। प्रेमसागर जी के साथ तो वहां आदर सत्कार, तिलक टीका, फोटो सेशन और दण्ड-प्रणाम सब हुआ। सामाजिकता निभाना भी जरूरी है। पर तब, उसके लिये समय का एडवांस एलॉकेशन होना चाहिये। तब आपको छप्पन किलोमीटर नापने का लालच (?) नहीं करना चाहिये।

मैं विशुद्ध गंवई आदमी बन गया हूं। सूर्यास्त तक अपने मुकाम पर पंहुच जाना मेरे लिये अलंघनीय नियम है। रात आठ नौ बजे तक चलना अपने लिये स्वीकार्य नहीं। प्रेमसागर निशाचर की तरह चलें तो चलें – और इस बात पर उनसे दूसरे तीसरे दिन ही झगड़ा हो जाता। 😆
खैर, ईश्वर की कृपा है कि मैं प्रेमसागर के साथ यात्रा नहीं कर रहा। लेकिन डिजिटल यात्रा करने की भी अपनी सनक है, अपने जुनून हैं। उसके भी अपने खिचखिच हैं। नेटवर्क कई बार इस या उस छोर पर बंद हो जाता है। पोजीशन अपडेट नहीं होती, कई बार घण्टे घण्टे भर प्रेमसागर एक ही जगह धरना दिये दिखते हैं। और एक घण्टे बाद एक बड़ी छलांग लगा कर कहीं पंहुचे नजर आते हैं। दूसरे, बहुत झिकझिक करने के बाद भी प्रेमसागर अपनी लोकेशन गूगल मैप पर सीधे बहत्तर घण्टे के लिये शेयर नहीं कर पाये। वे आठ घण्टे के लिये टेलीग्राम या ह्वाट्सएप्प पर शेयर करते हैं और उसे आगे आठ घण्टे के लिये बढ़ाना कई बार भूल जाते हैं। और उसमें उनको दोष नहीं दिया जा सकता। सड़क नापते आदमी को यह ध्यान रखना कठिन होता होगा।
भैया कल की आप की सारी प्लानिंग फिक्स निश्चित हैं जैसे आप कितने बजे उठेंगे, बटोही भ्रमण कब तक होगा, चाय नाश्ता भोजन इत्यादि, फिर भी क्या आप निश्चिंत हैं?…वही अवघड़राम का कुछ भी निश्चित नही फिर भी वो निश्चिंत हैं, यही फर्क हैं भैया ट्रेवलॉग में और यात्रा में🙏🙏
गिरीश सिंह की पोस्ट पर महत्वपूर्ण टिप्पणी। ट्विटर पर।
मैं अपनी पत्नीजी से अपनी प्रेमसागरीय-झुंझलाहट व्यक्त करता हूं तो पत्नीजी प्रेमसागर के बचाव में बोलती हैं – “उस बेचारे की जान लोगे क्या? इतना सब तो कर रहा है। फोटो खींच रहा है। लोकेशन शेयर कर रहा है। चुपचाप सिर झुका कर चलता था, अब तुम्हारे कहे पर खेत, किसान, हल बैल, नदी ताल को देख कर वर्णन कर रहा है। … तुम्हें तो जो मिलता है उसको अपने तरीके से चलाना चाहते हो। अपनी अपेक्षायें उसपर लाद देते हो। तभी तुम सामजिक प्राणी नहीं बन पाये। ये तो मैं ही हूं जो तुमसे निभा सकी हूं।”
हर भारतीय महिला यह सोचती है – यकीन करती है – कि वह न होती तो उसका मरद बिलाला घूमता। बहुत दुर्गति होती उसकी! रीता पाण्डेय कोई अपवाद नहीं हैं। 🙂
खैर. प्रेमसागर की कांवर यात्रा पर लौटा जाये। आज रास्ते में उन्हें कई जैन मंदिर या स्थान मिले। इस इलाके में जैन सम्प्रदाय का बहुत प्रभाव है। एक स्थान पर उन्होने बहुत आग्रह किया प्रेमसागर को भोजन करने का। वह मना करने पर उन्होने उनकी जेब में कुछ रकम रख दी – कि जब वे भोजन करना चाहें, उससे कर सकें।

खेत खाली थे। मानसून की फसल कट चुकी थी। खेतों में हल चल रहा था। कई जगह उन्हें बैलों का प्रयोग दिखा हल चलाने में। सोयाबीन की खेती के बारे में मैंने उन्हे कहा कि आगे उसके बारे में जानकारी लें। और आगे अगर हल-बैल दिखे तो चित्र लेने का प्रयास करें, भले ही उसके लिये थोड़ा सड़क से हट कर खेत में जाना पड़े।
रास्ते में एक पतली सी नदी मिली। वह आगे जा कर पार्वती नदी में मिलती होगी। नक्शे में देखने पर संगम स्थल का नाम ही प्रयाग संगम दिखा। संगम और प्रयाग पर्याय जैसे बन गये हैं।

छप्पन किलोमीटर चल चुकने के बाद आष्टा में घनश्याम पांड़े, डिप्टी साहब के यहां प्रेमसागर के रुकने का इंतजाम हुआ। यह बताते हुये प्रेमसागर की आवाज में थकान नहीं थी। इतना चलने और दिनों दिन चलते रहने की ऊर्जा कहां से आती है उनमें? उनके भोजन, व्यायाम और मनन-ध्यान अनुशासन पर, उनके फेमस होने पर शायद कई लोग पूछें। फिलहाल किसी दिन मैं ही पूछूंगा कि कितना अश्वगंधा, कितना बबूल का गोंद और इसी तरह की अन्य औषधियां वे इस्तेमाल करते हैं। पढ़ने वालों को शायद उसमें काम की बातें पता चलें।
अगले दिन प्रेमसागर को दौलतपुर के लिये निकलना है – यह देवास के रास्ते में आष्टा से 34 किलोमीटर आगे पड़ता है। तीन दिन बाद उन्हें उज्जैन पंहुच जाना चाहिये। वह उनका एक मुख्य मुकाम होगा। उनके संकल्प का दूसरा शिवलिंग दर्शन!
चरैवेति, चरैवेति!
हर हर महादेव!
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
“उस बेचारे की जान लोगे क्या? इतना सब तो कर रहा है। फोटो खींच रहा है। लोकेशन शेयर कर रहा है। चुपचाप सिर झुका कर चलता था, अब तुम्हारे कहे पर खेत, किसान, हल बैल, नदी ताल को देख कर वर्णन कर रहा है। … तुम्हें तो जो मिलता है उसको अपने तरीके से चलाना चाहते हो। अपनी अपेक्षायें उसपर लाद देते हो। तभी तुम सामजिक प्राणी नहीं बन पाये। ये तो मैं ही हूं जो तुमसे निभा सकी हूं।”
हँसते हँसते पेट फूल रहा है, हम लोगों का।
अनिश्चितता का अंश प्रेमसागर के यात्रा में बहुत अधिक नहीं है। हमारे जीवन में भी निश्चितता शत प्रतिशत नहीं है। अन्तर यही है कि हमारे जीवनों जो अनिश्चितता खिड़की के बराबर खुली है, प्रेमसागर जी पूरा विस्तृत वितान खोले बैठे हैं।
विनय पत्रिका की एक रचना याद आयी। ब्रह्माजी जाकर पार्वती से शंकर की शिकायत करते हैं कि आपके भोले बाबा इतनी दया बाँटते हैं कि हमारे बनाये नियमों का, व्यवस्था का पालन ही नहीं हो पा रहा है। आप इस समय ब्रह्मवत हैं, प्रेमसागर जी शिवमय, हम यहाँ बैठकर तुलसी सा आनन्द ले रहे हैं।
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प्रणाम सर, प्रेमसागर जी की इस अद्भुत यात्रा का अत्यन्त रोचक व्यौरा जिस तल्लीनता से आप तैयार कर रहे हैं और प्रतिदिन हमें परोस रहें हैं उसे देखकर हमें लगता है कि द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन का पुण्यलाभ श्री प्रेमसागर जी के साथ-साथ आपको भी अवश्य प्राप्त होगा। जो इस कथा का पाठन नियमित रूप से ऑनलाइन करते हुए मानसिक रूप से श्री प्रेमसागर जी से यात्रा के अन्त तक जुड़े रहेंगे उन्हें भी भगवान भोलेनाथ की कृपा अवश्य मिलेगी। आपकी रिपोर्टिंग में यह सक्रियता बहुत ही शुभफलदायक होने वाली है। साधुवाद व हार्दिक शुभकामनाएं।
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धन्यवाद सिद्धार्थ जी! यह लेखन मुझ बैठे ठाले को व्यस्तताओं में ठेल रहा है. कम से कम इसकी वह उपयोगिता तो है ही.
हाँ, इसमें आनंद आ रहा है! 😊
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Sir bahut hi sunder chitran h
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🙏🏻
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