आष्टा से दौलतपुर – जुते खेत और पगला बाबा

20 अक्तूबर 21, रात्रि –

कल प्रेमसागर ने कहा था कि खेतों में फसल कट चुकी है और अगली फसल के लिये खेत जोते जा रहे हैं। कहीं कहीं उन्होने हल-बैल भी काम पर लगे देखे। मैंने उन्हें कहा था कि कल (यानी आज) वे खेतों के चित्र खींचे, और अगर सम्भव हो तो थोड़ा खेत में जा कर हल-बैल का चित्र भी लें। हल बैल तो नहीं, जुते खेत का एक चित्र प्रेमसागर ने भेजा है। (प्रेमसागर मुझे इतनी बार लिखना पड़ता है कि सोचता हूं उनके लिये कोई छोटा नाम लिखा करूं। उससे मुझे की-बोर्ड पर कुछ कम मेहनत करनी होगी। आलसी ज्ञानदत्त को वह अच्छा लगेगा। सो आगे मैं प्रेमसागर को कभी कभी प्रेम ही लिखूंगा।)

जुते खेत का एक चित्र

मैं चित्र ध्यान से देखता हूं। यहां पूर्वांचल के खेत से अंतर समझ आता है। पहली बात तो खेत की जोत की है। इतने बड़े खेत यहां शायद ही किसी के पास हों। दूसरे, जहां भी नजर जाती है वहां या तो जमीन है, पेड़ हैं और खेत हैं। कोई मकान, कोई बसावट नहीं। कम से कम लैण्डस्केप मोड में लिये चित्र में तो नहीं। यहां तो इतने बड़े फ्रेम में दो या तीन गांव तो नजर आते ही! मालवा में जमीन पर जनसंख्या का दबाव यहां बनारस-प्रयाग इलाके से कहीं कम है। यहां लोग अगर मेहनती हैं (और वे मेहनती हैं) तो अच्छे से खेती कर सकते हैं। सोयाबीन, अंगूर और यहां तक कि स्ट्रॉबेरी की खेती करते देखा था मैंने किसानों को। यह जरूर है कि मेरी जानकारी दो दशक पुरानी है। पर काली मिट्टी और कम पानी वाली जमीन से विविध प्रकार की फसलें लेते थे किसान। सोया खली के लदान के लिये तो इतनी रेल रेकों की मांग हुआ करती थी कि हमारी नाक में दम रहा करता था। मेरा घर दुआर अगर पूर्वांचल में नहीं होता तो रिटायरमेण्ट के बाद इंदौर या उज्जैन से तीस चालीस किलोमीटर की दूरी पर जमीन ले कर बस गया होता। देवास के पास दौलतपुर, जहां आज शाम प्रेम पंहुचे हैं, एक सही-साट जगह होती। … पर ये होता, वो होता कहने से कुछ बनता नहीं! 😦

पार्वती नदी

आष्टा पार्वती नदी के किनारे बसा है। प्रेमसागर ने सवेरे निकलते ही पार्वती के तीन चार चित्र भेजे। नदी में पानी ठीकठाक है। नदी यहीं पठार से ही किसी स्थान से निकलती है और आगे जा कर कालीसिंध में मिल जाती हैं। उसके बाद कालीसिंध (शायद) चम्बल में। आष्टा में एक शिव मंदिर है नदी किनारे जो बरसात के मौसम में पानी में डूब जाया करता था – ऐसा मैने विकीपेडिया पर पढ़ा। विकीपेडिया अपडेट नहीं किया गया है। (भारतीय इस काम को बहुत गम्भीरता से नहीं लेते। 😦 ) वहां डेमोग्राफी के आंकड़े अभी भी 2001 जनगणना वाले ही हैं। अब बारिश उतनी होती है, कि मंदिर जलमग्न हो जाये? यह विकीपेडिया से पता नहीं चलता। प्रेम के पास उतना समय आष्टा में था नहीं कि यह सब पूछ-पछोर सकें। एक कांवर यात्री को बहुत ज्यादा इधर उधर के काम थमाये नहीं जा सकते! 🙂

पार्वती नदी का दूसरे कोण से लिया चित्र

चित्रों में नदी किनारे बसावट और मंदिर वैसे ही हैं जैसे किसी नदी किनारे बसे कस्बे में होते हैं। पार्वती के पानी को देख कर – पानी खूब है और साफ है – लगता है कि रिहायश बनाने के लिये आष्टा भी बुरी जगह नहीं होती। पांड़े, मिसिर, तेवारी, ठाकुर, पटेल, पाटीदार यहां भी वैसे ही और उतने मिलेंगे जितना पूर्वांचल में मिलते हैं। यहां बसने पर यह जरूर होता कि मेरी भाषा में अवधी छौंक की बजाय मालवी पुट रहता। मैं ‘है’ को ‘हे’ बोलने लगता! 🙂

प्रेमसागर का मालवा से गुजरना मुझे यादों के अतीत में ले जा रहा है। उस इलाके में मैंने जीवन के बेहतरीन 17 साल गुजारे हैं। तब रेलवे की नौकरी के तनाव थे। अब तनाव रहित वहां जीना हो, जब एक साइकिल हो घूमने के लिये, तो क्या आनंद आये। कोई सज्जन हैं उस इलाके के गांव के जो आगामी सर्दियों में अपने घर मुझे महीना भर रखने को झेल सकें?! हेल्लो, कोई सुन रहे हैं! 🙂

रास्ते में प्रेम को दो और नदियां मिलीं। छोटी नदियां।

रास्ते में प्रेम को दो और नदियां मिलीं। छोटी नदियां। मैंने मैप में तलाशा तो इस तरह की कई नदियों को पठार से निकलते और घूम घाम कर एक दूसरे में और अंतत: पार्वती या कालीसिंध में मिलते पाया। करीब 40-50 किमी लम्बी होगी इन नदियों की स्वतंत्र यात्रा। पर उसी में कितना सौंदर्य और कितना जीवन-अवलम्ब प्रदान करती हैं ये। बारिश कम होने लगेगी और ये नदियां सूखेंगी तो कितना गड़बड़ होगा प्रकृति और मानव के लिये। पर असल बात यह है कि तुम नकारात्मक क्यों सोचते हो ज्ञानदत्त?

एक नदी पर रपट (चेक डैम) बना था।

एक नदी पर रपट (चेक डैम) बना था। उससे नीचे गिरता जल झरने का आनंद दे रहा था।

एक जगह एक बैलगाड़ी का सुंदर चित्र लिया प्रेमसागार ने। गाड़ीवान ने खाली बैलगाड़ी सड़क किनारे पार्क कर रखी थी। पास में ही उसका बैल बंधा था। बैलगाड़ी, बैल और हल से जुताई मालवा में वास्तविकता है। यहां पूर्वांचल में तो बहुत खोजने पर कहीं हल दिखता है और बैलगाड़ी तो पिछले छ साल में यहां रहते कभी देखी नहीं। हड़हड़ाते हुये दैत्य के बच्चे (ट्रेक्टर-ट्रॉली) मुझे हर मिनट दिखते हैं। उनको देख कर लगता है कि गांव में बस कर गलती कर दी। बिग मिस्टेक!

एक जगह एक बैलगाड़ी का सुंदर चित्र लिया प्रेमसागार ने।
पगला बाबा से भेंट

करीब पंद्रह किलोमीटर चले होंगे प्रेम तो पगला बाबा से मुलाकात हुई। पगला बाबा के आश्रम जनकपुर (नेपाल) और सिमरिया (बेगूसराय) में हैं। सिमरिया में जल चढ़ाने के ध्येय से जाते प्रेम उनसे उनके आश्रम में मिल चुके हैं। दो दिन उस आश्रम में रहे थे। आज वे चार लेन की सड़क में बीच के डिवाइडर पर कांवर लिये चल रहे थे तो विपरीत दिशा से आती गाड़ी में पगला बाबा गुजरे। प्रेमसागर ने तो उन्हे नहीं देखा, पर बाबा ने चीन्ह लिया। ग़ाड़ी रोक कर प्रेमसागर से बातचीत की। उनके संकल्प की यात्रा पर उन्हें आशीर्वाद दिया, लेकिन आगाह भी किया – यात्रा में सावधान रहना है। उसके जोखिम बहुत हैं। सौ में से पचानवे कांवर यात्री अपनी यात्रा बीच में छोड़ कर लौटते हैं। अधिकतर दुर्घटना का शिकार होते हैं। रास्ते में लोगों से मिलते जुलते चलना है। लोग अपनी समस्याओं पर बहुत बार सहायता मांगते दिखेंगे। उनको नाराज नहीं करना है। समझा बुझा कर, कुछ दे कर अपनी यात्रा जारी रखनी है। नाराज लोग अनिष्ट कर सकते हैं। यात्रा में विघ्न डाल सकते हैं।

प्रेम ने बताया कि बाबा नब्बे साल के होंगे पर लगते पचास के हैं। “मेन बात है भईया कि वे अन्न ग्रहण नहीं करते। फल आदि से काम चलाते हैं। सिहोर में भव्य रामजानकी मंदिर बनवाये हैं। वहीं यज्ञ है तीन दिन का। उसी के लिये जाने की जल्दी में थे। इसलिये हड़बड़ी में मैं उनका फोटो नहीं ले पाया। उन्होने कहा कि मैं जब नासिक (त्र्यम्बकेश्वर) पंहुचूंगा तब वे मुझसे मिलेंगे और बातचीत करेंगे।”

पगला बाबा, चित्र अमर उजाला से।

पगला बाबा पर मुझे पिछले कुम्भ की रिपोर्टिंग का अमर उजाला का यह लेख मिला। चित्र भी उसी लेख से लिया गया है। लेख में लिखा है कि पगला बाबा कहते अपने को पगला हैं, पर बातें बुद्धिमत्ता की करते हैं। वे अपने आप को सीता माता का पागल (मंदबुद्धि) पुत्र कहते हैं। “उनके मुताबिक मां अपने मंदबुद्धि बच्चे को सबसे ज्यादा स्नेह करती है। वही स्नेह माता जानकी से मिलता है।” पगला बाबा का वास्तविक नाम जगतानंद दास है।

दौलतपुर वन विभाग के विश्रामालय में प्रेमसागर छ बजे शाम तक पंहुच गये। सूर्यास्त भारत के पश्चिमी भाग में कुछ देर से ही होता है। इसलिये तब अंधेरा नहीं हुआ होगा। मेरे हिसाब से यह दिन की सही पदयात्रा रही। सवेरे समय से निकलना। रास्ते को देखते चलना। पगला बाबा से मुलाकात और सांझ ढलने के पहले मुकाम पर पंहुच जाना – बहुत बढ़िया चले प्रेमसागर! ऐसे ही चला करो, दिनो दिन। तब तुम पर खीझ भी नहीं होगी। प्रेम पर प्रेम बना रहेगा। उखड़ने का कारण नहीं मिलेगा।

कल प्रेमसागर, प्रवीण दुबे जी के निर्देश पर आसपास वन देखेंगे। एक दिन विश्राम रहेगा दौलतपुर में। सो रेस्टहाउस, वन और वन विभाग के लोगों के बारे में कल लिखा जायेगा।

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची ***
प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है।
नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ।
और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है।
पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है।
द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी
(गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) –
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर
2654 किलोमीटर
और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है।
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे।
प्रेमसागर यात्रा किलोमीटर काउण्टर


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Published by Gyan Dutt Pandey

Exploring village life. Past - managed train operations of IRlys in various senior posts. Spent idle time at River Ganges. Now reverse migrated to a village Vikrampur (Katka), Bhadohi, UP. Blog: https://gyandutt.com/ Facebook, Instagram and Twitter IDs: gyandutt Facebook Page: gyanfb

6 thoughts on “आष्टा से दौलतपुर – जुते खेत और पगला बाबा

  1. शेखर व्यास, फेसबुक पेज पर –

    मालव माटी गहन गंभीर , पग –पग रोटी डग – डग नीर ।
    पधारिए , किसी ग्राम में व्यवस्था हो ही जाएगी आपके निवास की । व्यवस्था ’ मोटा मोटी ’ कम ज्यादा होना संभव है 🙏🏻

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  2. दिनेश कुमार शुक्ल, फेसबुक पेज पर –
    मालवा सदा से अन्न जल की प्रचुरता के लिए जाना जाता रहा है। डग-डग रोटी पग-पग नीर।आखिरकार यही भूमि तो प्राचीन उज्जयिनी/अवंतिका की हिंटरलैंड(क्षेत्रभूमि) है- चंड प्रद्योत ,विक्रमादित्य, भोज,कालिदास,भर्तृहरि,खगोलशास्त्र और उदयन वाली वासवदत्ता की भूमि।
    और राजा उदयन,वो तो हमारे अपने वत्स कोसांबी जनपद का राजा था। इस नाते हम और आप भी मालवा से जुड़ गए।
    मेघदूत में कहा भी है कि यहां के गांव-गांव में उदयन-वासवदत्ता के प्रेमाख्यान के गायक मौजूद थे- उदयन कथाकोविद ग्रामवृद्धान्…।
    फिर बहुत आगे चल कर हमारा बबवा भी विलोम की गणना करते हुए रामचरित मानस में मालवा को मरुभूमि का विलोम बताता है – मरु मारव, महिदेव गवासा।
    यह प्रसंग साहित्य में डायलेक्टिकल विमर्श का अकेला महान प्रयोग है- मार्क्स या हीगेल इसके आगे कहीं न ठहर पायेंगे।
    तो संप्रति प्रेमसागरजी भारत की आख्यानभूभि में मग्न हो कर चल रहे हैं।
    जय हो। नर्मदे हर। हर हर महादेव।
    —————

    जय हो! आपको टिप्पणी के लिये धन्यवाद सर!

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  3. बाद में देखेंगे, यह ऋण बहुत अधिक कर लिया है हम सबने, अपने आप पर। वापस लौटकर आना और देखना होता नहीं है। अच्छा तो यही पाया है कि १५-२० मिनट अधिक खड़ा रह कर ही वह दृश्य देख लिया जाये। कुछ स्थान इतने भाये कि वहाँ फिर जाना न हो पाया। भाये और न जाये, तो किसको दोष लगाये?

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    1. सब यादों में रह जाएगा! और सच में बाद में देखना कहाँ हो पाता है….

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  4. तस्‍वीर पर दिए नाम को भी छोटा कर प्रेम कर सकते हैं…

    पगला बाबा ने बहुत सार्थक सीख दी। किसी को नाराज नहीं करना, बहुत कठिन काम है।

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    1. पगला बाबा के बारे में जान कर मुझे भी बहुत अच्छा लगा. प्रेम सागर वास्तव में बहुत जानदार अनुभव ले रहे हैं, और उनके माध्यम से हम भी।

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