26 अक्तूबर 21, रात्रि –
सवेरे से ही मुझे लग रहा था कि प्रेमसागर आज शाम होते होते महसूस करने लगेंगे कि बीस किलोमीटर चलना बाकी है और सूर्यस्त हो गया है, या होने को है। पहले भी मैं कह चुका हूं कि वे अगला मुकम पच्चीस-तीस किलोमीटर पर तय किया करें। उससे ज्यादा भी बढ़ा तो अधिक से अधिक पैंतीस होगा। उतनी दूरी शाम पांच छ बजे तक वे तय कर ही लेंगे। पर उज्जैन से इंदौर की एक लम्बी दूरी की यात्रा थी जो नक्शे में पचास किलोमीटर से कुछ ज्यादा की नजर आती है। इसके अलावा; वस्तुत: दोनो शहरों में अतिरिक्त चलना हो ही जाता है और आज कुल साठ किलोमीटर के आसपास चलना पड़ा। भले ही यह पठारी इलाका है। ऊंचाइयां – नीचाइयां बहुत नहीं हैं। सड़क भी अच्छी ही है और मौसम भी उष्ण नहीं है; पर साठ किलोमीटर ज्यादा ही होता है। बहुत ज्यादा। इंदौर पंहुचते पंहुचते थकान उनपर हावी हो गयी। शायद थकान ने पूरी तरह से उनपर अधिपत्य जमा लिया।
रात सवा आठ बजे मैने उन्हें फोन किया तो वे मुकाम पर पंहुच ही रहे थे – “भईया, अब हम सोच लिये हैं कि रोज की यात्रा पचीस किलोमीटर की तय किया करेंगे। रात के ठहरने की जगह में कुछ असुविधा हो, तब भी। अभी प्रवीण भईया के घर जाना था मिलने के लिये पर इतना चलने के बाद हिम्मत नहीं पड़ रही है। कल सवेरे ॐकारेश्वर के लिये निकलने की बजाय एक दिन इंदौर में रहूंगा। परसों वहां के लिये निकलूंगा। प्रवीण भइया के यहां कल ही मिलने जाउंगा।”

साठ किलोमीटर – मैं जो भी ट्रेवलॉग पढ़ या सुन रहा हूं आजकल, उसमें एक दिन में लोग 35-40 किलोमीटर से ज्यादा नहीं चलते। इतना होने पर वे फख्र से उसका वर्णन एक दो पैराग्राफ, या एक दो पेजों में करते हैं। यात्रा की दुरुहता को भी बताते हुये ज्यादा ही खींचते हैं। पर यहांं, प्रेमसागर जाने किस धुन में, इतनी लम्बी दूरी एक दिन में तय कर जाते हैं। उन्हें, स्वामी चिन्मयानंद की पुस्तक के शीर्षक के अनुसार – Hasten Slowly – का सूत्र अपनाना चाहिये। वे अब तक औसत 25-28 किमी प्रतिदिन चल रहे हैं – अगर सभी दिन जिनमें रुकने के दिन जोड़ लिये जायें तो। अगर वे 32-35 किलोमीटर की ऊपरी सीमा के अनुसार चलें और अपने दैनिक मुकाम उसी प्रकार तय करें तो उनके रुकने के दिन भी कम हो सकते हैं और वे ज्यादा औसत पा सकते हैं। दूसरे, अभी वे यात्रा में विश्राम के लिये रुकने में ज्यादातर बड़े स्थानों को चुनते हैं – जहां मंदिर या अन्य टूरिस्ट आकर्षण होते हैं। उसकी बजाय अगर छोटी जगह पर रुकेंं तो ज्यादा आनंद आये। मसलन मुझे अगर रुकना होता तो भोपाल या जबलपुर की बजाय आष्टा या चोरल में विराम करने को ज्यादा तवज्जो देता! खैर, यात्रा मैं नहीं, प्रेमसागर कर रहे हैं और यात्रा का उनका अनुभव मुझसे कहीं ज्यादा या बहुत अलग प्रकार का है।
वैसे, दिन में उनकी यात्रा आनंददायक थी। उज्जैन से निकले तो अकेले थे, पर रास्ते में अपनी फील्ड यात्रा पर जाने वाले जनार्दन वाकनकर जी और उनके मित्र सुभाष शर्मा जी रास्ते में मिले। तब तक पंद्रह-बीस किलोमीटर चल चुके होंगे प्रेमसागर। वे लोग अपने काम से जा रहे थे; या शायद काम तो प्रेमसागर से रास्ते में मिलने के निमित्त ही बना लिया था। उन्होने रास्ते के एक बलराम जाट ढाबा में जलपान कराया प्रेमसागर को।
जनार्दन जी से मेरी बात भी हुई। प्रेमसागर को भी मैंने कहा कि उनकी यात्रा जनार्दन जी जैसे लोगों के सहयोग और शुभेच्छा के बल पर ही हो रही है। आगे उन जैसे लोगों के सम्पर्क सूत्रों की बहुत आवश्यकता पड़ेगी, जब शायद मार्गों में जन सहयोग आज की अपेक्षा कहीं अधिक चाहिये होगा। वैसे प्रेमसागर की सरलता और लोगों के प्रेमभाव को देख कर लगता है कि सब ठीक ही होगा।

रास्ते में खान नदी मिली। खान नदी क्षेत्र की अच्छी नदी है और क्षिप्रा से ज्यादा पानी उसमें दिखता है। उसके और उसके पुल के चित्र भी प्रेमसागर ने भेजे हैं।
प्रेमसागर महाकाल मंदिर में अपने तरह के अनूठे भक्त आये होंगे। वे अमरकंटक का कांवर ले कर जल भी अर्पित किये और भोर की भस्म आरती में भी थे। यह मंदिर में लोगों को पता चला होगा। महाकाल आरती के समय डमरू बजाने वाले – जीतू, शुभम और लकी – प्रेमसागर से मिलना चाहते थे। पर जब पता चला कि वे इंदौर के लिये निकल चुके हैं तो वे लोग पीछे दुपहिया वाहन पर आये और रास्ते में प्रेमसागर से मिले। उन्होने प्रेमसागर को यह भी कहा कि आगे किसी अन्य ज्योतिर्लिंग में उन्हें किसी प्रकार का सहयोग चाहिये होगा तो वे सब प्रकार से सहायक हो सकेंगे।
मुझे रास्ते से ही प्रेमसागर ने फोन कर इन सज्जनों से मुलाकात की जानकारी दी। “भईया आज का दिन तो बहुत खास है। लगता है महाकाल ही मेरे साथ यात्रा कर रहे हैं। उनकी कृपा बरस रही है। मैं आपको तुरंत बता रहा हूं कि बाद में कहीं भूल न जाऊं। अभी कुछ देर बाद कांवर रखने की जगह मिलेगी तो मैं उनके चित्र भी आपके पास भेजूंगा।”

भूलने का तो सवाल ही नहीं था। महाकाल मंदिर के जीतू, शुभम और लकी जी ने उनके पीछे आ कर मिलने का जो भाव दिखाया, वह भूलने की बात है ही नहीं। पर उनसे मिलने के बारे में तुरंत बताना उनकी प्रसन्नता के अतिरेक को पूरी तरह दर्शा रहा था। कठिन पदयात्रा के बाद इस तरह के अनुभव यात्रा की सार्थकता को गहरे से अण्डरलाइन करते हैं। आगे इस प्रकार के कई कई अनुभव महादेव करायेंगे – ऐसा यकीन है। निश्चित ही ऐसा आगे भी होगा!
27 अक्तूबर 21, सवेरे –
आज प्रेमसागर ने सवा छ बजे चित्र भेजते हुये बातचीत की। वे इंदौर में रुक कर कल सवेरे रवाना होंगे। “भईया, आगे मैं पचीस किलोमीटर पर रुकने की जगह चुनूंगा।” देखते हैं, वे इस कथन पर कितना कायम रह पाते हैं। आखिर यात्रा का नियोजन-निष्पादन तो उनको ही करना है – अपना स्वास्थ्य, अपनी सामर्थ्य और यह देखते हुये कि साल भर उस रुटीन को बनाये रखना है। महादेव उनके साथ हैं। गहरे से साथ हैं; यह तो हमें पता चल ही गया है। भली करेंगे महादेव!
हर हर महदेव!

*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
आज मेरे कार्यालय क्षेत्रीय प्रशिक्षण केंद्र, मध्य कमान, रक्षा लेखा विभाग, रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार में मासिक बैठक के दौरान मैंने इस ब्लॉग को दिखाया, एक उदाहरण के तौर पर कि संकल्प से सिद्धि को किस प्रकार प्रेमसागर जी द्वारा प्राप्त किया जा रहा है । आपके बारे में भी बताया गया तथा आपके ब्लॉग को सब्सक्राइब करने के लिए भी कहा गया । एक जगह बैठे बैठे हमें आप प्रेमजी के माध्यम से जो कंकर कंकर में शंकर जी का दर्शन कर रहें है, वह नमस्य है। जय भोले । में आपके ब्लॉग को नियमित पढ़ता हूँ । भोले की इच्छा होगी तो आपका आशीर्वाद भी कभी मिलेगा। प्रणाम ।
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जय हो! प्रेम सागर जैसे सरल सामान्य व्यक्ति द्वारा संकल्प और दृढ़ विश्वास से जो कुछ सम्भव है, वह मिसाल है. आपने पहचाना और अपनी बैठक में यह रेखांकित किया, उसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद आनंद जी!
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२५ पर्याप्त होना चाहिये। यात्रा में महादेव का आशीर्वाद बना रहे। जय हो।
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मैं भी यही सोचता हूं…
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आलोक जोशी जी. ट्विटर पर –
कहते हैं कंकर कंकर शंकर..
फिर हम सब तो इंसान हैं।
अगर कार्य शुभ हो तो पग पग पर शिव मिलते हैं।
जीतू शुभम लक्की जी..
और भी जहाँ जहाँ से प्रेम रस धारा बही वो सब शिव स्वरूप ही रहे होंगे..
इसीलिए प्रेम जी भाव विहल हो उठे होंगे
महादेव महादेव..🚩
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Jai Baba Mahakaleshwar ki
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कुमार नंदन, फेसबुक पेज पर –
अभी इश्क़ के इन्तेहाँ और भी हैं. महाराष्ट्र और साऊथ बेल्ट में इनके यात्रा विवरण की प्रतीक्षा रहेगी.
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संतोष शर्मा बनारसिया, ट्विटर पर –
इस सनातनी प्यार और अपनेपन को नमन…… यही हमारे देश की संस्कृति और सुंदरता है l
महादेव!
प्रेमसागर जी के महादेव प्रेम यात्रा के अब तक के वृत्तांत को संक्षेप में एक पोस्ट में प्रस्तुत कर सकें तो ज़रूर करें ताकि मीडिआ बंधु को भी प्रेषित किया जा सके l
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प्रत्युत्तर – मेरी उन बंधुओं में रुचि नहीं है जो परोसी थाली चाहते हैं. बाकी, प्रेम सागर का क्या विचार है, वह मुझे पता नहीं.
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शैलेंद्र सिंह, ट्विटर पर –
Premsagar saagar ji ab running karne lage hai 😆
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अनिंदिता बसु, ट्विटर पर –
किताबों में पढ़ी है, पुराने ज़माने में जब सेना कूच करती थी, एक दिन में औसतन १५-२० मील कवर किया करती थी। ताकि सैनिक ज़्यादा थक न जायें और कभी भी लड़ाई के लिए एनर्जी रहे। प्रेमसागर जी भारी-भरकम काँवर उठाये चले हैं, तो इतना चलना ही एक दिन में मुनासिब होगा (आगे प्रेमसागरजी की मर्ज़ी)।
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आशा की जानी चाहिए कि प्रेम सागर आपकी बात पर ध्यान देंगे. वे बार बार कहते हैं पर फिर अपनी prowess टेस्ट करने में लग जाते हैं. 😁
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