28 अक्तूबर, सवेरे –
कल प्रेमसागर प्रवीण चंद्र दुबे जी के घर गये। प्रवीण और राजश्री (उनकी पत्नी) तो भोपाल गये थे। प्रवीण मध्यप्रदेश के शासन द्वारा नामित पर्यावरण समिति के अध्यक्ष हैं तो उनका आधे से ज्यादा समय भोपाल में बीतता है। वे 29 अक्तूबर तक भोपाल में रहेंगे। इसलिये उनसे प्रेमसागर का मिलना नहीं हो पाया। इसे संयोग ही कहा जायेगा कि दो-तीन बार मिलने की सम्भावनायें थीं और दोनो बार मुलाकात नहीं हुई। जब प्रेमसागर भोपाल में थे, तब प्रवीण यात्रा पर बाहर थे। एक बार तो वे दौलतपुर में कुछ समय रुके थे, तब प्रेमसागर आष्टा से दौलतपुर की पदयात्रा पर थे। वे शाम को पंहुचे और प्रवीण तब तक वहां से जा चुके थे। अब. इंदौर में उनके घर पर प्रेम के जाने पर वे भोपाल जा चुके थे। परसों जब प्रेमसागर ॐकारेश्वर में ज्योतिर्लिंग को जल चढ़ायें या एक दो दिन बाद माहेश्वर में जब नर्मदा तट पर हों, तब शायद मुलाकात हो सके, शायद।

प्रवीण जी के बच्चे वहां थे और उनसे मुलाकात हुई। प्रेमसागर के साथ अग्रवाल जी थे। अग्रवाल जी एक बड़ी गौशाला (श्री अहिल्यामाता गौशाला जीवदया मण्डल ट्रस्ट) से जुड़े हैं – सम्भवत: सचिव हैं। यह गौशाला पेडमी गांव, महू (इंदौर से तीस किलोमीटर दूर) में है और उसमें 511 गायें वर्तमान में हैं। यहां किसानों द्वारा परित्यक्त, अनाथ और दुर्घटनाग्रस्त गायों को आश्रय मिलता है। इस गौशाल में वेटिनरी कॉलेज महू ने भी अपना सहयोग दिया है।

उक्त चित्र प्रवीण जी ने बहुत पहले मुझे भेजा था। आज अग्रवाल जी का प्रेमसागर से मिलना जान कर इसकी याद हो आयी। इस चित्र में अग्रवाल जी को मैं पहचान पा रहा हूं। पांच सौ से अधिक परित्यक्त गायों की देखभाल बहुत पुण्य का काम है। अग्रवाल जी और सम्भवत: प्रवीण दुबे भी इससे जुड़े हैं। इन लोगों के बारे में आदर और आगे और जानने का भाव मन में आता है। पर लोगों से आमने सामने मिलने की सम्भावनायें तो (मेरी उम्र के साथ साथ) क्षीण ही होती जाती हैं। फिर भी डिजिटल माध्यम जो कुछ सम्पर्क दे रहे हैं उनकी मैं एक दशक पहले कल्पना भी नहीं कर सकता था।

कल रात प्रेमसागर ने वन विभाग के एसडीओ ए.के. श्रीवास्तव जी के साथ अपनी सेल्फी भेजी। मुझे उसको लेते समय कोने में हथेली आ जाने के कारण चित्र को पर्याप्त एडिट करना पड़ा। ब्लॉग लेखन में इस तरह के छोटे छोटे खुचुर-पुचुर करने की मेरी प्रवृत्ति बहुत समय खाती है। कभी कभी मैं सोचता हूं कि वह सब करने की बजाय, वह परफेक्शन की तलाश करने की बजाय मुझे अपना शब्द ज्ञान बढ़ाने और लेखन अभिव्यक्ति परिमार्जित करने पर ध्यान देना चाहिये। पर प्रवृत्ति बदलना आसान काम नहीं है।

दोनों भाई साहब खाना बनाने से लेकर रहने तक का टोटल व्यवस्था इनके जी में था बहुत अच्छा से देखभाल कीय
जय हो राजा महाकाल की
कल प्रेम ने अतिथि विश्राम गृह के कर्मियों का चित्र भी भेजा। प्रेमसागर का लेखन बहुत संक्षिप्त होता है और वे वॉइस मैसेज भेजना तो आज तक सीख नहीं पाये। उनसे सम्प्रेषण उनके भेजे चित्रों और फोन पर बातचीत के माध्यम से ही मुख्यत: होता है। यह दुरुह प्रक्रिया है और कभी कभी मुझे लगता है कि यह दूरस्थ डिजिटल-ट्रेवलॉग लेखन वास्तविक यात्रा से कम थकाऊ नहीं है। कभी कभी (और अब ज्यादा ही) लगता है कि काहे इस काम में लगे हो ज्ञानदत्त! पर कुछ टिप्पणियाँ ऊर्जा देती हैं। मसलन कल मिली आनंद जी की यह टिप्पणी –
आज मेरे कार्यालय क्षेत्रीय प्रशिक्षण केंद्र, मध्य कमान, रक्षा लेखा विभाग, रक्षा मंत्रालय, भारत सरकार में मासिक बैठक के दौरान मैंने इस ब्लॉग को दिखाया, एक उदाहरण के तौर पर कि संकल्प से सिद्धि को किस प्रकार प्रेमसागर जी द्वारा प्राप्त किया जा रहा है। आपके बारे में भी बताया गया तथा आपके ब्लॉग को सब्सक्राइब करने के लिए भी कहा गया। एक जगह बैठे बैठे हमें आप प्रेमजी के माध्यम से जो कंकर कंकर में शंकर जी का दर्शन कर रहें है, वह नमस्य है। जय भोले। में आपके ब्लॉग को नियमित पढ़ता हूँ। भोले की इच्छा होगी तो आपका आशीर्वाद भी कभी मिलेगा। प्रणाम ।
anand1981 जी की टिप्पणी
कल और कोई विशेष गतिविधि नहीं रही कांवर यात्रा की। आज सवेरे पांच बजे प्रेमसागर चोरल के लिये रवाना हुये। चोरल इंदौर के अतिथि गृह से 36 किलोमीटर दूरी पर है। शुरू के बाईस-चौबीस किलोमीटर मालवा के पठार पर हैं। उसके बाद नर्मदा घाटी प्रारम्भ होती है। यात्रा की रमणीयता घाटी में ही है। अन्यथा इंदौर तो फैलता हुआ महू तक शहरी इलाका हो गया है। दो दशक पहले, जब मैं वहां हुआ करता था, तब ही वह शहरी हो गया था तो अब तो और बढ़ा होगा। पठार के अंतिम छोर पर मुझे नक्शे में इंदौर आईआईटी लिखा मिला। कायदे से प्रेमसागर को सवेरे तेज चल कर पठार जल्दी निपटा देना चाहिये जिससे घाटी के अवलोकन को धीरे चलते हुये निहारने का अधिकाधिक समय मिल सके।

इनका शुभ नाम विजय सिंह मीरा है
9:45 बजे रात को मिलने के लिए आए थे
जय हो राजा श्री महाकाल की!
कल रात में मध्य प्रदेश के वन मंत्री जी के सहयोगी विजय सिंह जी मिले थे। आज वे शुरुआती दौर में प्रेमसागर के साथ थे, उन्हें विदा करने के लिये। साथ में गार्ड भी थे। अच्छी झांकी के साथ प्रेमसागर का इंदौर प्रस्थान हुआ। सवेरे आठ बजे – जब मैंने उनसे बात की – तो वे एक नदी पार कर चुके थे। यह नदी घूम फिर कर चोरल नदी में एक जलप्रपात बनाते मिलती है। नदी किनारे चलना आनंददायक होता पर प्रेमसागर की पदयात्रा में नदी किनारे चलने का विधान नहीं है। वैसे आगे उन्हें चोरल नदी की घुमावदार यात्रा के दर्शन तो होंगे ही।

सवेरे साढ़े दस बजे तक प्रेमसागर आज की पदयात्रा की दो तिहाई दूरी तय कर चुके हैं। वे इंदौर आईआईटी के पास से गुजर रहे हैं। आज सही चल रहे हैं प्रेमसागर! आगे घाटी का रमणीय इलाका है। आगे का विवरण उनसे संझा के समय पता करूंगा!
हर हर महादेव!
*** द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर पदयात्रा पोस्टों की सूची *** प्रेमसागर की पदयात्रा के प्रथम चरण में प्रयाग से अमरकण्टक; द्वितीय चरण में अमरकण्टक से उज्जैन और तृतीय चरण में उज्जैन से सोमनाथ/नागेश्वर की यात्रा है। नागेश्वर तीर्थ की यात्रा के बाद यात्रा विवरण को विराम मिल गया था। पर वह पूर्ण विराम नहीं हुआ। हिमालय/उत्तराखण्ड में गंगोत्री में पुन: जुड़ना हुआ। और, अंत में प्रेमसागर की सुल्तानगंज से बैजनाथ धाम की कांवर यात्रा है। पोस्टों की क्रम बद्ध सूची इस पेज पर दी गयी है। |
प्रेमसागर पाण्डेय द्वारा द्वादश ज्योतिर्लिंग कांवर यात्रा में तय की गयी दूरी (गूगल मैप से निकली दूरी में अनुमानत: 7% जोडा गया है, जो उन्होने यात्रा मार्ग से इतर चला होगा) – |
प्रयाग-वाराणसी-औराई-रीवा-शहडोल-अमरकण्टक-जबलपुर-गाडरवारा-उदयपुरा-बरेली-भोजपुर-भोपाल-आष्टा-देवास-उज्जैन-इंदौर-चोरल-ॐकारेश्वर-बड़वाह-माहेश्वर-अलीराजपुर-छोटा उदयपुर-वडोदरा-बोरसद-धंधुका-वागड़-राणपुर-जसदाण-गोण्डल-जूनागढ़-सोमनाथ-लोयेज-माधवपुर-पोरबंदर-नागेश्वर |
2654 किलोमीटर और यहीं यह ब्लॉग-काउण्टर विराम लेता है। |
प्रेमसागर की कांवरयात्रा का यह भाग – प्रारम्भ से नागेश्वर तक इस ब्लॉग पर है। आगे की यात्रा वे अपने तरीके से कर रहे होंगे। |
अब यात्रा कठिन भी होगी और सौन्दर्यप्रद भी।
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दो दिन तो आनंद से चल रहे हैं प्रेम सागर. अगर 30 – 35 किमी तक चलें तो उनकी क्षमता में रहती है यात्रा…
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जय हो महाकाल की साथ ही जय उनके भक्तों की
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Sir Apke sehyog se Premsagar ji ki yatra digitally sound ho gayi jaise location on GPS clipping site pics .Hogi bhi kyon nahi bade bhaiya ka sneh to unhen mil hi raha h
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हाहाहा! बहुत समय देना पड़ता है इस डिजिटल यात्रा को. और बहुत कुछ मन में चलता है… 😊
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सुप्रभात ज्ञानदत्त जी।
मैं आपके ब्लॉग को बहुत लंबे समय से फोलो करता रहा हूँ।
आपके गाँव के परिवेश से दूरस्थ रूप से परिचित हूँ…आपके लेखन के द्वारा।
प्रेमसागर जी की यात्रा का जो वर्णन आप कर रहे हैं, वह असाधारण सेवा है, हिन्दी की, हिन्दुस्तान की और हिन्दु धर्म की भी।
मेरा नम्र निवेदन रहेगा कि कृपया हमें द्वदश ज्योतिर्लिंगों के दूरदर्शन लाभ से वंचित करने का ख्याल मन में ना आने दे।
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बढ़िया लगा “द्वादश ज्योतिर्लिंगों का दूर दर्शन” शब्द प्रयोग!
आपका कहा ध्यान रखूंगा।
जय हो!
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